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INDORE. इंदौर में 12 साल पहले पैरामेडिकल छात्रवृत्ति घोटाला हुआ था। वहीं, अब लोकायुक्त इंदौर ने चालान पेश करना शुरू कर दिया है। इसके बाद आरोपी कॉलेज संचालकों के बीच हड़कंप मच गया है। सभी कॉलेज संचालक अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट पहुंचने लगे हैं। इस मामले में दर्जन भर से अधिक कॉलेज संचालकों और सरकारी पदाधिकारियों को आरोपी बनाया गया था। यह घोटाला करीब 24 करोड़ रुपए का था।
यह कॉलेज संचालक पहुंचे जमानत लेने
इस मामले में स्टार स्कूल समिति के शरद सिंह सिसौदिया और अन्य के खिलाफ जून 2015 में लोकायुक्त ने केस दर्ज किया था। अब चालान पेश होने पर उन्होंने जमानत आवेदन लगाया। इसमें बताया गया कि डॉ. सीएस गुट्टीधर और स्वर्गीय डॉ. गोवर्धन गिदवानी संचालक थे। इनका कोई लेना-देना नहीं था।
वहीं लोकायुक्त ने बताया कि ओबीसी छात्र सचिन यादव ने श्री शिवकुमार सिंह इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस में कभी प्रवेश नहीं लिया था। फिर भी 2011-12 में फर्जी दस्तावेज से प्रवेश दिखाया गया। इस पर 27 हजार 900 रुपए की राशि ली गई। इसके अलावा, एस्टल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने दो बार 27 हजार900 और 29 हजार 230 रुपए लिए गए थे।
इसमें आदिम जाति कल्याण विभाग इंदौर के अधिकारी/कर्मचारी और आवेदक/आरोपी शरद सिंह सिसौदिया और अन्य के खिलाफ केस हुआ। राशि मिलने के बाद संस्था के जरिए राशि छात्र को नहीं दी गई, बल्कि बेयरर चेक से भुगतान किया गया।
इसी तरह महू के न्यू एरा एजुकेशन समिति के पदाधिकारियों के खिलाफ एफआईआर 11 जुलाई 2014 में हुई थी। इसमें कॉलेज संचालकों ने बताया कि स्कॉलरशिप की 20 लाख की राशि अपर कलेक्टर को लौटा चुके हैं।
वहीं लोकायुक्त ने बताया कि एससी, एसटी और ओबीसी के 659 छात्रों की 41.66 लाख रुपए की राशि ली गई। राशि मिलने के बाद 15 दिन में छात्रों के खाते में डालने की जिम्मेदारी संचालक और प्राचार्य की थी।
आरोपी अजय हार्डिया और पुष्पा वर्मा पर भी दिसंबर 2014 में केस हुआ था। यह केस 1.59 करोड़ रुपए की राशि को लेकर था। इसमें हार्डिया और वर्मा ने कहा कि मनीष शर्मा, रामअलच यादव और कविता कासलीवाल को जमानत मिली थी। इसलिए उन्होंने भी जमानत की मांग की थी।
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इस तरह हुआ घोटाला
इंदौर में साल 2012-13 में पैरामेडिकल कॉलेज का स्कॉलरशिप घोटाला सामने आया था। इस घोटाले की सूची में करीब 19 कॉलेज शामिल थे। आरोप है कि सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों के साथ मिलकर इन कॉलेज संचालकों ने छात्रों के झूठे दस्तावेज से एडमिशन दिखाया था। इसकेसाथ ही, स्कॉलरशिप राशि ले ली।
इस तरह 24 करोड़ रुपए से सरकारी राशि का गबन किया गया था। इस मामले में लोकायुक्त ने विविध कॉलेज संचालकों और सरकारी अधिकारियों/कर्मचारियों के खिलाफ 2014 और 2015 के दौरान केस दर्ज किया। इसमें दस साल से जांच के बाद अब चालान पेश हो रहे हैं।
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इधर सरकार कर रही कुर्की, वसूली
उधर, बीच-बीच में शासन ने कॉलेजों की कुर्की और वसूली की कार्रवाई की थी। हालांकि राशि की वसूली 1 करोड़ से ज्यादा की नहीं हुई है। कुछ कॉलेज संचालकों के पास हाईकोर्ट से स्टे है।
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