इंदौर में मोबाइल और कंप्यूटर की आदत ने बिगाड़ी लिखावट, कॉलेज के 200 छात्रों को 0 नंबर

बीएड, लॉ और एमबीए जैसे कोर्स में हर सेमेस्टर में औसतन 10 प्रतिशत छात्रों को खराब हैंडराइटिंग के कारण अंकों की कटौती झेलनी पड़ रही है। वहीं हर सेमेस्टर में करीब 200 छात्रों को किसी न किसी विषय में जीरो अंक मिल रहे हैं।

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Vishwanath Singh
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इंदौर में अब लिखावट का असर केवल स्कूल तक सीमित नहीं है, बल्कि अब यह प्रोफेशनल कोर्स के रिजल्ट को भी बुरी तरह प्रभावित कर रहा है। हाल ही में सामने आए मामलों में बीएड, लॉ और एमबीए जैसे अहम कोर्स में छात्रों को सिर्फ खराब हैंडराइटिंग के कारण जीरो अंक दिए गए हैं। विशेषज्ञों का तो यहां तक कहना है कि यह समस्या अब सामान्य हो चुकी है, और इसका मुख्य कारण छात्रों द्वारा लिखने की प्रैक्टिस से दूरी बनाना है। वे मोबाइल और लैपटॉप, कम्प्यूटर पर लिखने के आदि हो चुके हैं। इसके कारण यूनिवर्सिटी की बीएड, लॉ और एमबीए जैसे कोर्स की परीक्षाओं में लगभग 200 छात्रों को 0 नंबर मिलने का मामला सामने आया है।

हर सेमेस्टर में 10% छात्रों के कट रहे नंबर

बीएड, लॉ और एमबीए जैसे कोर्स में हर सेमेस्टर में औसतन 10 प्रतिशत छात्रों को खराब हैंडराइटिंग के कारण अंकों की कटौती झेलनी पड़ रही है। वहीं हर सेमेस्टर में करीब 200 छात्रों को किसी न किसी विषय में जीरो अंक मिल रहे हैं।

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हैंडराइटिंग से जुड़ी दो प्रमुख घटनाएं

पहला: बीएड के एक छात्र को दो विषयों में शून्य अंक मिले। जांच में सामने आया कि हैंडराइटिंग इतनी खराब थी कि मूल्यांकनकर्ता एक भी उत्तर ठीक से पढ़ नहीं सके।

दूसरा: एमबीए के छात्र को एक विषय में जीरो और दो अन्य में पासिंग से भी कम अंक मिले। जब उत्तरपुस्तिका की दोबारा जांच हुई तो स्पष्ट हुआ कि खराब लिखावट की वजह से उसे अंक नहीं मिल सके।

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विशेषज्ञों की राय और आंकड़े

विशेषज्ञों का कहना है कि 6% छात्रों को हर विषय में 20% तक अंक कटते हैं सिर्फ लिखावट के कारण। 80 अंकों के पेपर में अधिकांश छात्र 60 अंकों तक ही सीमित रहते हैं, क्योंकि उन्हें उत्तर लिखने में परेशानी होती है। बीएड का औसत रिजल्ट पिछले 3 वर्षों में केवल 24% रहा है, जिसमें लिखावट, न्यूमेरिकल सवालों के गलत जवाब और डाईग्राम न बना पाने को जिम्मेदार माना गया है।

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कारण: प्रैक्टिस का अभाव और डिजिटल निर्भरता

कॉपी ही नहीं खरीदते छात्र: जीएसीसी के सीनियर प्रोफेसर डॉ. आशीष पाठक बताते हैं कि 50% से ज्यादा छात्र सालभर कॉपी में कुछ भी नहीं लिखते। वे सिर्फ गाइड और किताबों से पढ़कर सीधे परीक्षा देने जाते हैं।

प्रोजेक्ट भी टाइप करवा कर जमा: कॉलेज प्राचार्य डॉ. मंगल मिश्र कहते हैं कि 95% छात्र अपने प्रोजेक्ट खुद नहीं लिखते। वे इसे टाइप करवा कर जमा करते हैं। यह चलन हैंडराइटिंग को और कमजोर कर रहा है।

32 में से केवल 15 पेज भरते हैं छात्र: पूर्व प्राचार्य डॉ. अनूप व्यास के अनुसार, थ्योरी विषयों में न्यूनतम 32 पेज लिखने चाहिए, लेकिन छात्र औसतन केवल 15 पेज ही भरते हैं। 

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क्यों बिगड़ रहा रिजल्ट?

लिखने की नियमित प्रैक्टिस का अभाव

मोबाइल और कंप्यूटर पर अत्यधिक निर्भरता

यूनिक और मासिक टेस्ट की व्यवस्था बंद

नियमित कक्षाओं में उपस्थिति कम

यह समाधान बताए विशेषज्ञों ने

लिखावट सुधारने के लिए साप्ताहिक लिखित अभ्यास अनिवार्य किया जाए।

प्रोजेक्ट रिपोर्ट्स को स्वलिखित जमा करने की बाध्यता हो।

यूनिक टेस्ट और मासिक मूल्यांकन फिर से शुरू किया जाए।

हैंडराइटिंग की समीक्षा के लिए विशेष वर्कशॉप और मूल्यांकन पद्धति विकसित की जाए।

हैंडराइटिंग बन रही गंभीर शैक्षणिक समस्या

आज की डिजिटल पीढ़ी में खराब हैंडराइटिंग एक गंभीर शैक्षणिक समस्या बनती जा रही है। यदि समय रहते छात्रों में लिखने की आदत नहीं डाली गई, तो प्रोफेशनल कोर्सेज में परिणामों पर इसका प्रभाव और गहरा हो सकता है। यह सिर्फ व्यक्तिगत नुकसान नहीं, बल्कि शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता पर भी सवाल खड़े करता है।

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