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Indore. इंदौर पुलिस के एक के बाद एक सामने आ रहे कांड ने खाकी पर दाग लगाने मे कोई कसर नहीं रखी है। थानों में हो रही लापरवाही और मनमर्जी के चलते इंदौर में दबंग आईपीएस का तमगा पाए हुए पुलिस कमिश्नर संतोष सिंह लगातार हाईकोर्ट बुलाए जा रहे हैं। टीआई इंद्रमणि पटेल की कार्यशैली ने तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट तक में पक्षकार बनवा दिया है।
अब मामला आजादनगर थाना पुलिस का आया है, जिसमें हाईकोर्ट ने पूरी पुलिस के काम के तरीके के साथ ही राज्य शासन द्वारा सुप्रीम कोर्ट में दिए हलफनामे को कठघरे में खड़ा कर दिया है। अब सीपी को 12 जनवरी को हाईकोर्ट ने बुलाया है।
यह है घटनाक्रम
एक 29 वर्षीय युवती ने 13 अगस्त को आत्महत्या कर ली। युवती के माता-पिता ने आरोप लगाया कि वह विकास बघेल पिता लाखन सिंह विदिशा के साथ दो-तीन साल से रिलेशनशिप में थी। शादी की बात के लिए विकास ने कहा था कि घरवाले मेरे माता-पिता से बात कर लें।
जब युवती के परिजन बात करने 12 अगस्त को गए तो विकास के माता-पिता ने कहा कि उसके तो 17 लड़कियों से संबंध है। शादी करना है तो 50 लाख दहेज में दो। इसके बाद लड़की ने विकास से बात की लेकिन उसने परिवार की ही बात दोहराई। लड़की ने 13 अगस्त को सुसाइड कर लिया।
इसमें युवती के परिजन ने लड़के के साथ ही उसके माता-पिता पर आत्महत्या के लिए उकसाने का केस दर्ज करने की मांग की और शिकायत की। तब टीआई आजादनगर तिलक करोले थे।
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अब पुलिस ने यह किया कांड
पुलिस ने इसमें केस ही दर्ज नहीं किया और माममला टालमटोली करती रही। हालत यह कि युवती का मोबाइल तो लिया लेकिन फारेंसिंक जांच में नहीं भेजा और आरोपी विकास का तो मोबाइल जब्त ही नहीं किया जो अहम साक्ष्य था। टीआई तिलक करोले के ट्रांसफर के बाद सितंबर अंत में लोकेश सिंह भदौरिया टीआई बने। आखिरकार घटनाक्रम के करीब दो माह बाद 9 अक्टूबर को इसमें केस दर्ज हुआ लेकिन आरोपी केवल विकास को बनाया और उसके माता-पिता को छोड़ दिया।
मोबाइल जब्त नहीं होने के खिलाफ युवती के परिजन ने जिला कोर्ट में अधिवक्ता संतोष यादव व विकास यादव के जरिए याचिका लगाई, तब कोर्ट के आदेश पर पुलिस ने इसे जब्त किया, यानी साक्ष्य नष्ट करने का पूरा समय पुलिस ने आरोपी को दिया। एफआईआर के ही दिन आरोपी विकास को 9 अक्टूबर को गिरफ्तार किया और फिर तीन दिन में ही बिना फारेंसिंक रिपोर्ट के जांच अधिकारी सब इंस्पैक्टर अमोष वसुनिया ने चालान पेश कर दिया।
पुलिस पर इस तरह से भड़का हाईकोर्ट
हाईकोर्ट में आरोपी विकास की जमानत याचिका पर आपत्ति जताई गई। युवती के परिजनों की तरफ से वकील मनीष यादव ने पैरवी की। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस ने जांच में चूक की है। इसके अलावा, आरोपी के माता-पिता ने 50 लाख का दहेज मांगा था, फिर भी आरोपी को गिरफ्तार नहीं किया गया।
जब जस्टिस सुबोध अभ्यंकर ने जांच अधिकारी सब इंस्पैक्टर वसुनिया से पूछा, तो उन्होंने कहा कि कोई सीनियर अधिकारी जांच पर नजर नहीं रख रहा था। हाईकोर्ट ने कहा कि जांच में लापरवाही हो रही है। उन्होंने केस डायरी में कॉल डिटेल और अन्य तथ्य नहीं होने पर नाराजगी जताई। इस पर हाईकोर्ट ने कहा कि यह सरासर जांच में गंभीर लापरवाही है और यह लगातार केस में देखने में आ रहा है।
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हाईकोर्ट ने कहा सुप्रीम कोर्ट की आंखों में धूल झोंक रहे
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में विस्तृत तौर पर लिखा कि इसी कोर्ट द्वारा अगस्त 2024 में एक केस में गंभीर मामलो में सीनियर अधिकारियों के सुपरवीजन करने के आदेश दिए गए थे। इसमें राज्य शासन सुप्रीम कोर्ट तक गई और हलफनामा दिया था।
इसके बाद भी गंभीर मामलों में सीनियर अधिकारी सुपरवीजन नहीं कर रहे हैं जो सुप्रीम कोर्ट की अवमाननना है और हलफनामा सुप्रीम कोर्ट की आंखों में धूल झोंकने जैसा है। यह लगातार देखा जा रहा है। इस मामले में पुलिस कमिशनर 12 जनवरी को उपस्थित होकर बताएं इसके लिए वह क्या कर रहे हैं।
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सुप्रीम कोर्ट में क्या बोली थी राज्य सरकार
सीनियर अधिकारियों द्वारा गंभीर केस में सुपरवीजन करने के मामले में केस सुप्रीम कोर्ट तक गया। इसमें शासन का तर्क था कि आईपीएस स्तर के इतने अधिकारी नही्ं है। साल 2022 के रिकार्ड के अनुसार मप्र में 4.88 लाख केस हुए, इसमें 38 हजार 116 गंभीर किस्म के थे। इंदौर पुलिस कमिशनर संतोष सिंह
इसलिए इसमें डीएसपी, एसडीओ स्तर पर सुपरवीजन कराया जा सकता है। लेकिन आजादनगर केस में सब इंस्पैक्टर जांच अधिकारी वसुनिया ने कहा कि कोई सुपरवीजन अधिकारी ही नहीं है। नतीजतन इस केस में भारी लापरवाही की गई और आरोपी युवक विकास बघेल का मोबाइल तक जब्त नहीं किया गया तो अहम साक्ष्य था और ना ही इसमें आरोपी के मता-पिता को आरोपी बनाया गया। इंदौर सुसाइड केस
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