एमपी शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल, एक साल में 7.44 लाख बच्चों ने छोड़ी पढ़ाई, विभाग के पास रिकॉर्ड नहीं

मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में इस साल 7.44 लाख बच्चों की भारी कमी दर्ज की गई है। इनमें आदिवासी जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। जानें स्कूलों में बच्चों की कमी की वजह...

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Kaushiki
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मध्यप्रदेश की स्कूली शिक्षा व्यवस्था

  • रिकॉर्ड तोड़ गिरावट: मध्यप्रदेश के सरकारी स्कूलों में केवल एक साल के भीतर 7.44 लाख बच्चों ने पढ़ाई छोड़ दी है, जिसका विभाग के पास कोई रिकॉर्ड नहीं है।

  • आदिवासी जिलों में संकट: नामांकन में सबसे बड़ी गिरावट धार (32,348 छात्र), झाबुआ और बड़वानी जैसे आदिवासी क्षेत्रों में देखी गई है, जहाँ पलायन एक बड़ी चुनौती है।

  • शून्य नामांकन वाले स्कूल: राज्य के लगभग 3500 स्कूलों में इस साल एक भी नया प्रवेश (Zero Admission) नहीं हुआ है और हजारों स्कूलों में छात्र संख्या दहाई तक भी नहीं पहुँची।

  • निरीक्षण और मॉनिटरिंग फेल: शिक्षा विभाग में अधिकारियों के 35% पद खाली होने के कारण स्कूलों की जमीनी हकीकत और मॉनिटरिंग पूरी तरह ठप हो गई है।

  • सख्त कदम की तैयारी: स्थिति को सुधारने के लिए अब स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की सूची नोटिस बोर्ड पर चस्पा की जाएगी और ड्रॉपआउट रोकने के लिए नई योजनाएं बनाई जा रही हैं।

BHOPAL. मध्यप्रदेश की सरकारी शिक्षा व्यवस्था को लेकर चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है। एमपी स्कूल शिक्षा विभाग के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 7.44 लाख बच्चे कम हुए। ये संख्या पिछले साल के मुकाबले बहुत ज्यादा चिंताजनक और डराने वाली है।

पिछले दो सालों का डेटा मिला दें तो ये आंकड़ा 14 लाख के पार है। हैरान करने वाली बात ये है कि विभाग के पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। ये गंभीर स्थिति राज्य की प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था और भविष्य पर एक बड़ा क्वेश्चन मार्क खड़ा करती है।

आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति बेहद नाजुक

सरकारी स्कूलों (मध्यप्रदेश स्कूल शिक्षा विभाग) से दूरी बनाने के मामले में आदिवासी जिले सबसे ऊपर रहे हैं। आंकड़ो के मुताबिक, धार जिले में सबसे ज्यादा 32 हजार 348 बच्चों ने इस साल स्कूल छोड़ दिया है। इसी तरह झाबुआ में करीब 25 हजार और बड़वानी में 21 हजार बच्चे गायब हैं।

अलीराजपुर, बैतूल और खंडवा जैसे जिलों में भी नामांकन में भारी गिरावट आई है। मुख्यमंत्री के कड़े निर्देशों के बावजूद स्कूलों में बच्चों की संख्या लगातार घट रही है। आदिवासी क्षेत्रों में बढ़ता पलायन और जागरूकता की कमी इसका बड़ा कारण हो सकती है।

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हजारों स्कूलों में सन्नाटा

आंकड़ों (MP School Education Department) के मुताबिक, मध्यप्रदेश के 55 जिलों की स्थिति इस समय बहुत ही ज्यादा खराब हो चुकी है। राज्य के करीब 3500 सरकारी स्कूलों में इस साल एक भी नया एडमिशन नहीं हुए हैं। वहीं, 6500 से ज्यादा स्कूल ऐसे हैं जहां बच्चों की संख्या 10 भी नहीं है।

जब अधिकारी जांच के लिए जाते हैं तो उन्हें पुराने रिकॉर्ड दिखाकर टाल दिया जाता है। विभाग ने अब सख्त कदम उठाते हुए नोटिस बोर्ड पर नाम लिखने को कहा है। स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की लिस्ट अब हर स्कूल के बाहर चस्पा की जाएगी।

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बच्चों के भविष्य पर बड़ा सवाल

शिक्षा विभाग में मॉनिटरिंग करने वाले अधिकारियों की भारी कमी देखी जा रही है। जिला शिक्षा अधिकारी (DEO) कार्यालयों में करीब 35% पद वर्तमान में खाली पड़े हैं। पदों के खाली होने से जमीनी स्तर पर स्कूलों का निरीक्षण नहीं हो पाता।

भोपाल जैसे बड़े जिले में डीपीसी की जिम्मेदारी रेवेनुए डिपार्टमेंट के अफसर संभाल रहे हैं। राजधानी भोपाल में ही इस साल 51 हजार बच्चों ने सरकारी स्कूल छोड़ दिए हैं। मॉनिटरिंग की इसी कमी के कारण स्कूलों की रियल रिपोर्ट समय पर नहीं मिलती।

शिक्षा मंत्री उदय प्रताप सिंह ने कहा कि ड्रॉपआउट के कारण खोजे जा रहे हैं। विभाग अब हर बच्चे को वापस स्कूल लाने के लिए नई योजना बना रहा है। वहीं, फिलहाल लाखों बच्चों का गायब होना राज्य के भविष्य पर बड़ा सवाल है।

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