इंदौर के यशवंत क्लब में संविधान संशोधन की सुगबुगाहट, चुनाव के पहले बड़ा दाव

इंदौर के यशवंत क्लब में संविधान में बदलाव की चर्चा तेज हो गई है। आगामी जून 2026 के चुनाव से पहले यह बदलाव हो संभावित है। जानें, क्या बदलाव होने वाला है और इसका क्लब के भविष्य पर क्या असर पड़ेगा।

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Sanjay Gupta
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Photograph: (the sootr)

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INDORE. एमपी और इंदौर के प्रतिष्ठित यशवंत क्लब मैनेजिंग कमेटी के लिए जून 2026 में चुनाव होना है। वर्तमान मैनेजिंग कमेटी में चेयरमैन टोनी सचदेवा और सचिव संजय गोरानी की टीम है। यह टीम लगातार दो बार चुनाव जीत चुकी है। इनके सामने विरोधी पैनल का सूपड़ा साफ हुआ था। अब चुनाव के सात माह पहले क्लब में एक बड़ी सुगबुगाहट शुरू हो गई है।

संविधान संशोधन से जुड़ा मामला

यह सुगबुगाहट एक बड़े संविधान संशोधन से जुड़ी हुई है। अभी क्लब के संविधान के मुताबिक दो बार लगातार चुनाव जीतने के बाद पदाधिकारी को एक टर्म चुनाव लड़ना प्रतिबंधित होता है।

वह इसके बाद ही अगला चुनाव लड़ सकता है। अब इसी बिंदु पर क्लब में चर्चा चल रही है। एक गुट इस पर सदस्यों से अलग-अलग बात कर उनके विचार जाने जा रहे हैं। ताकि कोई भी प्रस्ताव लाने से पहले एक बार माहौल बनाया जा सके।

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इंदौर का यशवंत क्लब में संशोधन प्रस्ताव को ऐसे समझें 

  • यशवंत क्लब के जून 2026 के चुनाव से पहले संविधान संशोधन पर चर्चा शुरू हो गई है।
  • वर्तमान संविधान के अनुसार, दो टर्म जीतने के बाद चुनाव लड़ने पर रोक होती है।
  • एक गुट संविधान के इस प्रावधान को बदलने के लिए सदस्यों से विचार-मंथन कर रहा है।
  • क्लब के वरिष्ठ सदस्य विधिक जानकारों से सलाह लेकर प्रस्ताव पर रणनीति बना रहे हैं।
  • संशोधन के लिए विशेष सभा (ईओजीएम) बुलानी होगी, प्रस्ताव पास होने के बाद मंजूरी फर्म एंड सोसायटी से मिलेगी।

क्या प्रस्ताव लाने की चल रही बात

सदस्य इस बात पर गहन विचार-विमर्श कर रहे हैं कि क्या बदलाव संभव है। वे संविधान के एक महत्वपूर्ण प्रावधान को बदलने पर सोच रहे हैं।

यह प्रावधान दो टर्म के बाद चुनाव लड़ने पर लगी रोक से जुड़ा है। रोक खत्म होने पर संभावित असर क्या होगा। इस पर बात हो रही है। क्लब के कुछ वरिष्ठ सदस्यों ने विधिक जानकारों से सलाह ली है। वे कानूनी पहलुओं को समझने और आगे की रणनीति बनाने में लगे हैं। 

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संशोधन करने के लिए यह करना होगा

संशोधन करना है तो इसके लिए विशेष सभा यानी ईओजीएम बुलाना होगी। इसमें प्रस्ताव पास होने पर फिर यह फर्म एंड सोसायटी के पास जाएगा। उसकी मंजूरी के बाद यह संविधान संशोधन हो जाएगा। इसमें विधिक तौर पर कोई समस्या भी नहीं है।

लेकिन हिसाब इसी बात का लगाया जा रहा है कि क्या सदस्य इसे मंजूर करेंगे। भले ही ईओजीएम में अपने समर्थक बुलाकर इसे पास कर लिया जाए। लेकिन इसका खामियाजा कहीं चुनाव में नहीं भुगतना पड़ जाए। प्रस्ताव लाने वालों के खिलाफ वोटिंग नहीं हो जाए, इसे भी समझने की कोशिश की जा रही है।

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