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Indore News: इंदौर के डॉ. अंबेडकर नगर यानी महू तहसील के एसडीएम डिप्टी कलेक्टर राकेश परमार के एक आदेश पर जांच बैठ गई है। सरकारी जमीन को निजी के रूप में दर्ज करने का आरोप है। इस पर संभागायुक्त डॉ. सुदाम खाड़े ने जांच बैठा दी है। ग्राम हरसोला के सर्वे नंबर 1010/4 की 1.214 हेक्टेयर इस जमीन की कीमत 10 करोड़ से ज्यादा बताई जाती है।
संभागायुक्त ने कलेक्टर से मांगे दस्तावेज
इस मामले में संभागायुक्त ने इंदौर कलेक्टर शिवम वर्मा से इस जमीन संबंधी आदेशों व अन्य दस्तावेज की जानकारी मांगी थी। कलेक्टर ने यह सभी दस्तावेज संभागायुक्त को भेज दिए हैं। परमार के खिलाफ आरोप पत्र जारी हुआ है।
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आरोप पत्र में परमार पर ये लगे हैं आरोप
आरोप पत्र में कहा गया है कि महू एसडीएम रहते हुए आपने (एसडीएम राकेश परमार) 6 जून 2025 को ग्राम हरसोला की सर्वे नंबर 1010/4 की 1.214 हेक्टेयर सरकारी जमीन, जो पहले शासकीय चरनोई थी, उसे लक्ष्मीबाई पत्नी रामकिशन के नाम पर निजी तौर पर दर्ज करने का आदेश दिया था। यह आदेश न्यायालयीन प्रकरण क्रमांक 197/अपील/2024-25 के तहत 6 जून 2025 को पारित किया गया था।
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कलेक्टर ने घोषित की थी सरकारी
आरोप पत्र में यह भी है कि इंदौर कलेक्टर ने केस 10/अ-39/2001-02 में पारित आदेश 18 अप्रैल 2022 द्वारा भू राजस्व संहिता 1959 के तहत धारा 182(2) में पट्टा निरस्त किया था। वहीं इसे शासकीय चरनोई घोषित किया गया था।
आरोप पत्र में यह भी लिखा- यह कदाचरण और दंडनीय
आरोप पत्र में संभागायुक्त द्वारा लिखा गया है कि - अपील प्रकरण में आदेश पारित करने के पहले राजस्व अभिलेख का गंभीरता व सतर्कता पूर्वक अवलोकन नहीं किया गया।
आपका (परमार) दायित्व था कि शासकीय भूमि को खुर्द-बुर्द होने से बचाकर उसे शासकीय उपयोग के लिए सुरक्षित रखें। यह आपके द्वारा नहीं किया गया और 6 जून 2025 को आदेश पारित किया गया।
यह शासकीय काम के प्रति लापरवाही व नियमों की अवहेलना है। यह कदाचरण की श्रेणी में आता है। एसडीएम परमार पर मप्र सिविल सेवा (वर्गीकरण, नियंत्रण तथा अपील) नियम 1966 के नियम 12(2) व 13(1) के अधीन कार्रवाई का आरोप पत्र जारी हुआ है।
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जमीन को लेकर साल 2003 में कमिश्नरऑफिस से आदेश
इस केस की शुरुआत 2001-02 से होती है। जमीन दर्ज कराने वाले आवेदक का कहना था कि 1994 से 2003 तक राजस्व रिकॉर्ड में जमीन उनकी थी। फिर हटा दी गई।
इसका कारण था इंदौर कलेक्टर द्वारा 2000-01 में दिया गया आदेश। इसमें जमीन को सरकारी घोषित किया गया। अपीलार्थी ने कहा कि लेकिन बाद में संभागायुक्त कार्यालय में अपर आयुक्त राजस्व द्वारा अपील 254/2001-02 में 16 जनवरी 2003 में पारित आदेश के तहत कलेक्टर के आदेश को खारिज कर दिया गया।
इसके बाद इस जमीन को फिर से निजी कराने के लिए नामांतरण आवेदन लगे, जो कमिशनर कोर्ट के आदेश के 20 साल बाद 2023 में लगा। इसे तहसीलदार ने 15 जनवरी 2024 को खारिज कर दिया। इसके बाद इसकी अपील एसडीएम महू राकेश परमार के पास लगी और उन्होंने अपील को मंजूर करते हुए 6 जून 2025 को अपील मंजूर करते हुए अपीलार्थी लक्ष्मीबाई के पक्ष में नामांतरण मंजूर कर लिया। सरकारी जमीन निजी के रूप में दर्ज हो गई।
मामला पहुंचा कलेक्टर के पास फिर रिव्यू का आदेश
यह मामला तत्कालीन कलेक्टर आशीष सिंह के पास पहुंचा था। उन्होंने जुलाई 2025 में इस जमीन को सरकारी बताते हुए एसडीएम के आदेश को रिव्यू कर संशोधित करने के लिए कहा था।
इसके बाद रिव्यू के लिए एसडीएम ने अपर कलेक्टर के पास फाइल पहुंचाई और अपर कलेक्टर से मंजूरी मिली। यह रिव्यू केस अभी चल रहा है।
क्या बोले कलेक्टर, एसडीएम
कलेक्टर शिवम वर्मा ने कहा कि जांच के लिए संबंधित दस्तावेज मांगे गए थे जो संभागायुक्त ऑफिस दे दिए गए हैं। वहीं महू एसडीएम परमार का कहना है कि इस मामले में तत्कालीन संभागायुक्त कोर्ट का ही आदेश था जिसका पालन किया गया।
बाद में इसमें सरकारी होने की बात आई तो इसमें नियमानुसार आदेश को रिव्यू करने की मंजूरी ली गई और रिव्यू का केस चल रहा है। सभी कुछ नियमानुसार और प्रक्रिया से हुआ है।
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