सीनियरिटी और वेतनमान में उलझा रहा मामला, 12 साल बाद हाईकोर्ट से मिली राहत

महिला न्यायाधीश रेखा धुर्वे ने हाईकोर्ट जबलपुर में 2013 में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने 2008 में पारित एक आदेश के बाद सिविल जज 2 के रूप में नियुक्ति हो जाने के बाद भी वरिष्ठता के आधार पर लाभ न मिलने पर हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई थी।

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Neel Tiwari
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High Court JBP
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जबलपुर हाईकोर्ट में दायर एक याचिका में 12 साल बाद फैसला आया है। दरअसल ये सिविल जज भर्ती परीक्षा में अभ्यर्थी न्यायाधीश रेखा धुर्वे की नियुक्ति के बाद सीनियरिटी के हिसाब से पदोन्नति और वेतनमान नहीं दिए जाने के मामले में कोर्ट ने राहत दी है। कोर्ट ने सीनियरिटी पर विचार करने और बकाया वेतन के भुगतान किए जाने के आदेश दिए हैं।

लाभ न मिलने पर दायर याचिका

महिला न्यायाधीश रेखा धुर्वे ने हाईकोर्ट जबलपुर में 2013 में एक याचिका दायर की थी। उन्होंने 2008 में पारित एक आदेश के बाद सिविल जज 2 के रूप में नियुक्ति हो जाने के बाद भी वरिष्ठता के आधार पर लाभ न मिलने पर हाईकोर्ट से न्याय की गुहार लगाई थी। जिसमें उन्होंने वरिष्ठता के आधार पर मिलने वाले समान स्तर के वेतन और पदोन्नति को मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के द्वारा आयोजित सिविल जज वर्ग 2 की परीक्षा के परिणाम के बाद की गई नियुक्तियों के आधार पर ही दिए जाने की मांग की थी।

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आरक्षित पदों पर नियुक्तियों को चुनौती

मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग के द्वारा सिविल जज वर्ग 2 की परीक्षा का आयोजन किया गया था। जिसमें महिला न्यायाधीश रेखा धुर्वे को चयन प्रक्रिया में पूरक सूची में क्रमांक 1 में रखा गया। इसी चयन प्रक्रिया में तैयार सूची में क्रमशः 86 और 92 पर रखे गए दो उम्मीदवार रामसुजन वर्मा और रामानुज सोंधिया की नियुक्ति की गई। लेकिन बाद में उनकी नियुक्तियों को रद्द कर दिया गया क्योंकि दोनों उम्मीदवार अनुसूचित जनजाति में नहीं आते थे। महिला न्यायाधीश रेखा धुर्वे के द्वारा अनुच्छेद 226 के तहत न्यायालय में उन नियुक्तियों को चुनौती देते हुए अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सिविल जज वर्ग 2 के पदों पर उसकी नियुक्ति किए जाने के लिए कोर्ट में याचिका दायर की गई थी।

जिस पर कोर्ट के द्वारा 16 सितंबर 2008 को इस याचिका पर सुनवाई करते हुए राज्य सरकार को अनुसूचित जनजाति के लिए रिक्त पदों पर याचिकाकर्ता की नियुक्ति किए जाने पर विचार करने के आदेश दिए गए थे। यदि राज्य सरकार इस पद पर याचिकाकर्ता को नियुक्त करने का निर्णय लेती है तो राज्य सरकार यह भी विचार करेगी कि क्या उसे प्रतिवादी रामसुजन वर्मा और रामानुज सोंधिया की नियुक्ति के समय पूर्वव्यापी प्रभाव से नियुक्त किया जाना चाहिए। उसे प्रासंगिक नियमों के अनुसार पूर्वव्यापी प्रभाव से वेतन बकाया या वरिष्ठता का हकदार होना चाहिए।

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कोर्ट ने जारी किया राहत भरा आदेश

इस याचिका पर सुनवाई चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच में हुई। जिसमें उन्होंने माना कि यह निर्विवाद है कि सिविल जज वर्ग 2 की भर्ती परीक्षा में रामसुजन वर्मा और रामानुज सोंधिया की नियुक्ति अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार न होने के बावजूद भी की गई थी। जिसमें याचिकाकर्ता जो सही मायने में योग्य था उसका चयन नहीं किया गया जिसमें याचिकाकर्ता की कोई गलती नहीं है। जिस पर कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश जारी करते हुए याचिकाकर्ता के बकाया वेतन का 50 प्रतिशत का भुगतान किए जाने और शेष राशि का भुगतान एवं वरिष्ठता सूची में भी संशोधन कर जारी किए जाने के लिए चार सप्ताह का समय देते हुए याचिका का निपटारा किया।

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