भगोड़ा घोषित आरोपी को भी अग्रिम जमानत का अधिकार, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण आदेश

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि भगोड़ा घोषित आरोपी भी सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के लिए आवेदन कर सकते हैं। इस फैसले से भगोड़ा घोषित किए गए आरोपियों को कानूनी राहत मिल सकेगी।

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Neel Tiwari
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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।

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मध्य प्रदेश हाइकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में साफ किया है कि न्यायालय द्वारा भगोड़ा घोषित किए गए आरोपी भी अग्रिम जमानत के लिए आवेदन दायर कर सकते हैं। हाईकोर्ट की युगलपीठ ने कहा कि सीआरपीसी (CrPC) की धारा 438 के तहत न्यायालय को अग्रिम जमानत देने की शक्ति प्राप्त है और इस शक्ति का प्रयोग मामले की परिस्थितियों और अपराध की गंभीरता के आधार पर किया जाना चाहिए। इस फैसले के बाद उन आरोपियों के लिए भी कानूनी विकल्प खुला रहेगा, जिन्हें भगोड़ा घोषित कर दिया गया है और उनके खिलाफ गैरहाजिरी में आरोप पत्र भी दायर किया जा चुका है।

विरोधाभासी आदेशों के बीच हाइकोर्ट का अहम निर्णय

मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत (Chief Justice Suresh Kumar Kait) और जस्टिस विवेक जैन (Justice Vivek Jain) की युगलपीठ ने इस महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई की। न्यायालय को यह मामला तब सौंपा गया जब हाईकोर्ट की अलग-अलग बेंचों द्वारा परस्पर विरोधाभासी आदेश पारित किए गए थे। एक आदेश में कहा गया था कि जिस आरोपी को न्यायालय भगोड़ा घोषित कर चुका है, उसकी अग्रिम जमानत की याचिका पर सुनवाई नहीं की जा सकती, जबकि दूसरे आदेश में कहा गया था कि यदि मामला उपयुक्त हो, तो अग्रिम जमानत दी जा सकती है।

ऐसे परस्पर विरोधाभासी आदेशों के कारण एकलपीठ ने यह मामला युगलपीठ के समक्ष भेजा, ताकि यह तय किया जा सके कि भगोड़ा घोषित आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका पर सुनवाई हो सकती है या नहीं। युगलपीठ ने इस मुद्दे पर विस्तार से सुनवाई की और विभिन्न न्यायिक मिसालों और सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व के निर्णयों को ध्यान में रखते हुए अपना फैसला सुनाया।

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आरोपी दीपांकर विश्वास को मिला अग्रिम जमानत का अधिकार

यह मामला 2019 में जबलपुर के ओमती थाने में दर्ज धोखाधड़ी और अन्य अपराधों से संबंधित था। आरोपी दीपांकर विश्वास, निवासी इंदौर के खिलाफ जांच के दौरान न्यायालय ने CrPC की धारा 82 और 83 के तहत उसे भगोड़ा घोषित कर दिया था। इतना ही नहीं, पुलिस ने CrPC की धारा 299 के तहत आरोपी की गैरहाजिरी में आरोप पत्र भी दायर कर दिया था। भगोड़ा घोषित होने के बाद, दीपांकर विश्वास ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अग्रिम जमानत के लिए याचिका दायर की। जब यह मामला एकलपीठ के सामने आया, तब उसने पाया कि हाईकोर्ट की दो अलग-अलग बेंचों के आदेशों में विरोधाभास है। इसलिए, यह मामला युगलपीठ को भेज दिया गया ताकि इस पर एक स्पष्ट और सुसंगत निर्णय लिया जा सके।

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अग्रिम जमानत पर सुनवाई संभव- हाइकोर्ट

डिविजनल बेंच ने लंबी बहस और कानूनी बिंदुओं की समीक्षा के बाद आदेश पारित किया कि भले ही आरोपी दीपांकर विश्वास को भगोड़ा घोषित कर दिया गया हो और उसके खिलाफ आरोप पत्र भी दायर हो चुका हो, फिर भी वह अपनी स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अग्रिम जमानत की अर्जी लगा सकता है। अदालत ने इस मामले में स्पष्ट किया कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत देना न्यायालय की असाधारण शक्ति है, और इसे पूरी तरह से समाप्त नहीं किया जा सकता।

इसके साथ ही, कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि आरोपी के अग्रिम जमानत आवेदन पर रोस्टर के अनुसार सुनवाई की जाए। इसका मतलब यह है कि आरोपी की याचिका को पूरी तरह से खारिज नहीं किया जा सकता, बल्कि इस पर गुण-दोष के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।

आने वाले मामलों में मील का पत्थर साबित होगा यह फैसला

इस फैसले का व्यापक कानूनी प्रभाव होगा, क्योंकि अब उन आरोपियों को भी न्यायालय से राहत मिलने की संभावना बनी रहेगी, जिन्हें भगोड़ा घोषित किया जा चुका है। हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि अग्रिम जमानत का लाभ सभी मामलों में स्वचालित रूप से नहीं मिलेगा, बल्कि यह अपराध की प्रकृति, जांच की स्थिति और अन्य कानूनी तथ्यों पर निर्भर करेगा।

इस फैसले से न्यायालय की शक्तियों को लेकर भी एक महत्वपूर्ण कानूनी नजीर स्थापित हुई है। अब यह स्पष्ट हो गया है कि सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अदालत को अग्रिम जमानत देने का पूरा अधिकार है, और किसी भी आरोपी को केवल भगोड़ा घोषित करने के आधार पर इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता। इस फैसले में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विशाल डेनियल और अधिवक्ता आलोक बागरेचा ने पैरवी की।

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आरोपियों के अधिकारों को लेकर अहम निर्णय

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह आदेश भगोड़ा घोषित आरोपियों के अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण निर्णय है। यह न केवल न्यायालयों की शक्तियों को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कानूनी प्रक्रिया के तहत आरोपी को अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करने का पूरा अवसर मिलना चाहिए।

हालांकि, न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि सभी मामलों में अग्रिम जमानत नहीं दी जा सकती, बल्कि अपराध की प्रकृति और अन्य कानूनी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए न्यायालय इस पर निर्णय करेगा।इस फैसले से अग्रिम जमानत की प्रक्रिया को लेकर स्पष्टता आई है और यह भविष्य में कई अन्य मामलों में एक महत्वपूर्ण मिसाल बन सकता है।

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