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मध्य प्रदेश की संस्कारधानी के नाम से पहचाने जाने वाले जबलपुर शहर में इन दिनों धार्मिक असहिष्णुता और पुलिस की निष्क्रियता को लेकर भारी जनाक्रोश देखा जा रहा है। रांझी थाना परिसर में खुलेआम दो ईसाई धर्मगुरुओं फादर डेविस जॉर्ज और फादर जार्ज थॉमस के साथ की गई मारपीट न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर रही है, बल्कि यह मुद्दा अब राज्य की सीमाओं को पार करते हुए राष्ट्रीय राजनीति की बहस का विषय बन गया है। चौंकाने वाली बात यह है कि चार दिन बीत जाने के बावजूद इस गंभीर मामले में एक भी आरोपी गिरफ्त में नहीं आया है।
आदिवासियों के धर्म परिवर्तन के लगाए गए आरोप
पूरे विवाद की शुरुआत उस वक्त हुई जब विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने धर्मांतरण की आशंका जताते हुए एक बस को रांझी थाने लाकर खड़ा कर दिया। यह बस मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल मंडला जिले के महाराजपुर से जबलपुर आई थी, जिसमें आदिवासी महिलाएं और पुरुष सवार थे। हिंदू संगठनों का दावा था कि इन लोगों को ईसाई धर्म अपनाने के लिए जबरन लाया गया है, जबकि बस में मौजूद महिलाओं ने बयान दिया कि वे अपनी मर्जी से चर्च जा रही थीं और यात्रा का खर्च भी उन्होंने खुद वहन किया है। यात्रियों ने यह भी बताया कि उन्होंने 500-500 रुपए दिए थे और यह एक धार्मिक यात्रा थी, किसी भी तरह का प्रलोभन या दबाव नहीं डाला गया।
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थाना परिसर में खुल्लमखुल्ला हुई गुंडागर्दी
इस मामले में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि जब बस से जुड़े विषय में चर्चा करने के लिए फादर डेविस और फादर जार्ज थॉमस रांझी थाने पहुंचे, तो उन्हें न सिर्फ अपमानित किया गया बल्कि थाने परिसर में मौजूद कुछ लोगों ने उनके साथ मारपीट तक की। यह पूरी घटना पुलिस थाने के परिसर में घटी जहां आम नागरिक को अपनी सुरक्षा की सबसे अधिक उम्मीद होती है। हालांकि सामने आए वीडियो में रांझी थाने के थाना प्रभारी मानस द्विवेदी धर्मगुरुओं को बचाते हुए नजर आ रहे हैं, लेकिन भारी भीड़ के सामने पुलिस बल कम पड़ता हुआ दिखाई दिया। सोशल मीडिया पर वायरल हुए वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि किस तरह दोनों धर्मगुरुओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया और उन्हें धक्का-मुक्की कर पीटा गया। इसने कानून व्यवस्था की गंभीर स्थिति को उजागर कर दिया।
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सड़क से सदन तक विरोध की लहर
जैसे ही यह घटना सामने आई, जबलपुर के क्रिश्चियन समाज में भारी रोष फैल गया। इसके विरोध में सैकड़ों की संख्या में समुदाय के लोग एकत्र होकर एसपी कार्यालय का घेराव कर चुके हैं। उन्होंने स्पष्ट रूप से आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग की और चेतावनी दी कि यदि शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई, तो वे आंदोलन छेड़ देंगे। वहीं दूसरी ओर, यह मुद्दा अब दिल्ली तक पहुंच गया है। केरल से सांसदों ने संसद भवन के बाहर इस घटना के खिलाफ जोरदार प्रदर्शन किया और “ईसाई समुदाय पर अत्याचार बंद करो” जैसे नारे लगाए। संसद में विपक्षी दलों के साथ-साथ अन्य नेताओं ने भी इस पर चिंता जताई और इस घटना को धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। इसके साथ ही सर्वधर्म ईसाई महासभा ने शुक्रवार को फिर से जबलपुर एसपी को ज्ञापन देकर कार्रवाई की मांग की है।
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पुलिस की भूमिका भी सवालों के घेरे में
घटना के बाद रांझी थाना पुलिस ने एक प्राथमिकी जरूर दर्ज की है और कुछ संदिग्ध लोगों की पहचान भी की गई है। लेकिन सवाल उठता है कि आखिर थाने के भीतर हुई इस घटना में अब तक कोई गिरफ्तारी क्यों नहीं हो सकी? एसपी जबलपुर संपत उपाध्याय ने बताया कि मामले की जांच चल रही है और आरोपियों को जल्द गिरफ्तार किया जाएगा। लेकिन चार दिन गुजर जाने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई न होना पुलिस की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। शुक्रवार को दोबारा एसपी कार्यालय पहुंचे स्थाई सर्वधर्म महासभा के कार्यकर्ताओं को अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सूर्यकांत शर्मा ने आश्वासन दिया है कि सीसीटीवी कैमरों की जांच चल रही है और जल्द ही कार्रवाई की जाएगी।
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घटना से आक्रोशित है ईसाई समुदाय
स्थानीय ईसाई समाज ने प्रशासन को दो टूक चेतावनी दी है कि यदि 48 घंटे के भीतर आरोपियों की गिरफ्तारी नहीं होती, तो वे शांतिपूर्ण आंदोलन को उग्र रूप देंगे। चर्च संगठनों और मिशनरियों की भी नजर इस पूरे घटनाक्रम पर है। वे इसे धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन मान रहे हैं। उनका कहना है कि यह घटना भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि पर एक गहरा धब्बा है और अगर अब भी प्रशासन ने समय रहते कार्रवाई नहीं की, तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी देश की छवि को नुकसान पहुंचा सकती है।
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