जबलपुर में नकल के लिए बाबुओं का चक्कर हुआ खत्म, डिजिटल हुआ रिकॉर्ड रूम

एक दौर था जब आवेदकों को फाइल या केस से जुड़ी नकल प्राप्त करने के लिए बाबुओं के चक्कर लगाने पड़ते थे। अक्सर उन्हें जानकारी नहीं मिलती थी कि उनकी फाइल कहां है, और वे 'नहीं मिली' जैसे बहानों का शिकार हो जाते थे।

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Neel Tiwari
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Jabalpur hassle clerks
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MP NEWS: जबलपुर में कलेक्टर दीपक सक्सेना की अगुवाई में रिकॉर्ड रूम को आधुनिक स्वरूप में ढालने का काम का आरंभ हुआ। इससे न केवल भौतिक ढांचे को बदला, बल्कि जनता के साथ प्रशासन के रिश्ते को भी तकनीक के जरिए पारदर्शिता की नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया। अब रिकॉर्ड रूम सिर्फ एक सरकारी कमरा नहीं, बल्कि एक ऐसा डिजिटल अभिलेखागार बन गया है, जो पूरे प्रदेश के लिए आदर्श बन सकता है। अब इसे कायाकल्प को देखने अन्य जिलों के कलेक्टर कार्यालय के कर्मचारी एवं अधिकारी भी इस रिकॉर्ड रूम का निरीक्षण कर रहे हैं। ताकि यहां पर की गई व्यवस्थाओं का जायजा लेकर अन्य जिलों में भी इसी तरह का काम किया जा सके।

फाइलें अब नहीं तोड़ेंगी दम

पहले की व्यवस्था में केस फाइलें कपड़े के बस्तों में वर्षों तक धूल फांकती रहती थीं। नमी, दीमक और गंदगी के कारण कई दस्तावेज नष्ट हो जाते थे। कोई फाइल ढूंढना खुद में एक बड़ा संकट था, जिसमें महीनों लग जाते थे। लेकिन अब इन बस्तों की जगह ले ली है मजबूत प्लास्टिक के बॉक्सों ने, जिनमें हर फाइल को पॉलिथीन पाउच में सुरक्षित रखकर व्यवस्थित किया गया है। सिर्फ इतना ही नहीं, बॉक्सों को तहसीलवार अलग-अलग रंगों से कोड किया गया है ताकि दूर से ही पहचान की जा सके कि कौन सा बॉक्स किस क्षेत्र से संबंधित है। 

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अब नकल का संघर्ष खत्म

एक दौर था जब आवेदकों को फाइल या केस से जुड़ी नकल प्राप्त करने के लिए बाबुओं के चक्कर लगाने पड़ते थे। अक्सर उन्हें जानकारी नहीं मिलती थी कि उनकी फाइल कहां है, और वे 'नहीं मिली' जैसे बहानों का शिकार हो जाते थे। लेकिन अब स्थिति एकदम बदल चुकी है। रिकॉर्ड रूम की हर फाइल की लोकेशन एक विशेष ऑनलाइन एप्लिकेशन में दर्ज की गई है। कोई भी व्यक्ति सिर्फ केस नंबर या जरूरी विवरण डालकर यह जान सकता है कि उसकी फाइल किस रैक, किस शेल्फ, किस बॉक्स और किस नंबर पर रखी हुई है। कलेक्टर ऑफिस परिसर में एक डिजिटल कियोस्क स्थापित किया गया है, जहां जाकर कोई भी नागरिक केस की स्थिति की जानकारी प्राप्त कर सकता है। जरूरत पड़ने पर उसकी लोकेशन का प्रिंट भी निकाल सकता है। अब नकल प्राप्त करने के लिए किसी 'राग दरबारी' की शैली में चक्कर काटने की जरूरत नहीं।

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रिकॉर्ड रूम बना एयरकंडीशन 

रिकॉर्ड रूम की सफाई और सौंदर्यीकरण से सबसे ज्यादा लाभ वहां कार्यरत कर्मचारियों को मिला है। जहां पहले धूल, घुटन और बदबू के कारण काम करना एक सजा जैसा लगता था, अब वही कमरा एयरकंडीशन और सुव्यवस्थित है। दीवारों और रैकों को नया रंग-रोगन दिया गया है, शेल्फ और रैक को यूनिक कोड नंबर दिया गया है, जिससे काम करने में सहूलियत मिली है। कर्मचारियों को अब न तो फाइलों को ढूंढने में ज्यादा समय लगाना पड़ता है, न ही शिकायतों का सामना करना पड़ता है। यह पूरी व्यवस्था कर्मचारियों को आत्मसम्मान के साथ कार्य करने का अवसर दे रही है, जिससे उनकी उत्पादकता और सेवा भाव में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।

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बैंक लॉकर जैसा सिस्टम, 50 साल तक सुरक्षित रहेंगे रिकॉर्ड

नई प्रणाली का सबसे बड़ा लाभ रिकॉर्ड की दीर्घकालिक सुरक्षा है। प्लास्टिक बॉक्स, पन्नियां और एयरकंडीशन  वातावरण ने अब दस्तावेजों की उम्र 25 से 50 वर्ष तक बढ़ा दी है। यह सिस्टम न सिर्फ सुरक्षित है, बल्कि तकनीकी रूप से इतने सटीक तरीके से विकसित किया गया है। अब किसी भी फाइल के खो जाने या गलती से गलत बॉक्स में पहुंचने की संभावना लगभग शून्य हो गई है। रैक और शेल्फ की कोडिंग, डिजिटल एंट्री और लोकेशन ट्रैकिंग सुविधा ने इसे एक आदर्श डिजिटल आर्काइव में बदल दिया है। अब यह किसी बैंक के लॉकर रूम से कम नहीं लगता और सुरक्षित, सुव्यवस्थित और हर दृष्टि से नियंत्रित।

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डिजिटल इंडिया की जमीन पर एक सफल प्रयोग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘डिजिटल इंडिया’ मिशन को जमीन पर उतारने का यह प्रयोग बेहद प्रभावशाली साबित हो रहा है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की किसान हितैषी और नागरिक केंद्रित सोच को जबलपुर में कलेक्टर दीपक सक्सेना ने जिस प्रतिबद्धता और इनोवेशन के साथ मूर्त रूप दिया, वह प्रदेश के लिए प्रेरणास्पद है। 

अब नकल लेने ‘राग दरबारी’ नहीं, टेक्नोलॉजी चाहिए

जिस प्रक्रिया को पहले हास्य-व्यंग्य के रूप में राग दरबारी का 'लंगड़' झेलता था । वही प्रक्रिया अब टेक्नोलॉजी के सहारे सहज, त्वरित और सम्मानजनक बन चुकी है। अब न कोई बाबू की चाय पिलाने की मजबूरी, न सिफारिश की आवश्यकता क्योंकि अब आवेदक खुद केस नंबर डालता है, लोकेशन जानता है और अपनी नकल लेकर घर चला जाता है। यह न केवल सरकारी व्यवस्था में लोगों का भरोसा बढ़ाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि व्यवस्था जब चाह ले, तो बदलाव नामुमकिन नहीं होता।

 

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