दिवंगत अधिवक्ताओं के परिजन के नाम पर अलॉट किए चैंबर, HC ने मांगा जवाब

स्टेट बार काउंसिल के द्वारा नियमों को अनदेखा कर बार काउंसिल की बैठक में सर्व सहमति से एक प्रस्ताव स्वीकृत किया गया। इसमें जिन अधिवक्ताओं की मृत्यु हो चुकी है उनकी जगह चैंबर उनके परिजन को अलॉट किए गए हैं। जानें इस पर HC ने क्या लिया एक्शन।

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Neel Tiwari
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JABALPUR HIGHCOURT
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मध्य प्रदेश स्टेट बार काउंसिल के द्वारा नियमों को अनदेखा कर बार काउंसिल की बैठक में सर्व सहमति से एक प्रस्ताव स्वीकृत किया गया है। इसमें जिन अधिवक्ताओं की मृत्यु हो चुकी है उनकी जगह चैंबर उनके परिजन या रिश्तेदारों को अलॉट किए गए हैं। बार काउंसिल के इस आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई चीफ जस्टिस की डिवीजन बेंच में हुई है।

जबलपुर हाईकोर्ट में स्टेट बार काउंसिल के द्वारा चैंबर अलॉटमेंट के लिए जारी आदेश के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। जिसमें स्टेट बार काउंसिल के द्वारा 7 जुलाई 2024 में नियमों को अनदेखा कर बार काउंसिल की बैठक में सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया। इसके बाद जिन वकीलों की मृत्यु हो चुकी है उनके परिजनों और रिश्तेदारों को उनके चैंबर अलॉट कर दिए गए।

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नियमों को किया गया नजरअंदाज

याचिकाकर्ता के वकील सतीश वर्मा ने कोर्ट में बताया गया कि स्टेट बार काउंसिल के द्वारा चैंबर अलॉट किए जाने के नियमों को नजरअंदाज किया गया है। साथ ही उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य अधिवक्ता परिषद कार्यालय को जबलपुर, ग्वालियर और इंदौर के चैंबर धारकों द्वारा को-अलॉटी बनाए जाने और मृतक अधिवक्ताओं के रिश्तेदारों और वारिसो का नाम चैम्बरों  में जोड़े जाने के आवेदन दिए गए थे । जिस पर विचार कर बहुमत से प्रस्ताव पारित किया गया। इस मामले पर याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने इस पारित आदेश को चैंबर अलॉटमेंट के नियम 6(a) को नजरअंदाज किया जाना बताया है। इस नियम के तहत यदि किसी अधिवक्ता की मृत्यु हो जाती है तो उसके चैंबर के अलॉटमेंट को निरस्त कर दिया जाता है। याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट के समक्ष जुलाई महीने में बार काउंसिल की हुई बैठक के मिनट भी प्रस्तुत किए गए हैं। साथ ही अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि यह कोर्ट के नियमों और आदेशों की भी अवहेलना के अंतर्गत आता है।

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जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर हाईकोर्ट में अलॉट हुए हैं चैंबर

हाईकोर्ट में स्टेट बार काउंसिल के द्वारा चैंबर अलॉटमेंट किए जाने के वाले आदेश के खिलाफ लगी याचिका में पहले अधिवक्ता जगन्नाथ त्रिपाठी के चैंबर अलॉटमेंट के विरोध में याचिका लगाई गई थी। जिसके बाद उनका अलॉटमेंट कैंसिल कर दिया गया था, लेकिन अब याचिकाकर्ता की ओर से जबलपुर ग्वालियर और इंदौर में अन्य अधिवक्ताओं के रिश्तेदारों को अलॉट किए गए चैंबरों की भी जानकारी कोर्ट को दी गई है। शासन की ओर से इस याचिका का विरोध इस आधार पर किया गया कि अन्य सभी लोगों को प्रतिवादी नहीं बनाया गया है, लेकिन कोर्ट ने इस बात को दरकिनार कर दिया।

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क्या कहता है अलॉटमेंट नियम का क्लॉज़ 6A?

स्टेट बार कौंसिल ऑफ़ मध्य प्रदेश के चैंबर अलॉटमेंट नियम के अनुसार कक्ष रिक्त माना जाएगा यदि कक्ष का आवंटी:

• मृत हो गया हो,

• अपना पंजीकरण निलंबित या रद्द कराकर वकालत की प्रैक्टिस छोड़ दिया हो।

• उच्च पद पर आसीन हो गया हो।

• लगातार तीन महीने की अवधि के लिए लाइसेंस शुल्क और/या बिजली शुल्क जमा नहीं किया हो और इस अवधि की समाप्ति से पहले राज्य बार काउंसिल को पर्याप्त कारणों से अवगत नहीं कराया हो।

• इसका उपयोग पेशेवर उद्देश्यों के अलावा अन्य किसी उद्देश्य के लिए कर रहा हो।

• इसे उप-किराए पर दे दिया हो और राज्य बार काउंसिल की संतुष्टि के लिए उप-किराए पर देने का तथ्य सिद्ध हो गया हो। (बशर्ते कि अधिवक्ता के साथ प्रक्टिस करने वाले पुत्र, पत्नी, पुत्री, पुत्र-वधू या बहनों द्वारा कक्ष का इस्तेमाल उप-किराए पर देने के समान नहीं माना जाएगा।)

• राज्य बार काउंसिल या बार काउंसिल ऑफ इंडिया या किसी न्यायालय द्वारा व्यावसायिक दुराचार के आरोप में दोषी ठहराया गया हो। (बशर्ते कि अपील के लिए समय समाप्त होने तक या यदि अपील दायर की गई है, तो अंतिम रूप से निर्णय होने तक इस आधार पर कक्ष को खाली नहीं कराया जाएगा।)

• नैतिक अध: पतन (Collapse) से संबंधित अपराध के लिए दोषी ठहराया गया हो।

• राज्य बार काउंसिल द्वारा चैंबर रखने के लिए अयोग्य ठहराया गया हो और इसके लिए लिखित रूप में कारण दर्ज किए गए हों।

हालांकि इसी नियम का 6 B के अनुसार जब कभी और जहां भी निर्माण लागत या निर्माण के लिए जमा राशि लेने के पश्चात चैम्बर का निर्माण किया जाएगा, उस स्थिति में आबंटिती चैम्बर को बनाए रखने के लिए अपने उत्तराधिकारी को नामित करने का हकदार होगा और नामांकन उसकी पत्नी, पुत्र, पुत्री, बहन और उसके साथ व्यवसाय करने वाले भाई तक ही सीमित होगा। अब बार काउंसिल का जवाब आने के बाद देखने वाली बात यह होगी कि जिन लोगों को चैंबर अलॉट किये हैं, उन्हें दिवंगत अधिवक्ताओं ने नॉमिनी बनाया था या नहीं, और इस नियम का लाभ क्या दिवंगत अधिवक्ता के परिजन को मिल सकता है या नहीं।

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2 सप्ताह में देना होगा जवाब

हाईकोर्ट में इस याचिका पर सुनवाई के चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस विवेक जैन की डिवीजन बेंच में हुई है। इस दौरान उन्होंने मध्य प्रदेश स्टेट बार काउंसिल को दो सप्ताह के अंदर इस याचिका से संबंधित जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। कोर्ट के आदेश के मुताबिक अब बार काउंसिल को जुलाई महीने में हुई बैठक के मिनट पर अपना जवाब प्रस्तुत करना होगा। आदेश जारी करने के बाद कोर्ट ने यह सख्त टिप्पणी की है कि स्टेट बार काउंसिल इस पर नियम अनुसार कार्यवाही करें, वरना अगली सुनवाई में कोर्ट बार काउंसिल के खिलाफ कोई कड़ी टिप्पणी कर सकता है। इस मामले में अगली सुनवाई 10 फरवरी 2025 को है।

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