जबलपुर में प्रशासन की सतर्कता का यह आलम है कि जब तक कोई बड़ा हादसा नहीं होता तब तक यह कुंभकर्णीय नींद से नहीं जागते। स्वास्थ्य विभाग से लेकर भवन निर्माण हो या फायर सेफ्टी डिपार्टमेंट इनके सभी अधिकारी और कर्मचारी किसी बड़े हादसे का इंतजार कर रहे होते हैं। हादसा होते ही कुछ दिनों की मुस्तैदी का दिखावा किया जाता है और उसके बाद मामला फिर से ठंडे बस्ते में चला जाता है।
कोचिंग के बेसमेंट में हुए हादसे के बाद खुली नींद
दिल्ली में कोचिंग सेंटर के बेसमेंट में हुए हादसे के बाद आनन-फानन में अन्य जिलों की तरह कार्यवाही करने की मजबूरी में जिला प्रशासन के द्वारा बीते दिनों लगातार अधिकारियों को बेसमेंट की खोज में दौड़ाया जा रहा था। आखिरकार निगम प्रशासन को दो अस्पताल और एक फर्नीचर सेंटर के गोदाम में अनियमितता दिखाई दे ही गई। इसके बाद निगम के द्वारा दो अस्पतालों में चल रहे डॉक्टर के चेम्बरों को सील किया तो एक फर्नीचर मार्ट के बेसमेंट को भी सील लगा दी। पूरे शहर की खाक छानने के बाद भी प्रशासन को बेसमेंट में चल रही कोई भी कोचिंग जब नहीं मिली तो बिना किसी नोटिस के आकाश इंस्टीट्यूट को सील कर दिया गया। हालांकि इंस्टिट्यूट के मालिक ने यह दावा किया है कि उन्होंने किसी भी तरह का नियम उल्लंघन नहीं किया है और दो दिनों के भीतर ही इंस्टिट्यूट वापस खुल जाएगा , प्रशासन भी इस कार्यवाही से बस यही चाहता था की कार्यवाही करने के बाद इसकी खबरें बस अखबारों में छप जाए और हुआ भी यही।
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जबलपुर में निजी अस्पताल अग्नि हादसे की दूसरी बरसी
आज से ठीक 2 साल पहले जबलपुर में एक निजी अस्पताल में वीभत्स अग्निकांड हुआ था। जिसमें कुल 8 लोगों की जान भी गई थी। उस समय भी फायर सेफ्टी से लेकर भवन अनुज्ञा विभाग के द्वारा इसी तरह की कार्यवाहियों का दिखावा किया गया था। समय गुजरते अब हालात यह है कि शहर में किसी भी अस्पताल की अग्नि सुरक्षा की जांच नहीं की जा रही है। अस्पतालों को दिए गए पिछले नोटिस अब डस्टबिनों में पड़े हुए हैं और अस्पताल धड़ल्ले से संचालित हो रहे हैं।
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अनियमित भवन और बिना फायर सेफ्टी के चल रहे 90 अस्पताल
जानकारी के अनुसार नगर निगम के द्वारा ऐसे 90 अस्पताल चिन्हित किए गए हैं जिनकी भवन और फायर सेफ्टी से संबंधित अनियमिताएं सामने आई हैं। जिसके लिए स्वास्थ्य विभाग को निगम द्वारा पत्र भी भेजा गया है, पर स्वास्थ्य विभाग ने सिर्फ उन अस्पतालों को एक लेटर लिख दिया है कि वह अपनी अनियमिताएं सुधरवा कर दोबारा नगर निगम से संपर्क करें। यहां बड़ा सवाल यह है कि इस दौरान बिना सुरक्षा के संचालित हो रहे इन अस्पतालों में यदि कोई बड़ा हादसा होता है तो उसका जिम्मेदार आखिर कौन होगा?
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नाम बदलकर दोबारा रजिस्टर हो रहे अस्पताल
पिछली बार जब स्वास्थ्य विभाग जागा था तो अस्पतालों के विरुद्ध बड़ी कार्यवाही करने के लिए नोटिस भी जारी किए गए थे। इसमें से कुछ अस्पताल ऐसे थे जिनमें हद दर्जे की अनियमिताएं थी। इन अनियमिताओं को कागजों में रफा दफा करना भी मुश्किल था। तो अस्पताल संचालकों ने रास्ता निकाला और नया अस्पताल पंजीकृत करा लिया। बेदी नगर मदन महल में स्थित ऐसा ही एक स्मार्ट सिटी अस्पताल जिसे अमित खरे नामक व्यक्ति संचालित करता था। इस अस्पताल को सीएमएचओ के द्वारा कई बार नोटिस दिया गया था। लगातार इस अस्पताल की खबरें सुर्खियों में आने के बाद यह अस्पताल फर्जी अस्पताल के नाम से प्रसिद्ध हो गया था। इसके बाद इसके संचालक ने अपने भाई के नाम पर उसका पंजीकरण दोबारा एप्पल अस्पताल के नाम से कराया और उसे स्वास्थ्य विभाग के द्वारा पंजीकृत भी कर लिया गया है । इस अस्पताल का पूरा स्टाफ पुराने स्मार्ट सिटी अस्पताल का ही है पर नाम बदलकर इसे नया अस्पताल बना दिया गया । सूत्रों के अनुसार अब इस अस्पताल में फर्जी एक्सीडेंटल क्लेम का बड़ा फर्जीवाड़ा चल रहा है।
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शिकायत मिलने पर की जाएगी कार्यवाही - स्वास्थ्य अधिकारी
जबलपुर के सीएमएचओ संजय मिश्रा ने बताया कि इस अस्पताल का नाम पहले स्मार्ट सिटी हॉस्पिटल था जिसका पंजीयन निरस्त कर दिया गया था इन्होंने रिनोवेशन करने के बाद नए सिरे से अस्पताल का पंजीकरण करवाया है और यदि इस अस्पताल के खिलाफ कोई शिकायत मिलती है तो दोबारा इस पर कार्यवाही की जाएगी।
अब जब तक इस अस्पताल में दोबारा कोई अनियमिताएं खुलकर सामने नहीं आती तब तक इस अस्पताल को स्मार्ट सिटी अस्पताल की तर्ज पर लूट करने की खुली छूट दे दी गई है।