15 साल से शहर से बाहर थे असली मालिक, परिजनों ने फर्जी दस्तावेजों से कर लिया नामांतरण

जबलपुर में जमीन के नामांतरण को लेकर धोखाधड़ी का मामला सामने आया है। इसमें परिवार के ही सदस्यों ने रिश्तेदार की गैरमौजूदगी का फायदा उठाकर जमीन अपने नाम करवा ली। जानें कैसे किया गया फर्जीवाड़ा

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Neel Tiwari
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जबलपुर के शहपुरा थाना क्षेत्र के सुरई गांव में जमीन के नामांतरण से जुड़ा एक बड़ा धोखाधड़ी मामला सामने आया है, जिसमें परिवार के ही सदस्यों ने अपने रिश्तेदार की गैरमौजूदगी का फायदा उठाकर 14 एकड़ जमीन अपने नाम करवा ली। यह जमीन अनुराग मुकसुदन आचार्य और उनकी माता रेखा देवी के नाम पर दर्ज थी, लेकिन जब वे 15 साल पहले मुंबई शिफ्ट हो गए और जबलपुर आना बंद कर दिया, तो उनके ही करीबी रिश्तेदार यश गोटिया और विजय गोटिया ने इस पर कब्जा करने की साजिश रची। इस पूरी प्रक्रिया में फर्जी दस्तावेजों, झूठे गवाहों और प्रशासनिक लापरवाही का खुलासा हुआ है, जिससे अब कानूनी कार्रवाई की संभावना तेज हो गई है।

फर्जी हस्ताक्षर और नकली गवाहों से कराया नामांतरण 

जमीन का नामांतरण कराने के लिए आरोपियों ने बेहद सुनियोजित तरीके से फर्जीवाड़ा किया। अनुराग आचार्य और उनकी माता के मूल दस्तावेजों में हेरफेर कर, फर्जी हस्ताक्षर किए गए और उनके नाम पर झूठे शपथ पत्र बनाए गए। इतना ही नहीं, नामांतरण प्रक्रिया को पूरा करने के लिए आरोपियों ने एक व्यक्ति को, जिसकी शक्ल अनुराग आचार्य से मिलती-जुलती थी, पटवारी और न्यायालय के सामने प्रस्तुत कर दिया। इस व्यक्ति ने खुद को अनुराग आचार्य बताकर दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए और गवाहों के रूप में भी ऐसे लोगों को खड़ा किया गया, जिन्होंने झूठा बयान देकर नामांतरण की प्रक्रिया को सही ठहराने का प्रयास किया।

जब इस प्रक्रिया के दौरान संबंधित पटवारी ने पैन कार्ड और अन्य पहचान दस्तावेजों की जांच की, तो चेहरे का मिलान न होने पर संदेह उत्पन्न हुआ। लेकिन प्रशासनिक स्तर पर इस गंभीर विसंगति को नजरअंदाज कर दिया गया और नामांतरण की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी गई। यह दर्शाता है कि इस पूरे प्रकरण में न केवल दस्तावेजी हेरफेर हुआ, बल्कि प्रशासन की ओर से भी भारी लापरवाही बरती गई।

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नकली शपथ पत्र और जाली नोटरी की मोहर से खुला राज

इस जालसाजी को कानूनी रूप देने के लिए आरोपियों ने फर्जी शपथ पत्र तैयार करवाया, जिसमें जबलपुर के एक प्रतिष्ठित नोटरी आनंद मोहन का नाम दर्ज किया गया। इस शपथ पत्र का इस्तेमाल यह साबित करने के लिए किया गया कि अनुराग आचार्य स्वेच्छा से अपनी जमीन यश गोटिया और विजय गोटिया के नाम स्थानांतरित कर रहे हैं।

फर्जी पाए गए सभी दस्तावेज

जब प्रशासन ने इस शपथ पत्र की जांच की, तो एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया। सबसे पहले, इस दस्तावेज पर नोटरी आनंद मोहन का कोई हस्ताक्षर मौजूद नहीं था। जब नोटरी से इस संबंध में पूछताछ की गई, तो उन्होंने साफ तौर पर इस शपथ पत्र को फर्जी करार दिया और बताया कि उन्होंने कभी भी इस दस्तावेज को सत्यापित नहीं किया। इसके अलावा, शपथ पत्र पर इस्तेमाल की गई नोटरी की मोहर भी जाली पाई गई, जिसे आरोपियों ने अलग से बनवाकर दस्तावेजों में चिपका दिया था। इस खुलासे के बाद प्रशासन और पुलिस ने मामले की गंभीरता को समझते हुए विस्तृत जांच शुरू की।

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कलेक्टर से शिकायत, जांच में फर्जीवाड़े की पुष्टि

इस घोटाले की भनक तब लगी जब अनुराग आचार्य और उनके सहयोगी आशुतोष पांडे को जमीन के दस्तावेजों की जांच के दौरान गड़बड़ियों का संदेह हुआ। जब उन्होंने कलेक्टर कार्यालय से जमीन से जुड़े रिकॉर्ड प्राप्त किए, तो नामांतरण के दस्तावेजों में कई विसंगतियाँ पाई गईं। इन संदेहों की पुष्टि के लिए उन्होंने 8 फरवरी को जबलपुर कलेक्टर कार्यालय में एक आधिकारिक शिकायत दर्ज कराई।

जबलपुर कलेक्टर ने दिए जांच के आदेश

कलेक्टर ने मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्काल जांच के आदेश दिए। तहसीलदार शाहपुरा को इस प्रकरण की जांच का जिम्मा सौंपा गया, जिन्होंने पटवारी से पूरे मामले की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा। जब पटवारी द्वारा जांच की गई और नामांतरण की प्रक्रिया के दौरान प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों की तुलना की गई, तो स्पष्ट हुआ कि यश गोटिया और विजय गोटिया ने अवैध रूप से जमीन को अपने नाम करवा लिया है। पटवारी की रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि नामांतरण की प्रक्रिया के दौरान कई स्तरों पर अनियमितताएँ हुईं, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि यह पूरी योजना पहले से बनाई गई थी। इस रिपोर्ट के आधार पर जिला प्रशासन ने तत्काल कार्रवाई की सिफारिश की और पुलिस को इस मामले में उचित धाराओं के तहत प्रकरण दर्ज करने के लिए निर्देशित किया गया।

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धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े पर होगी कार्रवाई

प्रशासन इस घोटाले को गंभीरता से ले रहा है और इसमें शामिल दोषियों के खिलाफ कड़ी कानूनी कार्रवाई करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। इस मामले में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 467 (फर्जी दस्तावेज तैयार करना), धारा 468 (धोखाधड़ी के उद्देश्य से जालसाजी), और धारा 471 (जाली दस्तावेजों का उपयोग करना) के तहत मामला दर्ज करने की सिफारिश की गई है। इसके अलावा, यदि जांच में यह सिद्ध होता है कि इस जालसाजी में किसी सरकारी अधिकारी या पटवारी की संलिप्तता रही है, तो उन पर भी कठोर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। प्रशासन का कहना है कि इस तरह की धोखाधड़ी को किसी भी स्थिति में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और दोषियों को न्याय के कटघरे में खड़ा किया जाएगा।

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दोषियों पर कसा जाएगा शिकंजा

अब इस मामले की विस्तृत जांच पुलिस और अन्य संबंधित विभागों द्वारा की जाएगी। इस जांच के दौरान दस्तावेजों की फॉरेंसिक जांच करवाई जाएगी ताकि यह पता चल सके कि किस स्तर पर और किसके माध्यम से फर्जी हस्ताक्षर और मोहरें तैयार की गईं। पुलिस इस प्रकरण में सभी संदिग्धों से पूछताछ करेगी और जरूरत पड़ने पर आरोपियों को गिरफ्तार भी किया जाएगा। इसके अलावा, यह भी देखा जाएगा कि क्या इस धोखाधड़ी में किसी प्रशासनिक अधिकारी या स्थानीय कर्मचारियों की मिलीभगत थी। यदि जांच में किसी भी सरकारी कर्मचारी की संलिप्तता सिद्ध होती है, तो उनके खिलाफ भी सख्त विभागीय और कानूनी कार्रवाई की जाएगी।

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 इतने सालों तक प्रशासन कैसे रहा अनजान

यह मामला प्रशासनिक लापरवाही की ओर भी इशारा करता है। सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि इतने बड़े स्तर पर फर्जीवाड़ा होते हुए भी इसे पहले क्यों नहीं पकड़ा गया? क्या इस पूरे खेल में किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी की मिलीभगत थी?

इस घटना ने यह साबित कर दिया है कि नामांतरण प्रक्रिया में दस्तावेजों की जांच की सख्त जरूरत है। यदि प्रशासन पहले से सतर्क रहता, तो इस तरह के घोटाले रोके जा सकते थे। अब देखने वाली बात यह होगी कि जिला प्रशासन और पुलिस कितनी जल्दी और प्रभावी तरीके से दोषियों को कानून के शिकंजे में लाते हैं और इस जालसाजी के पीछे की असली सच्चाई उजागर करते हैं।

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