जबलपुर में 44 पटवारियों पर गिरी गाज, ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ के तहत एक्शन

जबलपुर में 44 पटवारियों की लापरवाही पर प्रशासन ने सख्त कार्रवाई की है। तहसीलदार ने आदेश जारी कर इन पटवारियों का वेतन काटने का निर्णय लिया है। यह कदम ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ (No Work No Pay) नीति के तहत उठाया गया है।

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Neel Tiwari
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जबलपुर के शहपुरा तहसील में 44 पटवारियों की लापरवाही को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन ने उन पर सख्त कार्रवाई की है। तहसीलदार शहपुरा द्वारा जारी आदेश के अनुसार, इन पटवारियों के एक दिन का वेतन काटने का निर्णय लिया गया है। यह कार्रवाई ‘काम नहीं तो वेतन नहीं’ (No Work No Pay) की नीति के तहत की गई है, जिससे यह संदेश दिया गया है कि सरकारी कार्यों में लापरवाही बरतने वालों को आर्थिक दंड भुगतना पड़ेगा। यह निर्णय सरकारी योजनाओं को समय पर पूरा कराने और कर्मचारियों में जवाबदेही तय करने की दिशा में उठाया गया एक बड़ा कदम माना जा रहा है।

काम में लापरवाही बरतने पर कार्रवाई

यह कार्रवाई फार्मर रजिस्‍ट्री और आरओआर (Record of Rights) को आधार से लिंक करने की योजना में लापरवाही के कारण की गई है। यह योजना सरकार द्वारा किसानों के भूमि दस्तावेजों को डिजिटल रूप से एकीकृत करने और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए लागू की गई थी। इससे किसानों को उनके भू-अधिकारों की सुरक्षा मिलेगी और कृषि संबंधी सरकारी योजनाओं का लाभ सीधे मिल सकेगा।

हालांकि, शहपुरा तहसील के 44 पटवारियों ने इस महत्वपूर्ण कार्य को समय पर पूरा नहीं किया। जब सर्किल पीठासीन अधिकारियों द्वारा उनके कार्यों की समीक्षा की गई, तो पाया गया कि इन पटवारियों का कार्य स्तर अत्यंत निम्न था। इसकी रिपोर्ट तहसील प्रशासन को सौंपी गई, जिसके आधार पर तहसीलदार ने सभी 44 पटवारियों के 10 फरवरी का वेतन काटने का आदेश जारी कर दिया।

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10 फरवरी का काटा जाएगा वेतन

तहसीलदार शहपुरा द्वारा लिए गए इस निर्णय के तहत सभी 44 पटवारियों का 10 फरवरी का वेतन काटा जाएगा। इस कार्रवाई का उद्देश्य न केवल लापरवाह कर्मचारियों को दंडित करना है, बल्कि अन्य सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को भी यह संदेश देना है कि कार्य में कोताही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।

जबलपुर के प्रशासनिक महकमें में इस कदम को एक मिसाल के रूप में देखा जा रहा है, जिससे भविष्य में कोई भी अधिकारी या कर्मचारी अपने दायित्वों को निभाने में टाल मटोली ना करें। हाल के वर्षों में कई बार सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में ढिलाई के कारण किसानों और अन्य लाभार्थियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ा है। सरकार अब ऐसी लापरवाही पर अंकुश लगाने के लिए सख्त रुख अपना रही है।

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इनका काटा गया वेतन

इस सूची में कुल 44 पटवारी शामिल हैं, जिनके नाम हैं - अभिषेक साहू, अखिलेश कुमार, बलराम सिंह, चन्द्र शेखर चौधरी, गजेंद्र राठौर, माधुरी ठाकुर, प्रीति राजपूत, रघुवीर सिंह ठाकुर, रेखा शुक्ला, सचिन नायक, सुश्री विधि साहू, विद्याचरण खरे, विजय कुमार, विनय गजभिये, विवेक शुक्ला, आदर्श परिहार, अखिलेश पटेल, अनमोल यादव, अर्पित जादौन, बृजेश मालवीय, जवाहर लाल कुशराम, जूड अनंत कुजूर, मनजीत सिंह, प्रतीत तिवारी, राजेश तिवारी, शुभम विश्वकर्मा, शुभेन्द्र पटेल, वीरेन्द्र यादव, कीर्ति रघुवंशी, अभिनव देव, अनिल अठैय, दीपिका नामदेव, केशरी प्रसाद, किरण पाठक, मीना कामें, राजेन्द्र ठाकुर, राम किशोर त्यागी, संध्या नायक, शिवेन्द्र उरकड़े, सुनील ठाकुर, तरूण नागले, विजय कुमार चौधरी और सनिल पटेल।

इन पटवारियों की सूची प्रशासन द्वारा जारी की गई है, जिससे यह तो साफ है कि कार्रवाई केवल कुछ विशेष व्यक्तियों पर केंद्रित नहीं है, बल्कि सभी लापरवाह अधिकारियों को समान रूप से दंडित किया गया है।

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सरकारी योजनाओं में देरी से हितग्राहियों पर पड़ता है सीधा असर

राज्य सरकार पिछले कुछ वर्षों से प्रशासनिक कार्यों में डिजिटलीकरण और पारदर्शिता लाने के लिए कई योजनाएं चला रही है। फार्मर रजिस्‍ट्री और आरओआर को आधार से लिंक करने की योजना भी इसी दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था, जिससे किसानों को उनके भू-अधिकारों की सुरक्षा मिले और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ सीधा उनके खातों में प्राप्त हो सके। हालांकि, जब इस योजना को लागू करने की बारी आई, तो शहपुरा तहसील के 44 पटवारियों ने अपने कार्य में गंभीर लापरवाही बरती। कई स्थानों पर किसान बार-बार पटवारियों से संपर्क कर रहे थे, लेकिन उन्हें जवाब नहीं मिल रहा था। इससे न केवल सरकारी कामों की गति प्रभावित हुई बल्कि इस लेट लतीफी के चलते किसानों को भी अच्छा खासा परेशान होना पड़ा। इसी कारण प्रशासन ने अब ‘नो वर्क नो पे' की नीति अपनाई है, जिससे कर्मचारियों को समय पर कार्य पूरा करने के लिए बाध्य किया जा सके।

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पटवारियों में नाराजगी, संघ ने जताया विरोध

प्रशासन की इस कार्रवाई से पटवारी संघ नाराज है। पटवारी संघ के नेताओं का कहना है कि बिना उचित जांच के इतनी बड़ी संख्या में वेतन कटौती का निर्णय लेना अन्यायपूर्ण है। उनका कहना है कि कार्य में देरी का कारण केवल पटवारियों की लापरवाही नहीं थी, बल्कि इसमें कई तकनीकी और प्रशासनिक कारण भी थे। पटवारी संघ का तर्क है कि सर्वर की समस्याएं, इंटरनेट कनेक्टिविटी की कमी और अपर्याप्त संसाधन इस देरी के प्रमुख कारण रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रशासन ने इन पहलुओं को नजरअंदाज कर केवल पटवारियों को दोषी ठहराया है। संघ ने चेतावनी दी है कि यदि इस निर्णय को वापस नहीं लिया गया, तो वे विरोध प्रदर्शन कर सकते हैं या इस मामले को न्यायालय में भी ले जा सकते हैं।

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पटवारी एकजुट होकर फिर कर सकते हैं विरोध

इस कार्रवाई का सरकारी प्रशासन और कर्मचारियों पर व्यापक प्रभाव पड़ सकता है। यह पहली बार नहीं है जब सरकारी कार्यों में देरी के कारण अधिकारियों और कर्मचारियों पर आर्थिक दंड लगाया गया है, लेकिन इस तरह एक साथ 44 पटवारियों के खिलाफ कार्रवाई अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है। अब देखना यह होगा कि क्या पटवारी संघ इस फैसले के खिलाफ कोई कानूनी या हड़ताल जैसा कदम उठाता है या फिर प्रशासन अपने फैसले पर अडिग रहता है। अगर सरकार इस तरह की नीति को लगातार लागू करती रही, तो आने वाले दिनों में अन्य विभागों में भी इसी प्रकार की कार्रवाई देखने को मिल सकती है।

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