कबाड़खाना ब्लास्ट में आरोपियों को क्यों बचा रही जबलपुर पुलिस - हाईकोर्ट

जबलपुर में कबाड़ खाने में हुए ब्लास्ट में पुलिस के द्वारा की गई, लचर जांच की पोल हाईकोर्ट ने खोल कर रख दी है। कोर्ट ने अपने आदेश यह में लिखा है कि जबलपुर पुलिस इस मामले की जांच में बिल्कुल लापरवाह रही है

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Neel Tiwari
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जबलपुर में कबाड़ खाने में हुए ब्लास्ट में पुलिस के द्वारा की गई लचर जांच की पोल हाईकोर्ट ने खोल कर रख दी है। कोर्ट ने अपने आदेश यह में लिखा है कि जबलपुर पुलिस इस मामले की जांच में बिल्कुल लापरवाह रही है और बिना जांच के कुछ अधिकारियों को क्लीन चिट दी गई है। 

फरार शमीम कबाड़ी पहुचा दुबई

कबाड़खाने ब्लास्ट मामले में जमानत याचिकाओं यह बात सामने आ गई है कि जबलपुर से फरार हुआ शमीम कबाड़ी अब दुबई पहुंच चुका है। नागपुर से गिरफ्तार किए गए करीम सत्तार पटेल पर मीडिया को दी गई सूचना के अनुसार जबलपुर पुलिस ने यह आरोप लगाए थे कि उसने उसने फरार रहते हुए शमीम को नागपुर पनाह दी थी। पर करीम सत्तार पर जो एक और आरोप लगाया गया है। उसके अनुसार उसने एक फर्जी रेंट एग्रीमेंट पर शमीम कबाड़ी को जाली पासपोर्ट बनवाने में भी मदद की है। आरोपी करीम सत्तार की CDR रिपोर्ट से भी इस बात की पुष्टि हुई है कि वह शमीम कबाड़ी के लगातार संपर्क में था। और उसके दुबई पहुंचने के बाद उसने शमीम कबाड़ी की बहू से भी बात की थी।

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जबलपुर के रज़ा मेटल कबाड़खाने में हुए बम ब्लास्ट के बाद एक मज़दूर की जान चली गई थी। इस मामले की जांच के लिए नेशनल एजेंसी से लेकर ऑर्डिनेंस फैक्ट्री और जबलपुर प्रशासन ने भी जांच की थी। 2 महीने से भी अधिक समय बीत जाने के बाद भी इस ब्लास्ट का मुख्य आरोपी शमीम कबाड़ी अब तक पुलिस की गिरफ्त से दूर है क्योकि वह दुबई फरार होने में कामयाब हो गया है। इस मामले की जांच में प्रशासन सहित जिम्मेदार अधिकारियों को क्लीन चिट दे दी गई थी । लेकिन हाई कोर्ट में दो सह आरोपियों की जमानत याचिका में हुई अलग-अलग सुनवाई के दौरान अब सवाल यह खड़ा हुआ है कि आखिर पुलिस ने इस मामले के असली जिम्मेदार अधिकारी एवं संस्थाओं को क्लीन चिट क्यों दे दी है।

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फर्जी पासपोर्ट मामले में अधिकारियों को क्लीन चिट

इस मामले में नागपुर से गिरफ्तार किए गए करीम सत्तार पटेल पर लगाए गए आरोपों के अनुसार उसने फर्जी एग्रीमेंट पर शमीम कबाड़ी को पासपोर्ट बनवाने में भी मदद की है। इस पर भी उसे पासपोर्ट को कैंसिल करने के लिए तो 11 जून को एक लेटर लिखा गया है पर पासपोर्ट वेरिफिकेशन के लिए दिए गए डॉक्यूमेंट की कोई भी जानकारी नहीं मांगी गई वहीं फर्जी दस्तावेजों पर बने पासपोर्ट की जांच करने वाली किसी अथॉरिटी से भी सवाल नहीं किया गया। दूसरी ओर  पासपोर्ट का वेरिफिकेशन भी पुलिस के द्वारा किया जाता है । तो कोर्ट ने अपने आदेश में इस बात की भी जानकारी मांगी कि जिस पुलिस अधिकारी ने इस फर्जी रेंट एग्रीमेंट को सत्यापित किया था उसके ऊपर क्या कार्य भाई की गई है । दस्तावेज इकट्ठे करने से लेकर जिम्मेदार अधिकारियों को बचाने तक इस मामले में  जबलपुर पुलिस की कमजोर जांच खुल कर सामने आ गई है।

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ऑर्डिनेंस फैक्ट्री खमरिया को क्लीन चिट

इस मामले के यह भी सामने आया था कि सुल्तान अली के लाइसेंस पर फैक्ट्री से यह कबाड़ खरीदा जाता था। इसके बाद सुल्तान अली को सह आरोपी बनाया गया था । मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की एकल पीठ में जस्टिस आहलूवालिया की एकल पीठ में मामले के सह आरोपी सुल्तान अली की जमानत याचिका पर सोमवार   को सुनवाई हुई। इस मामले की पिछली सुनवाई में  आरोपी के द्वारा अपना कबाड़ लाइसेंस अदालत में जमा किया गया था जिसकी जांच के बाद हुई सुनवाई में सरकार की ओर से अधिवक्ता ने पक्ष रखा कि आरोपी के पास कबाड़ का लाइसेंस था जिस पर वह सिर्फ कबाड़ खरीद सकता था जिंदा बम नहीं। इस पर कोर्ट की ओर से टिप्पणी की गई की कबाड़ में जिंदा बम ना होने की जिम्मेदारी आखिर किसकी है ? जस्टिस अहलूवालिया ने कहा कि फायरिंग रेंज में चलाए गए सभी बम कबाड़ नहीं होते इसमें से कुछ बम जिंदा भी रह जाते हैं। तो यह जिंदा बम यदि कबाड़ तक पहुंच रहे हैं तो इसमें ऑर्डिनेंस फैक्ट्री खमरिया के अधिकारियों की जिम्मेदारी आखिर क्यों नहीं तय की गई। वहीं सरकार के अधिवक्ता की ओर से इसे दुर्घटना बताया गया है ना की कोई प्रायोजित बम ब्लास्ट तो कबाड़ से इन जिंदा बमों को अलग करने की जवाब देही आखिर किसकी थी ?  शासन की ओर से इस मामले में जवाब देने के लिए एक हफ्ते का समय मांगा गया है।

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सह आरोपी को जमानत और पुलिस को फटकार

नागपुर से गिरफ्तार किए गए करीम सत्तार को जबलपुर पुलिस की कमजोरी जांच का फायदा मिला है। कोर्ट ने सह आरोपी को यह कहते हुए जमानत दी है कि जबलपुर पुलिस ने इस मामले की जांच बहुत ही अरुचि और लापरवाही से की है। इसलिए कोर्ट के पास जमानत देने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता क्योंकि जब कोई इन्वेस्टिगेशन ही नहीं हुआ है तो उसे जेल में नहीं रखा जा सकता

राज्य की जांच एजेंसियां सतर्क और जबलपुर पुलिस लापरवाह

मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के जस्टिस जीएस अहलूवालिया ने अपने आदेश में लिखा कि सरकारी अधिवक्ता की ओर से यह पक्ष रखा जा रहा है कि राज्य सरकार की एजेंसियां इस मामले की जांच को बहुत ही गंभीरता से ले रही हैं। घटनास्थल पर एनआईए और एनएसजी जैसी एजेंसीयों ने भी इंस्पेक्शन किया है। अब यह आश्चर्य का विषय है कि जब राज्य से इतनी गंभीरता से ले रहा है उसके बाद भी जबलपुर पुलिस इस मामले की जांच में बेहद लापरवाही से काम कर रही है। जबलपुर पुलिस बिना किसी जांच के कुछ अधिकारियों को क्लीन चिट दे चुकी है। कोर्ट ने जबलपुर के पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह से भी यह प्रश्न किया कि इस मामले की जांच कर रहे चंद्रकांत झा जिन्होंने बिल्कुल प्रतिकूल और लापरवाह तरीके से इस मामले की जांच की है। जो जांच उनके पास आने के बाद इस बात में भी रुचि नहीं रखने की केस डायरी भी ओपन हुई है या नहीं। क्या अब यह जांच उनके ही हाथों में रहनी चाहिए?

ढुलमुल जांच पर लगातार खड़े हो रहे सवाल

यह पहला मामला नहीं है जब जबलपुर के पुलिस अधीक्षक आदित्य प्रताप सिंह कोर्ट ने जांच को लेकर सवाल किया है। इसके पहले भी एक हत्या के मामले मे आधा अधूरा चालान कोर्ट में पेश कर देने के मामले में कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को हाजिर होने का आदेश देते हुए जांच अधिकारी पर कार्यवाही करने का निर्देश दिया था। वहीं अब पूरे शहर को दहला देने वाले कबाड़खाने बम ब्लास्ट की जांच में भी लापरवाही का मामला सामने आ गया है।

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