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Photograph: (the sootr)
JABALPUR. सीवेज ट्रीटमेंट प्लान और नर्मदा स्वच्छता को लेकर जबलपुर नगर निगम के बड़े-बड़े दावों की हाईकोर्ट में पोल खुल गई। सुनवाई में सीवेज प्लांट को लेकर बड़ा खुलासा हुआ। जबलपुर के 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अपनी आधी क्षमता पर भी काम नहीं कर पा रहे हैं।
जबलपुर में नालों के दूषित पानी से सब्जियां उगाई जा रही है। इनके सेवन से कैंसर जैसी बीमारियों की आशंका पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। चीफ जस्टिस ने मीडिया रिपोर्ट्स को गंभीरता से लेते हुए स्वतः संज्ञान में जनहित याचिका क्रमांक 42396/2025 दर्ज की थी। जिसकी सुनवाई बुधवार 3 दिसंबर को हुई।
हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश शासन और नगर निगम जबलपुर से एक हफ्ते में शपथ-पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 18 दिसंबर 2025 को निर्धारित की गई है।
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आधी क्षमता पर काम कर रहे 13 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट
कोर्ट को न्याय मित्रों अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और अधिवक्ता पुष्पेंद्र कुमार शाह ने जानकारी दी। उन्होंने बताया कि शहर में हर रोज 174 मेगालीटर (MLD) गंदा पानी नालों में बहता है। निगम के पास 13 STP हैं, जिनकी कुल क्षमता 154.38 MLD प्रतिदिन है। लेकिन, इन प्लांटों में सिर्फ 58 मेगालीटर पानी का ही ट्रीटमेंट हो पा रहा है।
इसका सीधा मतलब यह है कि भारी मात्रा में शहर का गंदा अवशिष्ट बिना साफ हुए ही, सीधे पवित्र नर्मदा और हिरन नदी में पहुंच रहा है। यह बहुत खतरनाक स्थिति है, जो हमारे सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए गंभीर खतरा बन गई है।
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दूषित नालों के पानी से उगाई सब्जियां खतरनाक
जबलपुर हाईकोर्ट को बताया गया कि कई क्षेत्रों में किसान नालों का गंदा पानी से सब्जियों की सिंचाई कर रहे हैं। इस दूषित पानी में बैक्टीरिया, रसायन,भारी धातुएं और औद्योगिक अवशेष पाए जाते हैं।
ऐसे पानी में उगाई गई सब्जियां रोज खाने पर कैंसर सहित कई बीमारियों को जन्म दे सकती हैं। न्याय मित्रों ने इस स्थिति को बेहद खतरनाक बताते हुए इसे सीधे-सीधे नागरिकों के जीवन से जुड़ा मामला है।
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करोड़ों खर्च फिर भी हालत जस के तस
सुनवाई के दौरान यह बात भी सामने आई कि वर्षों से सीवेज प्रबंधन के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं। अमृत 2.0 योजना के तहत नगर निगम जबलपुर को 1202.38 करोड़ रुपए स्वीकृत हुए हैं। ट्रीटमेंट प्लांट अपनी क्षमता का आधा भी उपयोग नहीं कर रहे।
NGT ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि बिना ट्रीटमेंट पानी को नदी में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित होना चाहिए। जमीनी स्तर पर स्थितियां इसके विपरीत दिखाई दे रही हैं। हाईकोर्ट ने इस पर भी नाराजगी व्यक्त की है।
आपको बता दें कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लान को लेकर नगर निगम सहित महापौर ने कई बार अपनी पीठ थपथपाई थी। यहां तक की महापौर ने ट्रीटमेंट के बाद निकले पानी को पीकर इसकी शुद्धता भी बताई थी। लेकिन अपनी 50% क्षमता पर भी काम ना कर पाने के कारण, करोड़ों की लागत से बने यह ट्रीटमेंट प्लांट सिर्फ नाम बड़े और दर्शन छोटे नजर आ रहे हैं।
हाईकोर्ट पहुंचने के बाद प्रशासन हुआ सक्रिय
प्रकरण हाईकोर्ट पहुंचने के बाद प्रशासन हरकत में आया था। कलेक्टर जबलपुर के निर्देश पर एक टीम गठित की गई थी। टीम ने लगातार उन स्थानों पर कार्रवाई की जहां नालों के गंदे पानी से सब्जियों की सिंचाई हो रही थी। कई स्थानों पर पानी के पंप जब्त किए गए। किसानों को इस अवैध व खतरनाक प्रथा को रोकने के निर्देश दिए गए।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि केवल कार्रवाई का दावा पर्याप्त नहीं होगा। सरकार और नगर निगम दोनों को प्रमाण सहित विस्तृत रिपोर्ट शपथ-पत्र के रूप में प्रस्तुत करनी होगी। कोर्ट को यह भी बताना होगा कि एनजीटी के आदेश के बाद प्रशासन ने क्या-क्या कदम उठाए।
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18 दिसंबर को अगली सुनवाई
नगर निगम और राज्य सरकार की ओर से वकीलों ने कोर्ट को भरोसा दिया है। उन्होंने कहा कि अगली सुनवाई से पहले कार्रवाई का पूरा विवरण शपथ पत्र में दे दिया जाएगा। अब यह साफ है कि यदि एक सप्ताह के अंदर यह जवाब नहीं दिया गया। तो हाई कोर्ट इस मामले में और भी कड़े निर्देश जारी कर सकता है। सवाल अब भी यही है कि आखिर प्लांट होते हुए भी नदी में कच्चा सीवेज क्यों जा रहा है, और इस बड़ी लापरवाही के लिए कौन जिम्मेदार है।
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