कल रात मोहर्रम का चांद दिखने के साथ ही इस्लामिक नए साल की शुरुआत हो गई है। ऐसे में आज देश भर में ताजिए रखे जाएंगे। ग्वालियर में भी ताजिए सजाए जाएंगे। यहां खास बात यह है कि ग्वालियर के इमाम बाड़े में पहला ताजिया सिंधिया राजपरिवार का सजता है। सिंधिया राजपरिवार की यह पुरानी परंपरा निभाने आज ज्योतिरादित्य सिंधिया गोरखी स्थित इमामबाड़े में पहुचेंगे ( Jyotiraditya Scindia Tajiya )।
ताजिए पर सिंधिया की सेहराबंदी
ग्वालियर में गोरखी के इमामबाड़े में आज मोहर्रम के ताजिए सजेंगे। इसमें पहला ताजिया सिंधिया राजपरिवार का होगा। इसके लिए ताजिए की चौकी को धोया गया है। गोरखी स्थित इमाम बाड़े में चौकी रख दी गई है।
शाम 5 बजे ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां पहुंचेंगे। इस दौरान सिंधिया की सेहराबंदी होगी। परिवार की परंपरा के अनुसार शहर काजी ग्वालियर राजघराने के महाराज की सेहराबंदी करते हैं। इसके बाद फातिहा पढ़कर दुआ मांगी जाती है। हर साल सिंधिया यह परंपरा निभाने पहुंचते हैं।
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पीढ़ियों से चली आ रही परंपरा
मोहर्रम के दिन गोरखी के इमामबाड़े में ताजिया रखने की परंपरा सिंधिया परिवार में पीढ़ियों से चली आ रही है। ग्वालियर के शासक होने के नाते सिंधिया परिवार पहले समय से सभी त्योहार जनता के साथ मनाता आया है। इसमें हिंदुओं के साथ-साथ इस्लामिक त्योहार भी शामिल हैं।
मोहर्रम का ताजिया रखने की परंपरा सबसे पहले प्रथम माधो राव सिंधिया ने शुरू की थी। प्रथम माधो राव सिंधिया, ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया के दादा थे। शहर का पहला ताजिया रखने के साथ-साथ सिंधिया परिवार का सदस्य ताजिए पर पहुंचकर सेहराबंदी भी करवाता है।
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पिछले साल कुलदेवता की पूजा की थी
ज्योतिरादित्य सिंधिया हर साल ताजिए के सामने सेहराबंदी करवाते हैं। पिछले साल इस दिन जब सिंधिया गोरखी पहुंचे तो पहले कुलदेवता की पूजा की थी। सिंधिया परिवार के राज पुरोहित ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से परिवार और पूरे ग्वालियर चंबल अंचल की सुख शांति के लिए पूजा कराई थी। कुलदेवता की पूजा के बाद सिंधिया ने इमाम बाड़े में सेहराबंदी कराई थी।
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इस्लामिक नए साल की शुरुआत है मोहर्रम
इस्लाम में मोहर्रम का महीना बहुत खास होता है। इसे रमजान के बाद दूसरा सबसे पवित्र महीना माना जाता है। दरअसल मोहर्रम इस्लामिक नव वर्ष की शुरुआत का महीना होता है। इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की मौत हुई थी। इसलिए मोहर्रम को मातम का महीना भी माना जाता है। इस महीने की 10वीं तारीख को आशूरा कहते हैं। इस्लाम को मानने वालों में इस दिन का खासा महत्व होता है। इस दिन कर्बला की जंग में पैगंबर हजरत मोहम्मद के छोटे नवासे हजरत इमाम हुसैन शहीद हुए थे।
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ताजिया क्या है ?
मोहर्रम के दौरान ताजिए बनाए जाते हैं। ताजिया लकड़ी, रंगीन कागज और कपड़े से बनी एक गुंबदनुमा आकृति है। इसे इमाम हुसैन की कब्र की प्रतिकृति के रूप में समझा जा सकता है। ताजिया सजने की शुरुआत मोहर्रम के पहले दिन से हो जाती है। इसके बाद 10वें दिन यानी जिस दिन इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, इस दिन ताजिया को कर्बला में दफन कर दिया जाता है।