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कैलाश विजयवर्गीय (भगवा स्कार्फ में ), सुमित्रा महाजन (क्रीम साड़ी में), हितानंद शर्मा (सफेद कुर्ते में), सुमित मिश्रा (पीच हाफ कोट में), श्रवण चावड़ा (नेवी ब्लू हाफ कोट में)
नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को उनके समर्थक बॉस के नाम से बुलाते हैं। इंदौर में बीजेपी संगठन के दोनों पद इंदौर नगराध्यक्ष और इंदौर जिला ग्रामीण अध्यक्ष पर जिस तरह से वह अपने दोनों व्यक्ति को लेकर आए हैं, उससे साबित हो गया कि इंदौर की राजनीति में वह बॉस ही हैं। चाहे बात पूर्व स्पीकर सुमित्रा महाजन की करें, विधायक मालिनी गौड़ की, प्रदेश संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा की या फिर केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के सहारे आड़े आ रहे मंत्री तुलसी सिलावट की। सभी को उन्होंने इस मामले में मात दे दी। राजनीति में कुछ की कुर्बानी भी देनी होती है और इस मामले में उन्होंने इस पाठ को याद रखा और इस घटनाक्रम में टीनू जैन और चिंटू वर्मा दोनों कुर्बान हो गए। हालांकि इनके लिए आगे रास्ता निकाला जाएगा।
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इस तरह चलती गई चालें, पिटते गए नेता-
- कहीं ना कहीं रायशुमारी में नंबर का पेंच फंसेगा, इसके लिए विधायक रमेश मेंदोला और गोलू शुक्ला ने मोर्चा संभाला और इंदौर एक, दो, तीन से सुमित मिश्रा को आगे किया गया, विकल्प में टीनू जैन रखे गए। सभी मिली-जुली कुश्ती नहीं रहे, इसके लिए महापौर ने टीनू जैन को पहले और फिर बबलू शर्मा को आगे किया। सुमित मिश्रा के नंबर आगे हो गए।
- शहर में बाकी विधायक मालिनी गौड़, मधु वर्मा, महेंद्र हार्डिया किसी एक नाम पर एकजुट थे ही नहीं, इसलिए रायशुमारी में इन सभी के नाम जिसमें खासकर मुकेश राजावत थे वह पिट गए।
- इधर ग्रामीण में नंबर गेम रायशुमारी का फेल था, क्योंकि यहां स्थितियां उल्टी है, इसमें विधायक उषा ठाकुर, मनोज पटेल दोनों ही मंत्री विजयवर्गीय के खिलाफ है। मंत्री तुलसी सिलावट ने भी समर्थक अंतर दयाल के लिए अलग राह पकड़ ली। यहां उनके करीबी चिंटू वर्मा का विरोध हो गया।
- चिंटू वर्मा के खिलाफ ग्रामीण के सभी नेता प्रदेश सगंठन महामंत्री हितानंद शर्मा से मिले, वह सहमत हो गए और चिंटू की कुर्सी खतरे में आ गई। इन सभी ने मंत्री सिलावट के ही नाम अंतर दयाल को आगे कर दिया।
- यह खबर विजयवर्गीय तक पहुंची, उन्होंने नया खेल कर दिया, जिसमें सब उलझ गए। वह धार जिले के प्रभारी मंत्री है, और धार संसदीय सीट में महू विधानसभा आती है, इसके चलते धार के नेता भी ग्रामीण जिलाध्यक्ष इंदौर की रायशुमारी में थे। मंत्री विजयवर्गीय ने खुद श्रवण सिहं चावड़ा का नाम आगे नहीं बढ़ाते हुए धार के एक वरिष्ठ नेता के जरिए संगठन के पास चावड़ा का नाम आगे कर दिया।
- ग्रामीण में बाकी नेताओं और हितानंद शर्मा किसी को भी यह खेल समझ नहीं आया, वह चावड़ा को संगठन से आया निष्पक्ष तीसरा उचित नाम और यह सोचकर सहमत हो गए चलो ग्रामीण से चिंटू को हम रोकने में कामयाब हो गए और निष्पक्ष नाम सामने आ गया, हमारी जीत हुई। इस तरह मंत्री विजयवर्गीय ने रायशुमारी में पिछड़े चिंटू को पीछे तो किया लेकिन अपने पहले से तय बैकअप प्लान के जरिए श्रवण को चुपचाप ले आए।
- बात नगराध्यक्ष की करें तो सुमित मिश्रा जब दौड़ में पिछड़े और टीनू जैन तय हो गए। उल्लेखनीय है कि टीनू को संगठन से फोन तक चला गया था कि संगठन का ध्यान रखिएगा आपको नगराध्यक्ष की जिम्मेदारी दी जा रही है।
- यह बात विधायक मेंदोला और शुक्ला को पता चली तो उन्होंने कैलाश विजयवर्गीय से बात की और कहा कि टीनू जैन की जगह सुमित ही हमारे लिए संगठन के हिसाब से बहुत जरूरी है। पूर्व विधायक और मंत्री के पुत्र आकाश उनके लिए तैयार नहीं थे। लेकिन मंत्री विजयवर्गीय दो कारण से मेंदोला और शुक्ला की बात से सहमत थे पहला कि वह अपना गुट एक बनाए रखना चाहते थे और जीतू कांड के बाद खराब हुई छवि के बाद सुमित को लाकर खासकर इंदौर दो की ताकत दिखाना चाहते थे। वहीं दूसरी राजनीतिक बात टीनू जैन नगराध्यक्ष बने तो वह स्वाभाविक तौर पर अगले विधानसभा चुनाव में विधायक टिकट के दावेदार होंगे, ऐसे में आकाश विजयवर्गीय के लिए मुश्किलों हो सकती है।
- इन बातों के बाद मंत्री विजयवर्गीय ने तत्काल हितानंद शर्मा को फोन किया। उन्होंने साफ कर दिया कि सुमित ही हमारा नाम है, यह फाइनल है। थोड़ी फोन पर बहस भी हुई, तब मंत्री ने साफ कर दिया रायशुमारी भी देख लीजिए उन्हीं का नाम सबसे आगे हैं, जब ग्रामीण में आप उसका हवाला दे रहे हैं तो फिर नगर में भी देखिए। साथ ही कहा कि हर क्षेत्र में उनके नेता का मान रखा जा रहा है तो फिर इंदौर में क्यों नहीं। इसके साथ ही फोन रख दिया गया।
- फिर इसके साथ ही इस मामले में ब्राह्मण कार्ड भी जमकर खेल गया। इसके चलते हितानंद शर्मा और प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा भी सुमित के नाम पर सहमत हो गए। वहीं गोलू शुक्ला और रमेश मेंदोला भी ब्राह्मण है।
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आखिर तक ऐसे चला शह-मात का खेल
इसमें ऐन वक्त पर ताई सुमित्रा महाजन की भी एंट्री हुई और उन्होंने दिल्ली संगठन में बीएल संतोष को फोन किया। सूत्रों के मुताबिक, उन्होंने मुकेश राजावत के नाम को आगे किया। इसके बाद एक बार फिर दिल्ली से भोपाल को फोन गया कि एक बार और नाम को लेकर विचार कर सभी से बात की जाए। उधर सात दिन पहले हितानंद शर्मा, सुहास भगत की इंदौर में फिर मुलाकातें हुई, दोनों साथ ही रहे। इसमें फिर से एक बार सारी स्थितियों पर बात हुई कि हम नगर में क्या और कोई नाम ला सकते हैं, क्या एक बार फिर गौरव रणदिवे फिर रिपीट हो सकते हैं, लेकिन पार्टी की गाइडलाइन साफ थी कि चार साल रह चुके वालों को फिर पद नहीं देना है।
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क्यों डर रहा था संगठन
ग्रामीण में चिंटू और शहर में सुमित दोनों पर सीधी मुहर लगी है कि यह मंत्री कैलाश विजयवर्गीय गुट के हैं। ऐसे में संगठन को इंदौर में अन्य नेताओं की चिंता सता रही थी कि सीधे गुटबाजी होगी और कोई भी विषय होगा तो पार्टी में निष्पक्ष फैसला नहीं होगा। इंदौर में संगठन एक गुट के हवाले हो जाएगा। संगठन को लगा कि कम से कम चिंटू वर्मा के लिए तो विरोध का मंच व्यवस्थित तैयार है तो यहां तो हम उन्हें हटा सकते हैं, लेकिन जो बात चिंटू के लिए खिलाफ गई वही सुमित के पक्ष में थी। इसलिए उनके हाथ नगर के लिए बंध गए। संगठन को लगा कि वह बैलेंस कर रहे हैं कि नगर में मंत्री गुट को दे दिया और ग्रामीण में श्रवण को लाकर संगठन को आगे कर दिया, लेकिन वास्तव में ग्रामीण में भी संगठन और दूसरे नेता पिट गए और मंत्री कैलाश विजयवर्गीय अपने बैकअप प्लान से अपने ही व्यक्ति को जिलाध्यक्ष ग्रामीण में भी लेकर आ गए।
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