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Photograph: (the sootr)
BHOPAL.मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री एंदल सिंह कंसाना एक बार फिर अपने बयान को लेकर विवादों में घिर गए हैं। खजुराहो में मीडिया से चर्चा के दौरान उन्होंने कहा कि “प्याज की आवक अच्छी हो रही है, इसलिए किसान प्याज फेंक रहे हैं।” उनका कहना था कि कांग्रेस शासन में पानी नहीं मिलता था, इसलिए किसानों की प्याज की फसल ही नहीं होती थी।
किसानों के गुस्से में नई चिंगारी
मंत्री के इस बयान के बाद किसानों में नाराज़गी बढ़ गई है। किसान संगठनों का सवाल है कि अगर आवक अच्छी है, तो दाम गिरने का जिम्मेदार कौन है? और किसान सड़क पर प्याज क्यों फेंक रहे हैं?
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कंसाना का तर्क- पानी, बिजली और सड़क अब बेहतर
कंसाना ने दावा किया कि मौजूदा सरकार के दौर में सिंचाई, बिजली और सड़कों की उपलब्धता बेहतर हुई है। उन्होंने कहा कि इससे पैदावार बढ़ी है। इसी वजह से प्याज की आवक ज्यादा हो रही है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि बाजार भाव गिरने की वजह सप्लाई नहीं, बल्कि मूल्य समर्थन नीति की कमजोरियां हैं।
कंसाना के पुराने विवादित बयान भी सुर्खियों में
ऐंदल सिंह कंसाना का नाम पहले भी कई विवादास्पद बयानों के कारण चर्चा में रहा है। उन पर आरोप लगते रहे हैं कि वे महत्वपूर्ण मुद्दों को हल्के में लेते हैं। कई बार तथ्यों से इतर टिप्पणियां कर देते हैं।
पुराने बयान जिनसे मचा था शोर
कंसाना पहले भी किसानों से जुड़े मुद्दों पर असंवेदनशील बयान दे चुके हैं। एक मौके पर उन्होंने फसल नुकसान पर किसानों को “सिस्टम समझने की जरूरत” बताई थी। इस पर विपक्ष ने उन्हें जमीनी हकीकत से कटे होने का आरोप लगाया था। वहीं एक अन्य बयान में उन्होंने सरकारी योजनाओं को लेकर ऐसा दावा किया था जिसे बाद में खुद मंत्रालय को स्पष्ट करना पड़ा था।
विपक्ष को मिला नया हमला बोलने का मौका
कांग्रेस ने मंत्री के ताजा बयान को “किसानों का अपमान” बताया है। विपक्ष का कहना है कि सरकार किसानों की समस्याओं को समझने के बजाय टालने की कोशिश कर रही है। कई नेताओं ने कहा कि प्याज फेंकना मजबूरी है, न कि “अच्छी आवक” का परिणाम।
कहां फंसा है प्याज का मसला?
कीमतों में भारी गिरावट राज्य के कई मंडियों में प्याज के दाम लागत मूल्य से भी नीचे चले गए हैं। किसान बड़े पैमाने पर नुकसान से परेशान हैं और कई जगह विरोध प्रदर्शन हो चुके हैं।
समर्थन मूल्य की मांग फिर तेज
किसान संगठनों ने सरकार से मांग की है कि प्याज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाए। उनका कहना है कि बिना MSP के हर बार किसान को घाटे का सामना करना पड़ता है।
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आगे क्या?
राजनीतिक हलकों में अब इस मुद्दे पर तीखी बहस चल रही है। किसानों के गुस्से और विपक्ष के हमले के बीच सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह प्याज खरीद नीति और बाजार प्रबंधन पर ठोस कदम उठाए।
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