क्रांति गौड़ के उम्दा प्रदर्शन के बाद बर्खास्त पिता को फिर नौकरी देगी सरकार, उर्वशी पूछती है– मेरे पापा ने क्या गुनाह किया?

क्रांति गौड़ की क्रिकेट में सफलता के बाद उनकी बर्खास्तगी पर सवाल उठे हैं। उनके पिता मुन्ना सिंह गौड़ को 2012 में पुलिस सेवा से बर्खास्त किया गया था। मुख्यमंत्री ने क्रांति की अपील पर उन्हें फिर से नौकरी देने का वादा किया है।

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Photograph: (THESOOTR)

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BHOPAL. क्रांति गौड़...एक नाम, जिसने मैदान पर गेंद से जो कमाल किया, उसने पूरे प्रदेश और देश को गर्व और गौरव से भर दिया है। भारतीय महिला क्रिकेट टीम की यह ‘छोटी सी शेरनी’ अब हर दिल की धड़कन बन चुकी है।

महिला क्रिकेट वर्ल्डकप में उनके प्रदर्शन ने सबको दीवाना बना दिया। सोशल मीडिया पर क्रांति का नाम ट्रेंड कर रहा है। गली-गली में बच्चियां अब उन्हीं की तरह गेंद और बल्ला थामने का ख्वाब देख रही हैं, लेकिन इस जीत की चमक के बीच एक ऐसी कहानी भी है, जो उतनी ही तीखी, उतनी ही सच्ची और उतनी ही सवाल खड़ी करने वाली है।

जीत जिसने जिंदगी बदल दी

सबसे पहले बात क्रांति की सफलता की करते हैं। उनकी जीत ने परिवार की जिंदगी में जैसे बहार ला दी है। छतरपुर जिले के घुवारा के छोटे से घर में अब खुशियों की गूंज है। ढोल-नगाड़े बज रहे हैं। लोग बधाइयां दे रहे हैं। फिल्मी गानों पर रिश्तेदार झूम रहे हैं। वह घर, जो बरसों तक सन्नाटे में डूबा था, अब रोशनी में नहाया हुआ है।

राज्य सरकार ने क्रांति को एक करोड़ रुपए की प्रोत्साहन राशि देने का ऐलान किया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा है कि छतरपुर में स्टेडियम बनाया जाएगा। बीसीसीआई और आईसीसी की तरफ से क्रांति को करोड़ों का इनाम मिलेगा। 15 नवंबर को भगवान बिरसा मुंडा की जयंती पर जबलपुर में होने वाले स्टेट लेवल प्रोग्राम में क्रांति को सम्मानित किया जाएगा।

क्रांति की यह जीत न सिर्फ उनकी, बल्कि उन हजारों बेटियों की जीत है, जो संघर्ष की जमीन से उठकर सपनों का आसमान छूना चाहती हैं।
पर अब सवाल ये है... क्या बेटी की जीत पिता की गलती को मिटा सकती है?

क्रांति के पिता मुन्ना सिंह गौड़ कभी पुलिस सेवा में थे। वे वर्ष 2012 से बर्खास्त चल रहे हैं। सीएम मोहन यादव ने क्रांति की अपील पर उन्हें दोबारा नौकरी पर रखने को लेकर ‘नियमों के तहत कार्रवाई’ का भरोसा दिलाया है, लेकिन यहीं से कहानी एक नए मोड़ पर आ जाती है। क्योंकि सवाल यह है कि क्या एक पिता की गलती को बेटी की उपलब्धि से तौला जा सकता है? 

क्या सेवा शर्तों का उल्लंघन एक ‘राष्ट्र गौरव बेटी’ की कामयाबी से भारी पड़ सकता है?

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2012 का वो दिन...

साथी सिपाही ने चेहरे पर मारी थी बंदूक की बट

क्रांति गौड़ के पिता मुन्ना सिंह गौड़ ने बताया कि वह वर्ष 1993 में पुलिस सेवा में बतौर सिपाही भर्ती हुए ​थे। वर्ष 2007 में थाना भगवां में पदस्थापना के दौरान थाने से सात किमी. दूर चुनाव ड्यूटी में जाना पड़ा। ड्यूटी समय को लेकर उनका अपने साथी सिपाही मुन्नीलाल पाल से कहासुनी हुई। मुन्नीलाल ने गुस्से में आकर मुझे बंदूक की बट दे मारी। 

डॉक्टर की लापरवाही ने शराबी बता दिया

इसकी शिकायत मैंने तत्कालीन थाना प्रभारी एलपी अहिरवार से की। उन्होंने हम दोनों सिपाहियों को मेडिकल के लिए भेजा। मेरे चेहरे पर सूजन थी। एमएलसी में तत्कालीन चिकित्सक शैकवार ने मेरी रिपोर्ट में मिलीभगत के चलते अल्कोहल सेवन लिख दिया,जबकि मैंने शराब नहीं पी थी। प्रकरण में करीब तीन साल चली विभागीय जांच के बाद हम दोनों सिपाहियों को बर्खास्त कर दिया गया। 

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लगाई थी बेगुनाही की गुहार 

गौड़ ने बताया कि मैंने तत्कालीन पुलिस महानिदेशक से भी अपनी बेगुनाही की गुहार लगाई। इसका परिणाम यह हुआ कि रेंज के तत्कालीन उप पुलिस महानिरीक्षक वेदप्रकाश शर्मा ने प्रकरण की सुनवाई की और दोनों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी। मुन्नीलाल पाल की सेवा को 20 साल हो चुके थे,लिहाजा पाल को तो रिटायरमेंट के बाद मिलने वाली सुविधाएं मिली,लेकिन मेरी सेवा सिर्फ 19 साल होने से मुझे पेंशन सुविधा का लाभ नहीं मिल सका। 

अब वही पिता फिर से खाकी में लौटेंगे?

अब क्रांति की चमकदार सफलता के बाद मुख्यमंत्री ने उनके पिता को दोबारा नौकरी पर रखने को लेकर संवेदनशीलता दिखाई है। डॉ. मोहन यादव ने कहा कि क्रांति ने देश का मान बढ़ाया है, उनकी भावनाओं का सम्मान किया जाएगा। नियमानुसार कार्रवाई होगी। 

सरकार की यह प्रतिक्रिया जनता के बीच नया भाव पैदा कर रही है। लोग कह रहे हैं कि यदि कोई बेटी अपने पिता का सिर ऊंचा कर सकती है तो क्या उसके पिता को दूसरा मौका नहीं मिलना चाहिए? वहीं, विभाग के भीतर यह चर्चा है कि सेवा शर्तें नियमों से बंधी हैं, भावनाओं से नहीं।

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सरकारी क्वार्टर में बीते 13 साल की जंग

क्रांति गौड़ के पिता मुन्ना सिंह गौड़ और उनका परिवार आज भी सरकारी क्वार्टर में रह रहा है, जबकि वे बरसों से सेवा में नहीं हैं। उन्हें नोटिस दिए गए कि मकान खाली करें, लेकिन घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वे कहीं और जा सकें। वरिष्ठ अधिकारियों ने मानवीय दृष्टिकोण से सॉफ्ट रुख अपनाया। परिवार वहीं रह गया।

अब प्रदेश में दो आवाज, संवेदना बनाम सख्ती

क्रांति की जीत ने एक ओर जहां गर्व का माहौल बनाया है। वहीं दूसरी ओर पुलिस महकमे में यह बहस तेज है कि क्या भावनाओं के नाम पर अनुशासन का गला घोंटा जा सकता है? 

वरिष्ठ अधिकारी मानते हैं कि संवेदना जरूरी है, लेकिन सिस्टम के अपने नियम हैं। दूसरी तरफ जनता कह रही है कि जिस बेटी ने देश का मान बढ़ाया, उसके पिता को भी मान मिलना चाहिए। 

अब एक दूसरे उदाहरण से समझिए...

Chandramohan Singh Bhadauria

मुन्ना सिंह की ही तरह देवास जिले के टोंक खुर्द निवासी चंद्रमोहन सिंह भदौरिया मध्यप्रदेश पुलिस में थे। उन्हें सरकार ने वीआरएस देकर घर बिठा दिया। ये तब है, जब भदौरिया ने मध्यप्रदेश के लिए कई बार अपनी जान की बाजी तक लगा दी।

वे कहते हैं, ये बात 2005 की है। मैं बालाघाट जिले के लांजी में पदस्थ था। उसी दौरान ग्वालियर अंचल में एक नरसंहार हुआ था। हमें वहां जाने के लिए कहा गया। नियम के अनुसार, हमने अपने हथियार जबलपुर में जमा करा दिए थे। इसके बाद हम ग्वालियर रवाना हो गए। विवाद शांत हो गया। मैं अपनी नियमित ड्यूटी पर आ गया।

Chandramohan Singh Bhadauria

2008 में मेरे पास विभाग से फोन आया कि आपकी पिस्टल नहीं मिल रही। इसके बाद बिना विभागीय जांच के मुझ पर एफआईआर कर दी गई। इस अवधि में मैंने विभाग के लिए कई काम किए। मुझे रिवॉर्ड भी मिले। मैडल मिले। एसटीएफ इंदौर, हॉट फोर्स बालाघाट, सीटीजी भोपाल, एटीएस, ग्वालियर डकैती उन्मूलन जैसी चुनौती पूर्ण जगहों पर काम किया।

पन्ना में मोहन एनकाउंटर और सिमी के गिरफ्तारी ऑपरेशन में शामिल रहे। फिर 2020 में इस मामले की विभागीय जांच की गई, जबकि नियम कहता है कि किसी भी मामले की जांच एक साल के भीतर होनी चाहिए। इस जांच के बाद मुझे घर बिठा दिया गया। मैंने मामला कोर्ट में लगाया है।

अब चंद्रमोहन सिंह भदौरिया की 23 साल की बिटिया उर्वशी पूछती है कि मेरे पापा ने प्रदेश के लिए इतना कुछ किया, फिर सरकार ने उनके साथ ऐसा अन्याय क्यों किया?

क्या कहते हैं एक्सपर्ट...

रिटायर्ड डीआईजी डीआर तेनीवार कहते हैं, बर्खास्तगी के मामले में संबंधित को दया ​याचिका लगानी होती है। यदि डीजीपी के स्तर पर यह मंजूर होती है तो संबंधित को नौकरी पर दोबारा रख लिया जाता है। हां, इसमें यह जरूर ध्यान रखा जाता है कि याचिकाकर्ता की उम्र 60 साल से कम होनी चाहिए। क्रांति गौड़ के पिता मुन्ना सिंह के मामले में तो निर्णय शासन स्तर पर होना है, इसलिए इस केस में वैसे भी कोई परेशानी नहीं है।

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