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JABALPUR. जिला प्रशासन द्वारा चार वर्ष पहले जिस जमीन को भू-माफिया के कब्जे से मुक्त कराया गया था, उसी जमीन पर अब गुपचुप तरीके से फिर से कब्जे की नई पटकथा रची जा रही है। मामला शहपुरा भिटौनी तहसील की ग्राम पंचायत खैरी का है, जहां लगभग 50 एकड़ शासकीय भूमि को तत्कालीन कलेक्टर इलैया टी. राजा ने बुलडोजर चलवाकर मुक्त कराया था।
उस समय यह जमीन जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एम. ए. खान द्वारा फर्जी तरीके से बेची गई थी, जिन्होंने इसे विभिन्न लोगों को “फार्महाउस” के नाम पर बेचकर करोड़ों रुपये कमाए थे। कलेक्टर ने तब खान को भू-माफिया घोषित कर कठोर कार्रवाई की थी, लेकिन अब उन्हीं जमीनों को नए सिरे से हथियाने की राजस्व अधिकारियों और लैंड माफिया की मिलीभगत से दोबारा कब्जे की साजिश रची जा रही है।
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जमीन को भूमिया के नाम पर दर्ज कराने की कोशिश
ग्राम खैरी की शासकीय जमीन को अपने नाम दर्ज कराने के लिए नदीम खान, हाजी फिरोज कमाल, शमा परवेज, अशफाक और आशीष नेल्सन अल्बर्ट नामक व्यक्तियों ने तहसील शहपुरा कार्यालय में गुपचुप तरीके से आवेदन दिया। इन सभी ने सरकारी भूमि को अपने नाम पर दर्ज कराने की प्रक्रिया में बैक डेट (पुरानी तारीख) में नामांतरण आदेश जारी कराने की कोशिश की।
इस मामले में राजस्व विभाग से भी उन्हें पूरी सहायता मिली क्योंकि 8 सितंबर को तहसीलदार शहपुरा के न्यायालय से आम इश्तहार (Public Notice) जारी हुआ, जिसमें यह दिखाया गया कि खसरा नंबर 146/2 से 2 हेक्टेयर भूमि नदीम खान के नाम, खसरा नंबर 146/2 से 2 हेक्टेयर आशीष लाल के नाम, खसरा नंबर 258/5 से 2 हेक्टेयर हाजी फिरोज कमाल के नाम, खसरा नंबर 146/1 से 2 हेक्टेयर शमा परवेज के नाम और खसरा नंबर 258/5 से 2 हेक्टेयर अशफाक के नाम दर्ज किया जा रहा है।
ग्राम पंचायत को सूचना
इश्तहार में आपत्ति दर्ज कराने की अंतिम तिथि 24 सितंबर 2025 रखी गई थी, लेकिन इसे ग्राम कोटवार को अक्टूबर की 3 तारीख को सौंपा गया। यानी जब तक इश्तहार ग्राम पंचायत तक पहुँचा, तब तक आपत्ति दर्ज कराने की अवधि समाप्त हो चुकी थी। यह सब दिखा रहा है कि राजस्व कार्यालय में जमीन के नामांतरण को छिपाने और प्रक्रिया को फर्जी तरीके से पूरा करने की गहरी साजिश रची गई।
किसान संघ और ग्राम पंचायत का विरोध
इस घोटाले की जानकारी मिलते ही ग्राम पंचायत खैरी के सरपंच सौरभ पटेल ने ग्रामवासियों और भारतीय किसान संघ के सहयोग से जोरदार विरोध दर्ज कराया। सरपंच ने तहसीलदार शहपुरा को लिखे पत्र में कहा कि जमीन अपने नाम दर्ज कराने वाले व्यक्ति ग्राम पंचायत के निवासी नहीं हैं, न ही वे एससी या एसटी वर्ग से हैं। फिर भी उन्हें शासकीय भूमि देने का प्रयास कहीं न कहीं मिलीभगत और भ्रष्टाचार का परिणाम है।
वहीं भारतीय किसान संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख राघवेन्द्र सिंह पटेल ने भी बयान जारी करते हुए इसे “स्पष्ट लैंड जिहाद” करार दिया और कहा कि ग्राम पंचायत की जमीन को हड़पने का यह प्रयास राजस्व विभाग के कुछ भ्रष्ट अधिकारियों की शह पर हो रहा है। किसान संघ इस जमीन को बचाने के लिए आंदोलन करेगा।
तहसीलदार सुमित गुप्ता ने जारी कर दिए आदेश
इस प्रकरण की शिकायत ग्रामीणों ने मई 2024 में ही कलेक्टर जबलपुर को दी थी। शिकायत में कहा गया था कि प्रोफेसर एम. ए. खान और उनके पुत्र डॉ. परवेज राजन खान ने पिकनिक स्पॉट पथरोरी घाट, जो नर्मदा नदी के भीतर स्थित है, की जमीन की भी फर्जी रजिस्ट्री करवा ली है।
ग्रामीणों ने बताया कि नपाई के दौरान जब उन्होंने विरोध किया था, तब भी राजस्व अधिकारी अनसुना करते रहे। बाद में “गुपचुप तरीके से” नदी के भीतर की जमीन को भी रजिस्ट्री करा दिया गया। लेकिन इस शिकायत पर कोई पर कार्रवाई नहीं हुई।
अब सवाल यह उठ रहा है कि तहसीलदार सुमित गुप्ता ने ऐसी जमीनों को नामांतरण प्रक्रिया में शामिल करने की अनुमति कैसे दी । जबकि उन्हीं जमीनों पर पहले कलेक्टर स्तर पर बुलडोज़र कार्रवाई हो चुकी थी। ग्रामीणों का कहना है कि तहसीलदार और कुछ निचले राजस्व अधिकारी जानबूझकर इन भू-माफियाओं की मदद कर रहे हैं ताकि सरकारी जमीन दोबारा उनके कब्जे में जा सके।
सरपंच के पत्र ने खोल दी भ्रष्टाचार की पोल
ग्राम पंचायत हीरापुर बंधा के सरपंच सौरभ पटेल ने तहसीलदार को पत्र लिखकर राजस्व प्रकरण क्रमांक 0002 से 0006/अ-19(3)/2024-25 तक के सभी आम इश्तहारों को निरस्त करने की मांग की है। उन्होंने स्पष्ट कहा कि ये पांचों व्यक्ति ग्राम पंचायत के निवासी नहीं हैं, इनके दस्तावेज पूर्ण रूप से निराधार हैं। शासन को भूमि हड़पने वालों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही करनी चाहिए। सरपंच का यह पत्र ग्राम पंचायत स्तर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़ा होने का प्रतीक बन गया है, जिससे ग्रामीणों का मनोबल भी बढ़ा है।
राजस्व तंत्र में भ्रष्ट गठजोड़ का पर्दाफाश
पूरा मामला अब यह दिखा रहा है कि कैसे राजस्व विभाग के कुछ अधिकारी और लैंड माफिया गिरोह मिलकर सरकारी जमीनों को हड़पने की सुनियोजित योजना चला रहे हैं। पहले कलेक्टर की कार्रवाई से मुक्त कराई गई जमीन, फिर गुप्त रूप से इश्तहार जारी कर फर्जी नामांतरण का प्रयास, और अंत में आपत्ति अवधि समाप्त होने के बाद ग्राम पंचायत को सूचना देना, ये सभी घटनाएं एक संगठित भ्रष्टाचार का हिस्सा हैं।
शहपुरा की खैरी पंचायत में सरकारी जमीन को निजी कब्जे में लेने का यह प्रयास प्रशासनिक मिलीभगत और भ्रष्टाचार की मिली-जुली मिसाल है। चार साल पहले जिस जमीन को जनता ने बचाया था, अब उसी पर फिर से “फर्जी नामांतरण” का काला खेल शुरू हो चुका है। सवाल यही है कि क्या प्रशासन इस बार भी आंख मूंदे बैठेगा या सरकारी जमीन बचाने के लिए एक और कार्रवाई देखने मिलेगी।
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क्या बोले तहसीलदार सुमित गुप्ता
इस मामले में शहपुरा के तहसीलदार सुमित गुप्ता का कहना है की ADM के कार्यालय से उन्हें एक जांच रिपोर्ट बनाने का कार्य मिला था, जिसका एक बिंदु आम इश्तहार प्रकाशन भी था, इसलिए उन्होंने यह आम इश्तहार जारी किया था, उन्होंने बताया कि यह नजूल का पट्टा देने की कार्यवाही थी। हालांकि जब हमने उनसे पूछा कि यह लोग उस ग्राम के निवासी भी नहीं है और अनुसूचित जाति जनजाति के भी नहीं है, साथ ही आपत्ति की अंतिम दिनांक निकल जाने के बाद ग्राम पंचायत को सूचना क्यों दी गई।
तहसीलदार ने इस बात का जवाब तो नहीं दिया पर उन्होंने कहा कि वह अपनी जांच रिपोर्ट ADM सौंपने वाले हैं और यह पट्टे अब जारी नहीं किए जाएंगे। आपत्ति की डेट निकल जाने की बात पर उन्होंने कहा कि हम इस आपत्ति को फिर भी स्वीकार कर लेंगे।
राजस्व अधिकारियों ने बदले बयान
राजस्व विभाग से जानकारी प्राप्त करने पर पता चला कि इस मामले में आम इश्तिहार जारी करना जांच का बिंदु नहीं हो सकता। इश्तिहार में साफ लिखा था कि यह प्रकरण तहसील न्यायालय में है और किसी को आपत्ति हो तो वह इसे दर्ज कर सकता है। एक बार तहसीलदार का आदेश जारी होने के बाद आरोपियों को यह जमीन मिलना तय था। हालांकि, मामले के उजागर होने के बाद राजस्व अधिकारियों के बयान बदलना स्वाभाविक था।