INDORE. परिवहन विभाग के करोड़पति पूर्व आरक्षक सौरभ शर्मा और उनके साथ गिरफ्तार हुए चेतन सिंह गौर और शरद जायसवाल को लोकायुक्त केस में आखिर जमानत कैसे मिली। सीधा तो जवाब यह है कि चालान पेश नहीं किया, इसलिए विशेष कोर्ट भोपाल ने जमानत मंजूर कर ली। हालांकि, ईडी केस होने के चलते वह जेल से बाहर नहीं आ सकेंगे। इस जमानत के पीछे लोकायुक्त की लेटलतीफी, लापरवाही जो भी कहना चाहें वह तो थी ही, इसके साथ ही भारतीय नागरिक सुरक्षा कानून (बीएनएस) की समझ नहीं होना भी बड़ा कारण रहा है। इसमें लोकायुक्त संगठन 60 और 90 दिन के फेर में उलझ गया।
1-1 लाख की गारंटी पर जमानत
उधर तीनों आरोपियों को लोकायुक्त की नासमझी के चलते जमानत मिल गई। जमानत 1-1 लाख रुपए की गारंटी राशि पर मिली है।
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इस आधार पर जमानत मांगी थी इन्होंने
यह तीनों 28 जनवरी को गिरफ्तार हुए और 29 मार्च को इनके 60 दिन गिरफ्तारी के पूरे हो गए। एक अप्रैल को जमानत लगी तो बोला गया कि बीएनएस की धारा 187(3)(2) के तहत उन्हें चालान पेश नहीं होने पर जेल में नहीं रखा जा सकता है और यदि वह जमानत देते हैं तो जमानत दी जाना चाहिए। इस आधार पर बाय डिफॉल्ट जमानत का प्रावधान है और जमानत मिलना चाहिए।
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अब लोकायुक्त कैसे दिनों में उलझा
बीएनएस की धारा 187(3)(2) के तहत प्रावधान है कि चालान 60 दिन के भीतर करना होगा, नहीं तो आरोपी जमानत देता है तो जमानत दी जाएगी। वहीं इस मामले में आजीवन सजा, दस साल और उससे अधिक की सजा हो इसमें चालान पेश करने के लिए 90 दिन का समय मिलता है। कोर्ट लोकायुक्त का तर्क यह था कि चार साल से अधिक और 10 साल तक की अवधि में सजा हो तो यह 60 दिन की बाध्यता नहीं है। यानी लोकायुक्त का तर्क था कि 10 साल तक की सजा है इसलिए चालान के लिए और समय मिलता है, इसलिए जमानत नहीं हो। यही सोचकर लोकायुक्त ने चालान पेश करने की जल्दबाजी ही नहीं की और आरोपियों को जमानत मिल गई। लोकायुक्त दस साल तक और उससे अधिक की अवधि वाली सजा के चक्कर में 60 और 90 दिन के फेर में उलझा रहा और उधर आरोपियों की जमानत मंजूर हो गई।
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