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मध्यप्रदेश में कफ सिरप पीने से अब तक 16 बच्चों की मौत हो चुकी है। तमिलनाडु सरकार की जांच में पता चला है कि जिस कोल्ड्रिफ कफ सिरप (Coldrif Cough Syrup) का इस्तेमाल किया गया था, उसमें दवा बनाने वाला सही केमिकल नहीं था। सिरप में प्रोपीलीन ग्लाइकॉल नाम का एक केमिकल डाला गया था, लेकिन वह दवा बनाने वाला फार्मा ग्रेड का नहीं बल्कि फैक्ट्रियों में इस्तेमाल होने वाला इंडस्ट्रियल ग्रेड का था।
यह इंडस्ट्रियल ग्रेड केमिकल सस्ता तो होता है, लेकिन इसमें बहुत जहरीले रसायन जैसे डायएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) और एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) मिल जाते हैं। ये रसायन शरीर में जाने पर किडनी, लीवर और नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचाते हैं और बच्चों के लिए तो यह जानलेवा साबित हो सकता है।
गैर-फार्मा प्रोपीलीन ग्लाइकॉल से बनता है ब्यूटी प्रोडक्ट्स
जांच में यह सामने आया कि जिस सिरप से बच्चों की मौत हुई, उसमें 48.6% जहरीला डायएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) मिला था। आमतौर पर गैर-फार्मा प्रोपीलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल ब्यूटी प्रोडक्ट्स, पेंट, प्लास्टिक और एंटी-फ्रीज जैसी चीजों में किया जाता है, लेकिन दवाओं में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाता।
गैर-फार्मा प्रोपीलीन ग्लाइकॉल वाली खबर पर एक नजर
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दवा कंपनी ने इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल रखीदा
कोल्ड्रिफ सिरप बनाने वाली कंपनी श्रीसन फार्मास्यूटिकल ने यह सस्ता इंडस्ट्रियल ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल चोरी-छिपे चेन्नई के पार्क टाउन स्थित सनराइज बायोटेक से खरीदा था। अब जांच एजेंसियां यह जानने की कोशिश कर रही हैं कि इस खतरनाक खरीद में और कौन-कौन लोग शामिल थे और क्या यह लापरवाही जानबूझकर की गई थी।
तमिलनाडु सरकार की 44 पेज की जांच रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें पता चला है कि कंपनी के पास प्रोपीलीन ग्लाइकॉल की खरीदी से जुड़ा कोई बैच नंबर नहीं था। इसके अलावा, कंपनी ने यह भी नहीं जांचा कि उस प्रोपीलीन ग्लाइकॉल में कोई जहरीला रसायन जैसे डायएथिलीन ग्लाइकॉल (डीईजी) या एथिलीन ग्लाइकॉल (ईजी) मौजूद है या नहीं। यह दवा बनाने के नियमों का उल्लंघन है।
कंपनी ने निर्धारित नियमों का नहीं किया पालन
जांच में यह भी सामने आया कि कंपनी ने यह केमिकल चोरी-छिपे खरीदा था। कंपनी ने दो अलग-अलग तारीखों में 50-50 किलो प्रोपीलीन ग्लाइकॉल बिना किसी खरीद चालान के लिया और भुगतान नकद और गूगल पे से किया। रिपोर्ट के मुताबिक, बिना चालान के यह खरीदी अवैध है और यह नियमों का उल्लंघन करती है।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि दवा बनाने के दौरान कंपनी ने निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया। जांच में 39 गंभीर और 325 बड़ी गलतियां पाई गईं। फैक्ट्री में ज्यादा कच्चा माल रखा गया था और सफाई की स्थिति भी बहुत खराब थी। कंपनी ने दवा बनाने के लिए जरूरी मानकों और प्रक्रियाओं को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया था।
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गैर-फार्मा ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल कितना खतरनाक
जांच में यह भी पाया गया कि डीईजी जैसे खतरनाक रसायनों की जांच के लिए कोई तय की गई प्रक्रिया नहीं थी। कंपनी ने प्रोपीलीन ग्लाइकॉल और अन्य कच्चे माल का इस्तेमाल बिना किसी जांच, बिना डेटा और बिना मंजूरी के किया, जिससे सिरप की गुणवत्ता पर गंभीर असर पड़ा। रिकॉर्ड और डेटा की कमी के कारण, उत्पादन और परीक्षण की जानकारी को ट्रेस करना भी अब मुश्किल हो गया है।
विशेषज्ञों का कहना है कि अगर सिरप में गैर-फार्मा ग्रेड प्रोपीलीन ग्लाइकॉल का इस्तेमाल किया जाए, तो यह दवा की सुरक्षा और असर दोनों पर सीधा असर डालता है। यह तत्व बच्चों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है, क्योंकि इसमें मौजूद अशुद्धियां शरीर के अंगों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी दवा में इस्तेमाल होने वाले कच्चे माल की शुद्धता की जांच करना बेहद जरूरी है, ताकि उसकी गुणवत्ता और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। बता दें कि, कफ सिरप से बच्चों की मौत का मामला ने पर चर्चा तेज है।