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BHOPAL. मध्यप्रदेश में जल जीवन मिशन, पुल निर्माण और सड़क विकास जैसे करोड़ों के कार्यों में घपले उजागर तो हो रहे हैं, मगर उन्हें साबित करने वाली तकनीकी जांच एजेंसी सीटीई खत्म कर दी गई है। यानी सीटीई अब अस्तित्व में ही नहीं रही। इसके चलते, पहले से ही भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे सरकारी निर्माण कार्य अब पूरी तरह बेलगाम हो गए हैं।
रीवा में जल जीवन मिशन घोटाले की जांच ने 136 करोड़ रुपए की गड़बड़ी उजागर की, लेकिन जांच को इस आधार पर नकार दिया गया कि इसे गैर-तकनीकी अमले से कराया गया। विडंबना यह है कि अब प्रदेश में कोई भी तकनीकी जांच एजेंसी मौजूद ही नहीं है, जो इंजीनियरिंग खामियों और भ्रष्टाचार को प्रमाणित कर सके।
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घटिया इंजीनियरिंग के उदाहरण, देशभर में बना मज़ाक
मप्र में सिर्फ पीडब्ल्यूडी ही नहीं, पीएचई, इरीगेशन, एनव्हीडीए, एमपीआरडीसी, आरआरडीए व स्थानीय निकायों के निर्माण कार्यों में तकनीकी खामियां जमकर सामने आ रही हैं। राजधानी में नवनिर्मित राइट एंगल पुल को लेकर देशभर में प्रदेश का मजाक बन गया। हाल ही में नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को इंदौर के जेड शेप वाले पुल की डिजाइन चेंज करने के निर्देश देने पड़े।
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आरआरडीए में ही बीते साल कैग ने करीब चार सौ करोड़ का डामर घोटाला उजागर किया,लेकिन इसे यह कहते हुए दबा दिया गया कि विभाग के पास पहले डामर बिल भुगतान सत्यापन प्रक्रिया का कोई प्रावधान ही नहीं था। धार जिले के बहुचर्चित कारम डेम फूटने संबंधी मामले की जांच अब तक पूरी नहीं हुई, लेकिन इसके मुख्य आरोपी कार्यपालन यंत्री बीएल निनामा वर्तमान में सिंचाई विभाग भोपाल संभाग में अधीक्षण यंत्री के अलावा विभाग की बोधि इकाई में सीई व ईई दोनों का दायित्व संभाल रहे हैं।
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पारदर्शिता के नाम पर नवाचार बने दिखावा
निर्माणाधीन बांध फूटे या नवनिर्मित अंबेडकर पुल उद्घाटन के साथ ही उखड़ जाएं,छिटपुट कार्रवाई के अलावा जिम्मेदारों के खिलाफ कोई बड़ा एक्शन नहीं होने से इंजीनियरिंग अमला लगभग सभी विभागों में बेपरवाह और बेलगाम बना हुआ है। प्रदेश के लोक निर्माण विभाग में थर्ड पार्टी भौतिक सत्यापन, रिफॉर्मिंग व लोकपथ ऐप जैसे नवाचार भी विभागीय कार्यशैली में सुधार नहीं ला सके।
कार्य गुणवत्ता परिषद, ना गुणवत्ता बची ना काम
अप्रैल 2022 तक मध्य प्रदेश में तकनीकी खामियों, गड़बड़ियों की जांच के लिए मुख्य तकनीकी परीक्षक सतर्कता यानी सीटीई नामक एजेंसी अस्तित्व में रही। यहां ईएनसी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में सीटीई तकनीकी खामियां को रोकने व नियंत्रित करने का काम करता था, लेकिन मई 2022 में सीटीई को खत्म कर इसकी जगह मप्र कार्य गुणवत्ता परिषद कर दिया गया। परिषद कौन से कार्य की गुणवत्ता परखे,यह तक स्पष्ट नहीं। पूर्व के जांच संबंधी सभी अधिकार वापस ले लिए गए।
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वेतन पर खर्च 18 लाख महीना, आउटपुट जीरो
परिषद में नाममात्र का अमला है। इनके वेतन, भत्ते व बिजली बिल आदि पर हर माह 17-18 लाख रुपए खर्च हो रहे हैं। जबकि अधिकारी-कर्मचारी केवल हाजिरी देने, सामान्य पत्राचार करने और वेतन सूची बनाने तक सीमित हैं।
बैठकें भी इतिहास बन गईं
परिषद के अध्यक्ष खुद मुख्यमंत्री हैं और कार्यकारी सदस्य तकनीकी विभागों के मंत्री। नियमों के अनुसार हर छह माह में बैठक जरूरी, लेकिन बीते कई वर्षों से एक भी बैठक नहीं हुई। हाल ही में परिषद महानिदेशक का पद भी लोक निर्माण विभाग के प्रमुख सचिव सुखबीर सिंह को अतिरिक्त प्रभार देकर भरना पड़ा।
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