MPRRDA: घोटाले का घटिया डामर बना ग्रामीण सड़कों का काल

गांव में बनने वाली सड़कें निर्माण के चंद साल बाद ही क्यों दम तोड़ देती हैं,प्रदेश के महालेखाकार(एजी) द्वारा उजागर डामर घोटाला इसकी बानगी है। इसमें ठेकेदारों ने रिफाइनरीज के हजारों फर्जी​ बिल पेश कर करोड़ों का भुगतान हासिल कर लिया।

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भोपाल। गांव में बनने वाली सड़कें निर्माण के चंद साल बाद ही क्यों दम तोड़ देती हैं,प्रदेश के महालेखाकार(एजी) द्वारा उजागर डामर घोटाला इसकी बानगी है। इसमें ठेकेदारों ने रिफाइनरीज के हजारों फर्जी​ बिल पेश कर करोड़ों का भुगतान हासिल कर लिया। एजी के बाद अब भारत के नियंत्रक महालेखाकार यानी सीएजी ने इसकी रिपोर्ट तलब की तो अफसर बगलें झांक रहे हैं। ठेकेदारों से वसूली और उन्हें ब्लैक लिस्ट करने की बजाए उन्हें बचाए जाने की कवायद जारी है। 

मामला मप्र ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण यानी एमपीआरआरडीए से जुड़ा है। जो प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में दूरस्थ आबादी वाले गांव व मंजरे,टोलों को मुख्य सड़क से जोड़ने सड़क तैयार करता है। सड़क निर्माण व इनके विस्तार की स्वीकृति प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में भारत सरकार से मिलती है।

यानी मप्र के ग्रामीण अंचल में बिछाए जा रहे सड़कों के जाल में मप्र के अलावा केंद्र सरकार का भी सीधा हस्तक्षेप है। यही वजह है कि योजनान्तर्गत बनाई गई सड़कों के निर्माण में करीब 414 करोड़ का डामर घोटाला सामने आने पर अब भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक यानी सीएजी ने भी घोटाले से जुड़ी रिपोर्ट तलब की है और मप्र ग्रामीण सड़क विकास प्राधिकरण का समूचा जिम्मेदार अमला फिलहाल सीएजी को सफाई देने की तैयारी में जुटा है।

मप्र एजी ने उजागर किया घोटाला
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में करोड़ों रुपए की यह गड़बड़ी स्वयं मप्र के महालेखापरीक्षक कार्यालय यानी एजी ग्वालियर ने उजागर की। यह रिपोर्ट राज्य विधानसभा के पिछले सत्र में पटल पर रखी गई। ग्रामीण अंचल की सड़क बनाने में एमपीआरआरडीए किस तरह आंख बंद कर काम करता है। एजी की रिपोर्ट इसकी बानगी है। इसमें बचाव के तौर पर विभाग की ओर से दिए गए हर जवाब,तर्क को एजी ने सिरे से खारिज कर मामले का पर्दाफाश किया।

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एजी ने तर्कों का किया खारिज

एजी रिपोर्ट के मुताबिक,उसने सिर्फ साल 2017 से 2021 के बीच तैयार सड़क,पुल के कामकाज का आडिट किया।एमपीआरआरडीए की प्रदेशभर में यूं तो 75 पीआईयू यानी परियोजना क्रियान्वयन इकाईयां है,लेकिन एजी ने इनमें से 10 सीजीएम व 7पीआईयू यानी करीब 44प्रतिशत हिस्से के कामकाज का ही आकलन किया। 

महज पांच साल के कामकाज के आडिट में ही एजी को ढेर सारी गड़बड़ियां मिली। इनमें केंद्र से मिली राशि का समय पर पूरा उपयोग न होना,लक्षित सड़कों व पुलों को तैयार न करना,बिना भू -अर्जन के डीपीआर तैयार कर सड़क निर्माण शुरू करना व निर्माण के दौरान आपत्तियां आने पर करोड़ों रुपए व्यय के बाद इन्हें अधूरा छोड़ना,करोड़ों रुपए शुल्क देकर हायर किए गए सलाहकारों को बिना काम भुगतान जैसी कई गड़बड़ियां शामिल हैं।

ऐसे सभी मामलों में विभाग के ज्यादातर जवाब अटपटे,गोलमोल व कुतर्क वाले कहे जा सकते हैं। आमतौर पर एजी टीम ऐसे कई जवाबों पर सहमति जताकर सामान्य चेतावनी देती है,लेकिन इस मामले में एजी ने सभी जवाबों को खारिज कर दिया।

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इस तरह दिया घोटाले को अंजाम

सबसे चौंकाने वाला मामला सड़क निर्माण में उपयोग डामर यानी बिटुमन के करीब 415 करोड़ रुपए के घोटाले से जुड़ा है। जिसे प्रदेश के 49 जिलों की 71 पीआईयू में अंजाम दिया गया। एजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा-महज पांच साल में एमपीआरआरडीए के ठेकेदारों ने 2.27लाख मीट्रिक टन डामर खरीदी के बिल विभाग को देकर भुगतान हासिल किया,जबकि इतने डामर में स्वीकृत से कहीं अधिक सड़कें बन सकती थी।

डामर खरीदी केवल सार्वजनिक शासकीय उपक्रम वाली रिफाइनरी से की जानी थी,लेकिन ठेकेदारों ने नियमों के खिलाफ निजी रिफाइनरी के बिल पेश कर भुगतान हासिल किया। 

खास बात यह कि ठेकेदारों की ओर से पेश 9903 चालान बिल में से करीब 3389 चालान रिफाइनरीज के नाम पर फर्जी तैयार कर भुगतान हासिल किया गया।

 यही नहीं,कुछ पीआईयू में एक ही काम के लिए दो से तीन बिल लगाए गए और भुगतान हासिल किया गया। एमपीआरआरडीए के जिम्मेदार अफसर उस वक्त सतर्क हुए जब एजी ने यह मामला उजागर किया। बावजूद इसके विभाग की ओर से मासूमियत वाले तर्क दिए गए।

 बिल सत्यापन का कोई प्रावधान नहीं है। ठेकेदारों ने इसका फायदा उठाया। कोरोनाकाल के दौरान रिफाइनरीज के बिल को कई बार डाउनलोड किया व चालान भी बदल दिए गए। बावजूद इसके जब एजी टीम ने अफसरों को खारिज किया तब अधिकारियों ने दोषी ठेकेदारों के खिलाफ कार्रवाई व वसूली की बात तो कही,लेकिन अब तक इक्का-दुक्का ठेकेदारों को छोड़ किसी से कोई रिकवरी नहीं की गई। बताया जाता है कि कुछ ठेकेदार वसूली पर स्थगन पाने में भी सफल रहे।

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जांच कर कार्रवाई की सिफारिश

एजी ने अपनी रिपोर्ट में राज्य शासन को सलाह दी कि वह चाहे तो इस पूरे मामले की जांच कराए व दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करे। 

सूत्रों का दावा है कि एजी की सलाह के बाद न तो जांच शुरू हुई न ही किसी अधिकारी को अब तक इस गड़बड़ी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया,जबकि एजी ने अपनी रिपोर्ट में ई-टेंडरिंग प्रक्रिया की अनदेखी में सीधे प्राधिकरण सीईओ व मुख्य महाप्रबंधक को जिम्मेदार बताया। 

डामर बिल भुगतान के अलावा अन्य मामलों में भी एजी ने हर बिंदु पर जिम्मेदार अधिकारी की लापरवाही को रेखांकित किया है। 

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ईओ डब्लयू ने दर्ज किया प्रकरण
सूत्रों के अनुसार,राज्य आर्थिक अपराध अनुसंधान ब्यूरो (EOW)की जबलपुर शाखा ने डामर घोटाले मामले में जबलपुर के पांच ठेकेदारों के खिलाफ आपराधिक प्रकरण दर्ज किया है।

यह मामले मे.एडी कंस्ट्रक्शन के अनिल दुबे,मेसर्स विश्वकुसुम इन्फ्राटेक के अखिलेश मेहता,मे.वैष्णव एसोसिएट के धर्मेद्र प्रताप सिंह,मेसर्स लाल बहादुर यावद व मेसर्स अब्दुल अजीज के खिलाफ दर्ज किया गया। इनके अलावा जबलपुर व मंडला जिलों की पीआईयू के संबंधित महाप्रबंधक,संभागीय सीजेएम व अन्य अधिकारी भी जांच के दायरे में हैं।

ब्यूरो ने हाल ही में जिम्मेदार अफसरों से घोटाले से जुड़े मूल दस्तावेज मांगे व आनाकानी पर छापे की चेतावनी दी । इसके बाद ही विभागीय अफसर मूल दस्तावेज ब्यूरो को सौंपने राजी हुए। ई ओ डब्ल्यू पुलिस अब इनकी जांच कर रही है।  

एजी ने ये खुलासे भी किए

● पीएम ग्रामीण सड़क योजना के दूसरे चरण में मनमर्जी से सड़कें बनाई। सांसद-विधायक, जनपद प्रतिनिधियों से सहमति नहीं ली।

● एमपीआरआरडीए ने उन्नयन के लिए पात्र सड़कें होने के बाद भी अपात्र सड़कों को शामिल किया। इससे बड़ी संख्या में लोग योजना का लाभ पाने से वंचित रहे।

● 10 जिलों में परियोजना रिपोर्ट के लिए सलाहकारों ने आधा-अधूरा काम कर 7करोड़ रुपए का भुगतान हासिल कर लिया। सड़क निर्माण के लिए बनाए गए डीपीआर और वास्तविक काम में अंतर रहा।

● भंडार व क्रय नियमों का उल्लंघन, तीसरे चरण की सड़कों के टेंडर दरों में 39 से 58% लागत बढ़ी।

● ई-टेंडर में नियमों के उल्लंघन पर एमपीआरआरडीए सीईओ, मुख्य महाप्रबंधक जिम्मेदार।

● ठेकेदार ने तकनीकी कर्मी तैनात नहीं किए। इस ऐवज में उनसे होने वाली 4.46 करोड़ रुपए की वसूली नहीं हुई।

● बोलीदाता के चूक की स्थिति में शासकीय हित सुरक्षित करने के लिए 41% मामलों में अतिरिक्त निष्पादन प्रतिभूति नहीं ली। पीआइयू के महाप्रबंधक जिम्मेदार।

● पीआइयू-1 छिंदवाड़ा में एसक्यूसी कंसल्टेंसी को 40 करोड़ के अनुबंध पर अनुमानित काम के लिए 2021 में 36.50 करोड़ की अतिरिक्त सेवाओं को एमपीआरआरडीए जबलपुर के मुख्य महाप्रबंधक ने टीओआर तोड़ अनियमित अनुमति दी।

● मार्च 2021 में 5.01 करोड़ की वसूली गई रायल्टी की राशि शासकीय खाते में जमा ही नहीं की गई।

● ठेकेदार 49% काम समय पर पूरे नहीं कर सके। फिर भी मुख्य महाप्रबंधकों ने 33% मामलों में हर्जाना नहीं लगाया। 43% मामलों में 0.05 प्रतिशत से 1% हर्जाना।

● 42% स्पीड ब्रेकर, 27% चेतावनी, साइन बोर्ड नहीं लगाए। मप्र ने केंद्र की निधि को देरी से जारी किया। 4.23 करोड़ ब्याज लगा।

● योजना राशि  बैंक खाते में जमा न करने से 11.68 करोड़ का ब्याज सरकार को नहीं मिल सका। 

एमपीआरआरडीए के सीईओ दीपक आर्य ने बताया,

महालेखाकार ने जिन बिंदुओं पर ध्याना​कर्षित किया गया,उन सभी में विभागीय स्तर पर जांच की जा रही है। रिफाइनरीज के संदिग्ध देयकों व गड़बड़ी की रकम व वास्तविकता में भी विसंगति है। जांच के बाद वास्तविक राशि की वसूली दोषी पाए जाने वाले ठेकेदारों से की जाएगी। सीएजी को भी वांछित जानकारी उपलब्ध कराई जाएगी। भविष्य में इस तरह की गड़बड़ियों से बचने देयकों के तकनीकी सत्यापन की प्रक्रिया भी शुरू की गई है।

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