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केंद्र सरकार ने 1 अप्रैल 2025 से अपनी नई यूनिफाइड पेंशन स्कीम (यूपीएस) लागू कर दी है। हालांकि, यह कदम कर्मचारियों के लिए फायदेमंद होने का दावा किया गया था, लेकिन इस योजना को लेकर कर्मचारियों में मिश्रित प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। अब तक, करीब 30 लाख कर्मचारियों में से केवल 90 हजार ने ही इस योजना को अपनाया है, जबकि 97% कर्मचारी अब भी यह तय नहीं कर पा रहे कि उनके लिए कौन सी योजना अधिक फायदेमंद होगी – यूपीएस या एनपीएस।
जानें क्यों 97% कर्मचारी यूपीएस से बच रहे हैं?
यूपीएस में कर्मचारियों की बेरुखी की मुख्य वजह इसके कम रिटर्न और निवेश के सीमित विकल्प हैं। जहां एनपीएस में बेहतर रिटर्न मिलता है, वहीं यूपीएस में पेंशन की गारंटी तो है, लेकिन रिटर्न कम हैं। इसके अलावा, कई कर्मचारी अब भी पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली की मांग कर रहे हैं, क्योंकि वे भविष्य में एनपीएस या यूपीएस के लाभ-हानि को लेकर अनिश्चित हैं।
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यूपीएस के लेकर एमपी में असमंजस
मध्यप्रदेश में भी सीएम मोहन यादव ने यूपीएस लागू करने का ऐलान किया है। राज्य सरकार इस योजना के नियमों को सितंबर तक अंतिम रूप देगी। अब मप्र के अधिकारियों को एनपीएस और यूपीएस में से एक योजना का चयन करना है, और यह उनके लिए एक बड़ा सवाल बन गया है। मप्र के वित्त सचिव मनीष रस्तोगी के अनुसार, अभी यूपीएस को लेकर चर्चाएं जारी हैं, और दिशानिर्देश आने के बाद इस पर फैसला लिया जाएगा।
यूपीएस को लेकर कर्मचारी संघों का विरोध
केंद्रीय कर्मचारी महासंघ के महासचिव एसबी यादव ने यूपीएस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा, यह योजना कर्मचारियों पर थोप दी गई है और इसका उद्देश्य पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) की बहाली की बजाय एक नया तरीका अपनाना है।
जानें क्या है यूपीएस और इसके फायदे?
यूपीएस के तहत कर्मचारियों को एक निश्चित पेंशन गारंटी दी जाती है, जो उन्हें रिटायरमेंट के बाद स्थिर आय का आश्वासन देती है। इस योजना में सरकारी अंशदान निश्चित होता है। साथ ही, पेंशन की राशि अंतिम वेतन के हिसाब से तय होती है। हालांकि, इसमें कुछ ऐसे तत्व हैं, जो कर्मचारियों को इससे दूर रख रहे हैं, जैसे कम रिटर्न और निवेश की सीमित आजादी।
यूपीएस और एनपीएस में अंतर | ||
यूपीएस | एनपीएस | |
अंशदान और फंड | यूपीएस में कर्मचारी का अंशदान भी 10% है, लेकिन सरकार केवल 10% देती है, जिससे कुल 20% ही फंड में जमा होता है। | एनपीएस (न्यू पेंशन स्कीम) में कर्मचारी अपनी सैलरी का 10% अंशदान करते हैं, और सरकार 14% अंशदान करती है, जिससे कुल 24% फंड में जमा होता है। |
रिटर्न | यूपीएस में रिटर्न कम होकर 9.5% रह जाता है, जो कर्मचारियों के लिए आकर्षक नहीं है। | एनपीएस में औसतन रिटर्न 11.5% होता है, जो एक अच्छा निवेश अवसर प्रदान करता है। |
निवेश की आजादी | यूपीएस में सरकार 88% राशि का निवेश तय करती है, और केवल 12% राशि को ही कर्मचारी अपनी पसंद से निवेश कर सकते हैं। | एनपीएस में कर्मचारी अपने फंड मैनेजर का चयन कर सकते हैं, जिससे वे अपनी पसंद के निवेश विकल्प चुन सकते हैं। |
यूपीएस और एनपीएस को इस तरह समझें...
यदि एक कर्मचारी का अंतिम वेतन 1 लाख रुपए प्रति माह है तो यूपीएस में पेंशन 50 हजार रुपए प्रति माह होगी। रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी की मृत्यु हुई तो पत्नी को 30 हजार रुपए पेंशन मिलेगी।
वहीं, एनपीएस में रिटायरमेंट के बाद पत्नी को उतनी ही पेंशन मिलेगी, जितनी पति को मिल रही थी।
जानें क्या विकल्प चुनें, यूपीएस या एनपीएस?
उपरोक्त बिंदुओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि जिन कर्मचारियों की नौकरी का समय कम बचा है (जैसे 20-25 साल), वे यूपीएस को चुन सकते हैं, क्योंकि इसमें रिटायरमेंट के बाद कम से कम 50% पेंशन की गारंटी होती है। वहीं, लंबी सेवा वाले कर्मचारियों के लिए एनपीएस अधिक फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि इसमें अधिक रिटर्न और उच्च अंशदान होता है।
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