18 अप्रैल विश्व धरोहर दिवस : खजुराहो से सांची तक, मध्य प्रदेश की अमर धरोहरें

विश्व धरोहर दिवस के अवसर पर मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक विरासतों को सभी के लिए सुलभ और समावेशी बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इससे दिव्यांगजन भी राज्य की सांस्कृतिक धरोहरों से जुड़ सकेंगे। 

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Sandeep Kumar
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MP NEWS: हर वर्ष 18 अप्रैल को विश्व धरोहर दिवस मनाया जाता है। ये हमें याद दिलाता है कि हमारी ऐतिहासिक विरासत केवल गौरव की प्रतीक नहीं, बल्कि भावी पीढ़ियों के लिए सांस्कृतिक मार्गदर्शक भी है। मध्य प्रदेश, भारत का हृदय कहलाने वाला राज्य, इस दिशा में एक नई पहल के साथ देशभर में मिसाल पेश कर रहा है। राज्य सरकार ने महेश्वर, मांडू, धार और ओरछा जैसी विरासत स्थलों को दिव्यांगों के लिए भी सहज व सुलभ बनाने की दिशा में प्रयास शुरू कर दिया है।

महेश्वर से ओरछा तक सुविधाओं का विस्तार

महेश्वर के घाटों और संग्रहालयों से लेकर ओरछा के ऐतिहासिक महलों तक कई सुविधाएं पहुंचाई जा रही हैं। धार की बाघ गुफाएं हों या मांडू का जामी मस्जिद परिसर दिव्यांग वर्गों का ध्यान रखकर इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जा रहा है। परियोजना का उद्देश्य हर नागरिक को संस्कृति से जोड़ना है, न कि केवल सक्षम पर्यटकों तक सीमित रखना।

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टेक्नोलॉजी और समावेशन की राह पर पर्यटन विकास

यह योजना न केवल समावेशी पर्यटन को बढ़ावा दे रही है, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी गति दे रही है। इसका संचालन भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय से प्राप्त सहायता से प्रस्तावित है। इन प्रयासों से मध्य प्रदेश पर्यटन के वैश्विक मानचित्र पर और भी मजबूती से उभरेगा। अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के लिए भी अधिक आकर्षण का केंद्र बनेगा।

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यूनेस्को की नजरों में चमकता मध्य प्रदेश

प्रदेश की सांस्कृतिक विविधता और पुरातात्विक समृद्धि को यूनेस्को ने भी स्वीकार किया है। वर्तमान में राज्य के तीन स्थल-खजुराहो, भीमबेटका और सांची-स्थायी विश्व धरोहर सूची में हैं, जबकि 15 अन्य स्थल टेंटेटिव सूची में शामिल हैं। हाल ही में जिन चार ऐतिहासिक स्थलों को शामिल किया गया है उनमें अशोक के शिलालेख, चौसठ योगिनी मंदिर, गुप्तकालीन मंदिर और बुंदेला शासकों के किले-महल प्रमुख हैं।

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अशोक के अभिलेख से योगिनी मंदिर तक

सम्राट अशोक के लगभग 2200 वर्ष पुराने शिलालेख आज भी सांची, रूपनाथ, गुज्जरा और पानगुरारिया दर्शन कराते हैं, जैसे समय थमा हो। वहीं चौसठ योगिनी मंदिर, जो तांत्रिक परंपरा और नारीशक्ति की उपासना का प्रतीक है, प्रदेश में स्थापत्य और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है। खजुराहो से लेकर शहडोल तक फैले इन गोलाकार मंदिरों में अनूठी मूर्तिकला देखने को मिलती है।

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गुप्तकाल और बुंदेला स्थापत्य का अनमोल संगम

गुप्तकालीन मंदिर जैसे सांची, नचना, तिगवा और भूमरा, हमें प्राचीन भारतीय वास्तुकला की उत्कर्ष अवस्था से परिचित कराते हैं। वहीं बुंदेला काल के महल गढ़कुंडार, जहांगीर महल, धुबेला महल आदि-राजपूत और मुगल स्थापत्य शैली के मिश्रण का जीता-जागता उदाहरण हैं। इन स्मारकों को संरक्षित करना केवल धरोहर बचाना नहीं, बल्कि एक जीवंत इतिहास को आज की पीढ़ियों तक पहुंचाना है।

 

 

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