सरला मिश्रा की मौत की मिस्ट्री... 28 साल का A To Z, जो आपके लिए जानना है जरूरी

कांग्रेस नेत्री सरला मिश्रा की मौत के मामले में दोबारा जांच होगी। भोपाल जिला कोर्ट ने पुलिस की खात्मा रिपोर्ट में गंभीर खामियां पाई थीं, जिसके बाद जांच के आदेश दिए गए। 'द सूत्र' आपको सरला मिश्रा की पूरी कहानी, 28 साल का A to Z बताने जा रहा है।

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Ravi Kant Dixit
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पूर्व PM राजीव गांधी और पूर्व CM अर्जुन सिंह के साथ सरला मिश्रा (the sootr)

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BHOPAL. कांग्रेस नेत्री सरला मिश्रा की मौत के मामले की दोबारा जांच होगी। पुलिस ने इस केस में खात्मा रिपोर्ट कोर्ट में पेश कर दी थी। भोपाल जिला कोर्ट ने रिपोर्ट में गंभीर खामियां पाईं। इसके बाद अब दोबारा जांच के आदेश ​दिए गए हैं। आज 'द सूत्र' आपको बताने जा रहा है, सरला मिश्रा की पूरी कहानी...। 28 साल का A To Z, जो आपके लिए जानना जरूरी है।

पढ़िए ये खास खबर...

मध्य प्रदेश कांग्रेस की प्रमुख नेता रहीं सरला मिश्रा की जिंदगी के हर मोड़ पर संघर्ष था। यह कहानी केवल एक महिला का राजनीतिक सफर नहीं, उस दौर की है, जब राजनीति को लेकर हर कदम भारी चुनौतियों से भरा था। यह दास्तां एक ऐसी महिला की है, जिसने राजनीति की दुनिया में संघर्षों को हराया। अपनी पहचान बनाई और बड़ा मुकाम हासिल किया।

मध्य प्रदेश के होशंगाबाद (नर्मदापुरम) से ताल्लुक रखने वाली सरला सामान्य परिवार से थीं। शिक्षा में रुचि और समाज की बेहतरी का सपना उनके दिल में हमेशा से था। बचपन में उन्होंने ठान लिया था कि कुछ अलग करना है। वह दौड़-भाग करतीं। बड़े मुद्दों पर अपनी बात रखतीं। समाज की कमियों पर नजर डालतीं।

जब सरला थोड़ी बड़ी हुईं, तो उन्होंने राजनीति को चुना। उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती थी, एक महिला होते हुए उस समय की पुरुष प्रधान राजनीति में अपनी जगह बनाना। उनकी मेहनत ने उन्हें आगे बढ़ने की ताकत दी। वह 1997 का साल था। मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। दिग्विजय सिंह मुख्यमंत्री थे। सरला तब कांग्रेस की सक्रिय सदस्य थीं। 40 की उम्र में तेजतर्रार नेता सरला मिश्रा कांग्रेस का बड़ा चेहरा बन गई थीं। वे इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अर्जुन सिंह के संपर्क में भी रही। 

वैलेंटाइन डे के दिन (14 फरवरी 1997)...अचानक खबर आई कि सरला मिश्रा आग में बुरी तरह झुलस गईं। तब वे भोपाल के टीटीनगर स्थित सरकारी आवास में रहती थीं। उन्हें तत्काल भोपाल के हमीदिया अस्पताल ले जाया गया। स्थिति गंभीर होने पर दिल्ली के सफदरगंज हॉस्पिटल में रेफर कर दिया गया। आखिरकार 19 फरवरी 1997 को उन्होंने दम तोड़ दिया। 

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प​रिवार ने मौत को हत्या करार दिया 

सरला मिश्रा के परिवार ने उनकी मौत को हत्या करार दिया। इसकी आंच तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और उनके भाई लक्ष्मण सिंह तक पहुंची। तत्कालीन गृहमंत्री चरणदास महंत ने 27 फरवरी 1997 को विधानसभा में सीबीआई जांच घोषणा की थी, पर नोटिफिकेशन ही जारी नहीं हुआ। फिर तीन साल की जांच के बाद 27 मार्च 2000 को टीटी नगर थाना पुलिस ने केस की फाइल बंद कर दी। पुलिस ने तर्क दिया कि सरला मिश्रा की हत्या के कोई पुख्ता सबूत नहीं मिले। इस रिपोर्ट को लेकर सवाल उठने लगे, क्योंकि सरला मिश्रा की मौत के आसपास कई अनसुलझी बातें थीं।

आइए, जानते हैं, क्या हैं वे अनसुलझी बातें 

28 साल बीत चुके हैं, पर सरला मिश्रा की मौत से जुड़ी गुत्थियां आज भी जस की तस हैं। एक जलती हुई महिला, लैंडलाइन से किया गया आखिरी कॉल, अधजले दस्तावेज और बंद कमरे में बुझती जिंदगी... लेकिन न तो पुलिस जांच ने इन सवालों के जवाब दिए और न ही राजनीतिक इच्छाशक्ति ने कभी सच्चाई सामने आने दी।

सरला मिश्रा की मौत सामान्य आत्मदाह नहीं, बल्कि संगठित हत्या थी, ऐसा आरोप उनके भाई अनुराग मिश्रा सालों से करते आ रहे हैं। सरला का शरीर जब जलता मिला, तब वह 90 प्रतिशत झुलस चुकी थीं। आश्चर्यजनक रूप से उन्होंने पड़ोस में फोन किया, लेकिन आज तक पुलिस ने उस लैंडलाइन की कॉल डिटेल निकलवाने की जरूरत नहीं समझी।

घटनास्थल से जब्त वस्तुओं के फिंगरप्रिंट तक की जांच नहीं कराई गई। कमरे को पहले ही साफ कर दिया गया था, जिससे माना जाता है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ की गई। सबसे गंभीर सवाल यह है कि जब उनकी हथेलियां जल चुकी थीं, तब मृत्युपूर्व बयान पर उनके हस्ताक्षर कैसे मिल गए?

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सरला के भाई के गंभीर आरोप 

सरला मिश्रा के भाई अनुराग मिश्रा का आरोप है कि उनकी बहन की मौत आत्महत्या नहीं, पूर्व नियोजित हत्या थी। उनका कहना है कि सरला कांग्रेस की सक्रिय नेता थीं और सोनिया गांधी से सीधा संवाद रखती थीं। उनका तत्कालीन मुख्यमंत्री से विवाद हुआ था। दिग्विजय सिंह की सरकार में जानबूझकर मामले को रफा-दफा किया गया। जब 2019 में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार बनी, तब जाकर केस की फाइल दोबारा खोली गई और कोर्ट में पेश की गई। 

सबसे बड़े सुलगते सवाल...?

अनुराग मिश्रा कहते हैं, हम शुरू से बता रहे हैं कि दीदी की हत्या हुई, जबकि पुलिस आत्महत्या कहती रही। दीदी (सरला) के पड़ोसी राजीव दुबे का बयान था कि सरला का मेरे घर फोन आया था कि मैं जल रही हूं। आप मुझे बचाओ। उसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के निवास से राजीव दुबे और योगीराज शर्मा को फोन पहुंचता है कि सरला मिश्रा का इलाज कराओ। ये दोनों दो घंटे तक उन्हें लेकर बैठे रहे। अस्पताल लेकर क्यों नहीं गए? डॉ. योगीराज शर्मा का पुलिस रिकॉर्ड में बयान है कि जब मैं घटना वाले घर पहुंचा तो मकान धुला और पोछा हुआ था। उसकी पुलिस ने जांच क्यों नहीं की। 

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क्या कहा पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट में...

गौरतलब है कि भोपाल पुलिस ने 27 मार्च 2000 को इस मामले में क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी, जिसमें कहा था कि सरला ने डाइंग डिक्लेरेशन में किसी को अपनी मौत का जिम्मेदार नहीं ठहराया। पुलिस का दावा था कि सरला ने 15 फरवरी को सुबह 3.30 बजे दिए गए बयान में कहा था, "मैंने दो ढक्कन घासलेट डालकर आग लगा ली। हर काम में असफल होने के कारण तंग आकर मैंने खुदकुशी की। इसमें किसी का कोई दोष नहीं है। मुझे किसी ने नहीं जलाया, मैं स्वयं जली हूं।"

अब क्या?

अब भोपाल जिला अदालत ने पूरे मामले की दोबारा जांच के आदेश दिए हैं और पुलिस की खात्मा रिपोर्ट को खारिज कर दिया है। न्यायाधीश पलक राय ने आदेश में कहा कि मृतका के मृत्यु पूर्व बयान की मेडिकल पुष्टि नहीं की गई। बयान के समर्थन में जो कागज के टुकड़े मिले, उनकी भी स्वतंत्र जांच नहीं कराई गई। घटनास्थल सें सरला मिश्रा कोई फिंगरप्रिंट भी नहीं लिया गया।

मिश्रा परिवार ने इसे हत्या बताया था और कुछ नेताओं पर आरोप भी लगाए थे। पुलिस ने 2000 में केस की फाइल बंद कर दी थी। खात्मा रिपोर्ट अगले 19 वर्ष तक कोर्ट में पेश नहीं की गई। फरवरी 2025 में हाईकोर्ट ने आदेश दिए कि पहले खात्मा रिपोर्ट में बयान दर्ज हों और फिर कार्रवाई की जाए। इसके बाद भोपाल कोर्ट में सुनवाई चली और सरला के भाई अनुराग के बयान दर्ज हुए। कोर्ट ने पाया कि जांच में कई गंभीर खामियां हैं।

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