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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट।
मध्य प्रदेश में कार्यरत हजारों होमगार्ड सैनिकों को आजादी के बाद से अब तक एक नियमित कर्मचारी नहीं माना जाता। होमगार्ड के सैनिकों से समन देने से लेकर थानों में रोजनामचा दर्ज करने तक का काम कराया जाता है। लेकिन जिन सैनिकों के बगैर प्रशासनिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी उनको आज तक नियमित न किए जाने पर हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है।
पुलिस की तरह नियमित करने को लेकर याचिका
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में हजारों होमगार्ड सैनिकों के द्वारा याचिका दायर की गई है। जिसमें उन्होंने यह मांग की है कि उन्हें भी पुलिस सर्विसेज की तरह ही नियमित कर्मचारियों का दर्जा दिया जाए और दो माह का कॉल आफ ड्यूटी भी रद्द किया जाए। इस मामले में इंदौर और ग्वालियर खंडपीठ में दायर की गई सभी याचिकाएं भी जबलपुर हाईकोर्ट ट्रांसफर की गई है जिसके बाद कुल 273 याचिकाओं पर जबलपुर हाईकोर्ट में संजीव सचदेवा और विनय सराफ की डिविजनल बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई। इस मामले में याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता विकास महावर सहित अन्य ने पक्ष रखा।
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होमगार्ड को दिया जाता है 2 महीनो का कॉल ऑफ
आपको बता दें कि होमगार्ड सैनिकों को 34 महीना की ड्यूटी के बाद दो महीना का कॉल ऑफ दिया जाता है। तो 36 महीनो की ड्यूटी में होमगार्ड को 2 महीने के लिए कार्य से विरक्त कर दिया जाता है। साल 1990 में यह अवधि 6 महीनो के बाद दो महीना को कॉल ऑफ थी वहीं 1990 से लेकर साल 1998 तक होमगार्ड सैनिकों को 10 महीने की ड्यूटी में दो माह का कॉल ऑफ दिया जाता था। हाईकोर्ट के पिछले आदेश के बाद अब होमगार्ड सैनिकों को 3 साल या ने 36 महीने में दो माह का कॉल ऑफ दिया जाता है। जिसके पीछे सरकार के ओर से यह पक्ष है कि होमगार्ड सैनिकों की सर्विस एक वॉलंटरी सर्विस है, हालांकि हाईकोर्ट में हुई सुनवाई पर कोर्ट इस तथ्य को सिरे से नकारता हुआ नजर आया।
वॉलंटरी शब्द का अर्थ क्या होता है?....
सरकार की ओर से इस मामले में पक्ष रखा गया कि होमगार्ड सैनिकों की सर्विस नियम के अनुसार एक वॉलंटरी सर्विस है और इसलिए इनको नियमित कर्मचारी नहीं माना जा सकता। जस्टिस संजीव सचदेवा ने शासकीय अधिवक्ता से यह प्रश्न किया कि आप ही बताएं वॉलंटरी शब्द का अर्थ क्या होता है? उन्होंने सरकार से पूछा कि यदि होमगार्ड वॉलंटरी एम्पलाई है तो क्या इन्हें यह छूट है कि यह जब चाहे तब ड्यूटी ज्वाइन करें और जब ना चाहे तो ड्यूटी ज्वाइन ना करें। क्योंकि यदि जरूरत के आधार पर सरकारी हत्या करती है कि ना कब ड्यूटी पर आना है और उसे समय पहले ड्यूटी ज्वाइन करनी होती है तो यह वॉलंटरी एम्पलाई नहीं हो सकते। अब इस बारे में सरकार को अगली सुनवाई में जवाब देना होगा।
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1947 और अब की स्थितियां अलग, फिर क्यों नहीं बदले नियम
सरकार की ओर से अधिवक्ता ने एमपी होमगार्ड अधिनियम 1947 का हवाला देते हुए होमगार्ड सैनिकों को नियमित कर्मचारी बनाए जाने का विरोध किया जिस पर याचिका करता हूं की ओर से अधिवक्ता विकास महावर ने कोर्ट को बताया कि इस मामले में हाईकोर्ट के आदेश के बाद ही एक हाई लेवल लेवल कमिटी गठित की गई थी जिसके सदस्य भोपाल के रिटायर्ड होमगार्ड डीजीपी डीपी खन्ना, जबलपुर के रिटायर्ड डिवीजनल कमांडेंट प्रकाश राजपूत और डायरेक्टर जनरल ऑफ पुलिस ह्यूमन राइट कमिशन भोपाल के प्रदीप पानीवाल थे।
इस कमेटी की रिपोर्ट से या साफ हुआ था कि 1947 के बाद होमगार्ड सैनिकों का सुरक्षा से लेकर इमरजेंसी के लिए उपयोग किया जाता रहा है। इन सैनिकों ने 1962 में चीन के ओर से आक्रमणकारियों से भी देश की सीमाओं की रक्षा की है। इसी रिपोर्ट के अनुसार कॉल आफ ड्यूटी का नियम सरकार के बजट में आर्थिक कमियों के चलते बनाया गया था। जिसे आज तक लागू किया गया है। इसके बाद कोर्ट ने यह कहा कि 1947 में स्थितियां अलग थी लेकिन आज की स्थितियां अलग है और होमगार्ड सैनिकों को दो माह का कॉल ऑफ किस आधार पर दिया जाता है इस पर भी सरकार जवाब दें।
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होमगार्ड सैनिकों को क्यों नहीं मान रहे नियमित कर्मचारी
जबलपुर हाईकोर्ट ने इस मामले में सख्ती से सरकार से पूछा है कि आखिर किस आधार पर होमगार्ड सैनिकों को 2 महीने का कॉल ऑफ दिया जाता है। कॉल ऑफ दिए जाने के रोस्टर को भी कोर्ट ने मनमर्जी माना है। कोड नंबर टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि क्या ऐसी कोई दो माह होते हैं जिसमें आपको होमगार्ड सैनिकों की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ती, जिस पर शासन की ओर से अधिवक्ता ने तर्क दिया कि इन होमगार्ड सैनिकों को रोशन के आधार पर कॉल ऑफ दिया जाता है।
कोर्ट ने इस रोटेशन को बिल्कुल गलत मानते हुए यह टिप्पणी की यदि आपको 10 हजार होमगार्ड सैनिकों में से 8 हजार की जरूरत है तो उन्हें आपको नियमित करना जरूरी होगा। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने अब सरकार को अगली सुनवाई में इन दो मुद्दों पर जवाब देने के आदेश जारी किए हैं कि होमगार्ड सैनिक वॉलंटरी सर्विस कैसे माने जा रहे हैं और 2 माह के कॉल ऑफ के लिए जो नियम बनाए गए हैं उसकी मिनट ऑफ मीटिंग सहित अन्य जानकारी पर जवाब दें। इस मामले की अगली सुनवाई 27 मार्च को तय की गई है।
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