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Photograph: (the sootr)
BHOPAL. मध्य प्रदेश सरकार ने ताप्ती नदी के उद्गम स्थल को उसकी प्राचीन पहचान लौटाने की दिशा में बड़ा फैसला किया है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने मंगलवार को बैतूल जिले की मुलताई तहसील का नाम बदलकर ‘मूलतापी’ किए जाने की घोषणा की।
दरअसल, पौराणिक ग्रंथों और तत्कालीन सीपी–बरार इस्टेट गजेटियर में इस स्थान का नाम मूलतापी ही दर्ज है। कालांतर में अपभ्रंश और बोलचाल की भाषा में यह नाम बदलकर मुलताई हुआ। आगे चलकर यही नाम सरकारी दस्तावेजों का भी हिस्सा बन गया।
फिर चर्चा में ताप्ती का उद्गम स्थल
मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद बैतूल जिले का यह तहसील मुख्यालय एक बार फिर चर्चा में आ गया है। सरकार के इस कदम को सांस्कृतिक विरासत,पौराणिक पहचान और ऐतिहासिक पुनर्स्थापन के रूप में देखा जा रहा है। नाम परिवर्तन की औपचारिक प्रक्रिया को लेकर प्रशासनिक स्तर पर तैयारी शुरू हो गई है।
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ताप्ती के उद्गम ने दिया ‘मूलतापी’ नाम
बैतूल जिले में स्थित मूलतापी का विशेष महत्व इसलिए है, क्योंकि यही सूर्यपुत्री ताप्ती नदी का मूल उद्गम स्थल माना जाता है। मुलताई के उत्तर में स्थित सतपुड़ा पठार पर मौजूद जलकुंड से ताप्ती की धारा प्रवाहित होती है। यह क्षेत्र नारद टेकरी के नाम से भी जाना जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, देवर्षि नारद ने यहीं कठोर तपस्या की थी। आज का नारद कुंड उसी स्थल की पहचान है। श्रीमद्भागवत और स्कंद पुराण में भी ताप्ती के इस उद्गम स्थल का उल्लेख मिलता है। इसी कारण इसे प्राचीन काल में मूलतापी कहा गया।
ताप्ती नदी का पौराणिक और धार्मिक महत्व
पुराणों के अनुसार ताप्ती,सूर्यदेव और छाया की पुत्री तथा शनिदेव की बहन हैं। उन्हें आदिगंगा भी कहा गया है। बैतूल जिले के भैंसदेही क्षेत्र से निकलने वाली पूर्णा नदी,ताप्ती की प्रमुख सहायक नदी है। पुराणों में पूर्णा को चंद्रदेव की पुत्री बताया गया है।
इस तरह सूर्य और चंद्र की पुत्रियों का यह संगम भारतीय धार्मिक परंपरा में अद्भुत माना गया है। ताप्ती भी नर्मदा की तरह पश्चिम की ओर बहने वाली नदी है,हालांकि दोनों नदियाँ आपस में कहीं नहीं मिलतीं।
गजेटियर में दर्ज है ‘मूलतापी’ नाम
बैतूल कलेक्टर नरेंद्र कुमार सूर्यवंशी के अनुसार, तत्कालीन बरार इस्टेट गजेटियर में इस क्षेत्र का नाम मूलतापी ही दर्ज है। मराठा और ब्रिटिश शासनकाल में भी यही नाम प्रचलन में था। उस दौर में मूलतापी प्रशासनिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का महत्वपूर्ण केंद्र रहा।
ताप्ती को बांधना किसी के बस में नहीं
ताप्ती नदी के प्राकृतिक स्वरूप को लेकर मान्यता है कि इसे अब तक कोई स्थायी रूप से बांध नहीं सका। इसके जल संग्रह के लिए बनाए गए कई बांध टिक नहीं पाए। मुलताई के पास स्थित चंदोरा बांध इसका उदाहरण है,जिसे ताप्ती की जलधारा ने दो बार क्षतिग्रस्त किया।
नदी में कई ऐसे गहरे डोह हैं, जिनकी वास्तविक गहराई आज तक मापी नहीं जा सकी है। लगभग 724 किलोमीटर की यात्रा तय कर ताप्ती,खंभात की खाड़ी के रास्ते अरब सागर में समाहित होती है।
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ताप्ती स्नान और कार्तिक मेला
पुराणों में ताप्ती का नाम स्मरण मात्र से पुण्य लाभ की बात कही गई है। भाई–बहन के साथ स्नान का विशेष महत्व माना जाता है। हर वर्ष कार्तिक अमावस्या पर ताप्ती तट पर विशाल मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु स्नान और दर्शन के लिए पहुंचते हैं।
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