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मध्यप्रदेश के नगरीय निकायों में अध्यक्षों के खिलाफ विरोध के सुर तेज हो गए हैं। शिवपुरी, सागर, गुना सहित 20 अन्य जिलों में पार्षदों की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी चल रही है। इस विरोध के पीछे भ्रष्टाचार और मनमानी के गंभीर आरोप हैं, जिन्हें लेकर कई पार्षद अब खुलकर सामने आ गए हैं। यह स्थिति प्रदेश के भाजपा शासित निकायों में राजनीतिक गहमा-गहमी को और बढ़ा रही है। अब पूरे मामले पर एमपी बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल का बयान सामने आया है।
हेमंत खंडेलवाल का बयान
प्रदेश सरकार और भाजपा नेतृत्व इस मुद्दे पर अपने रुख को स्पष्ट करना चाहते हैं। बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष हेमंत खंडेलवाल ने कहा कि निकायों में अध्यक्ष व पार्षदों के बीच चल रहे विवादों को समन्वय से सुलझाने का प्रयास हो रहा है। हालांकि कई जगह आपसी मामले अधिक हैं। अविश्वास के बजाय भ्रष्टाचार में लिप्त अध्यक्षों को हटाने की बात है तो यह सही है। हमारी सरकार भ्रष्टों को सहन नहीं करेगी। ज्यादातर जगह भाजपा के ही अध्यक्ष हैं इसलिए जो विवाद आएंगे, वह हमारे ही आएंगे।
नगरीय निकायों में अविश्वास प्रस्ताव का मुद्दा
प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी की जा रही है। शिवपुरी, सागर और गुना जैसे जिलों में जहां प्रमुख निकायों में अविश्वास प्रस्ताव का संकट खड़ा हो गया है। वहीं दूसरी ओर पार्षदों के आरोप भी सामने आ रहे हैं। इन आरोपों में भ्रष्टाचार, मनमानी और विकास नहीं होने के मामले शामिल हैं। नगर पालिका अध्यक्ष के खिलाफ इन विरोध के सुर से काफी गहमागहमी देखी जा रही है।
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अध्यक्षों पर आरोप
प्रदेश के विभिन्न नगरीय निकायों के अध्यक्षों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए गए हैं। इन आरोपों के कारण भाजपा की साख पर सवाल खड़े हो रहे हैं। कुछ स्थानों पर तो कलेक्टर द्वारा भेजे गए आरोप पत्र पर सुनवाई भी शुरू होने वाली है। उदाहरण के लिए सागर जिले के देवरी नपा अध्यक्ष नेहा जैन को अयोग्य ठहराकर हटा दिया गया है। इसी तरह शिवपुरी की नपाध्यक्ष गायत्री शर्मा के खिलाफ आरोप पत्र भेजा गया है और गुना जिले के मधूसूदनगढ़ की नपाध्यक्ष के खिलाफ भी जांच चल रही है।
स्थानीय प्रशासन और सरकार पार्षदों की बगावत रोकने की कोशिश कर रही है, लेकिन इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा सका। भाजपा शासित नगर निगमों में ये विरोध तेज हो गया है। खासकर जब ये आरोप सीधे तौर पर पार्टी के नेतृत्व को प्रभावित कर रहे हैं।
बीजेपी शासित निकायों में आंतरिक गुटबाजी
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, प्रदेश के निकायों में अविश्वास प्रस्ताव और अध्यक्षों के खिलाफ विरोध के मुख्य कारण आंतरिक गुटबाजी हैं। अध्यक्ष बनने के लिए पार्षदों से किए गए वादे और जोड़-तोड़ पूरी नहीं हो पाए, जिससे असंतोष बढ़ा है।
पार्षद इस बात का भी रहे विरोध
प्रदेश सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि एक साल पहले बदल दी थी। पहले अविश्वास प्रस्ताव लाने की अवधि दो साल थी, जिसे अब तीन साल कर दिया गया है। इसी तरह बहुमत की संख्या भी दो तिहाई से बढ़ाकर तीन चौथाई कर दी गई है। अब इस अवधि के खत्म होने पर फिर से पार्षद को अविश्वास प्रस्ताव लाने में दिक्कत हो रही है। अब इस बात पर भी पार्षद विरोध कर रहे हैं।
इन जिलों में बढ़ रहा है विरोध
मध्य प्रदेश के विभिन्न निकायों में अविश्वास प्रस्ताव की प्रक्रिया तेज हो गई है। प्रमुख जिलों जैसे शिवपुरी, गुना, सागर और टीकमगढ़ में पार्षदों के विरोध के स्वर और तेज हो गए हैं। इसके अलावा, विदिशा, हरदा, मुरैना, दमोह जैसे अन्य जिलों में भी यह बगावत देखने को मिल रही है।