नियमों की भूल-भुलैया: MP के खिलाड़ियों की सरकारी नौकरी की राह में रोड़ा

मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों के लिए सरकारी नौकरी की राह में नियम रुकावट बन रहे हैं। खेल कोटा के तहत नौकरी में प्रतिनिधित्व नहीं मिल पा रहा है। सरकार योजनाओं का दावा तो कर रही है, लेकिन खिलाड़ियों के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर कम हो रहे हैं।

author-image
Sanjay Sharma
New Update
players government jobs

Photograph: (THESOOTR)

Listen to this article
0.75x1x1.5x
00:00/ 00:00

BHOPAL. मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों के सुनहरे सपने बीते पांच सालों में लगातार धुंधले हो रहे हैं। खेल कोटा के बार-बार बदलते नियमों की भूल-भुलैया में हजारों खिलाड़ी उलझे पड़े हैं। सरकार खेल गतिविधियों को बढ़ावा देने हर साल भारी भरकम बजट खर्च कर रही है। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश को गौरव दिलाने वाले खिलाड़ियों को सरकारी नियमों के गतिरोध नौकरियों तक पहुंचने से रोक रहे हैं।

मध्य प्रदेश में बार-बार खिलाड़ियों की अनदेखी और नौकरियों में उन्हें पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं मिलने का मुद्दा उठता रहा है। 1 दिसम्बर को भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार ने भी खिलाड़ियों के भविष्य की चिंता करते हुए मध्य प्रदेश विधानसभा में सवाल उठा चुके है। जिसके जवाब में प्रदेश के खेल मंत्री को भी असहज होना पड़ा था। खिलाड़ियों की अनदेखी इतना गंभीर मसला है कि सदन में संसदीय कार्य मंत्री कैलाश विजयवर्गीय भी चिंता जता चुके हैं।  

विधानसभा में बीजेपी विधायक ने उठाए सवाल

मध्य प्रदेश में लगातार न केवल बड़े शहर बल्कि, अब विधानसभा क्षेत्रों में भी या कहें ग्रामीण अंचलों में भी स्टेडियम और खेल परिसर बनाए जा रहे हैं। सरकार खिलाड़ियों को प्रोत्साहित करने कई योजनाएं चला रही है।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव से लेकर खेल मंत्री विश्वास सारंग भी इसको लेकर तमाम दावे कर रहे हैं, लेकिन दावों की हकीकत से विधानसभा में बीजेपी विधायक के सवाल ने पर्दा उठा दिया है। 

प्रदेश में खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में पर्याप्त अवसर नहीं मिलने को लेकर पहले भी आवाज उठती रही है। हाल ही में मध्य प्रदेश पुलिस की कांस्टेबल, एएसआई और सब इंस्पेक्टर भर्ती में भी खिलाड़ियों को न तो अलग से आरक्षण दिया गया न ही उन्हें बोनस अंकों का प्रावधान रखा गया। 

ये खबर भी पढ़ें...

एमपी विधानसभा में नगरपालिका संशोधन पारित, राइट टू रिकॉल और सीधी चुनाव प्रणाली पर गरमाई सियासत

नौकरियों में नहीं प्रतिनिधित्व 

सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा निकाली जाने वाली भर्तियों में भी खेल प्रतिभाओं को अवसर नहीं मिल रहे हैं। साल 2024 में भी स्कूल शिक्षा विभाग, संयुक्त भर्ती परीक्षा, आबकारी विभाग की भर्ती परीक्षाओं में खिलाड़ियों की अनदेखी की गई है। खेल प्रतिभाओं को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उत्कृष्ट प्रदर्शन के आधार पर सरकार पचास लाख से लेकर एक करोड़ रुपए की सम्मान निधि की घोषणा तो करती है लेकिन खेल कोटे के तहत सरकारी भर्तियों में उनकी हिस्सेदारी अब तक तय नहीं कर पाई है। 

एमपी सरकार के दो साल पूरे होने पर सर्वे में शामिल होने के लिए फोटो पर क्लिक करें...

MP GOVERNMENT

बोनस अंक नहीं बस आयुसीमा में रियायत 

प्रदेश में पुलिस की भर्तियों में खिलाड़ियों को प्राथमिकता देने के दावे तो बहुत हैं लेकिन ये किसी खैरात जैसे हैं। इन भर्तियों के नोटिफिकेशन में साफ तौर पर विक्रम अवार्ड हासिल करने वाले खिलाड़ियों को केवल आयुसीमा में 5 साल की छूट दी गई है। जबकि खिलाड़ी सरकार से इन भर्तियों में राजस्थान, पंजाब और हरियाणा राज्य और केंद्र सरकार के रेलवे, राष्ट्रीयकृत बैंक और भारतीय सेना की तरह कोटा तय करने की मांग करते आ रहे हैं।

खिलाड़ियों का कहना है केवल पांच साल की छूट के प्रावधान से उन्हें सरकारी नौकरियों में प्रतिनिधित्व नहीं मिल सकता। खिलाड़ियों का कैरियर बहुत छोटा होता है। जैसे- तैसे वे उत्कृष्ट प्रदर्शन के दम पर राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाते हैं तब तक आयु सीमा की छूट से बाहर हो जाते हैं। कोटा उन्हें मिल नहीं रहा इस वजह से ये अवसर उनके हाथ ही नहीं आ पाते। 

ये खबर भी पढ़ें...

कर्नाटक राज्यपाल के परिवार में घरेलू कलह का खुलासा, पोते की पत्नी ने लगाया दहेज के लिए मारपीट का आरोप

वादों में सम्मान, नौकरी नहीं 

सरकार के दावे, करोड़ों रुपए के बजट के बावजूद मध्य प्रदेश में अवसर खिलाड़ियों के अनुकूल माहौल नहीं बन पा रहा है। मध्य प्रदेश सरकार ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए खेल एवं युवा कल्याण विभाग को 586 करोड़ रुपए का बजट दिया था।

इसमें खेलो इंडिया मध्य प्रदेश के तहत 180 करोड़, खेल अकादियों के विस्तार और स्थापना पर 170 करोड़ और स्टेडियम और खेल इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर 159 करोड़ रुपए खर्च किए जाना थे। यानी हर साल 500 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो रहे हैं लेकिन सालाना 10 खिलाड़ियों को भी सरकार नौकरी नहीं दे पा रही है।

सरकार ने ही विधानसभा को बताया है कि अप्रैल 2020 के बाद से अब तक केवल 37 खिलाड़ियों को ही नौकरी दी गई है। यही नहीं नियमों की भूलभुलैया के कारण विक्रम अवार्ड की उपलब्धि हासिल करने वाली खिलाड़ी वर्षा वर्मन और मुस्कान किरार सरकारी नौकरी से वंचित रह गई हैं। उन्हें नौकरी के लिए आवेदन करने में देरी की वजह बताकर अवसर से बाहर कर दिया गया है।

वहीं राजधानी से सटे सीहोर के खिलाड़ी कपिल परमार भी कई बार पीएम से लेकर सीएम तक आवेदन कर चुके हैं लेकिन अफसरशाही ने उनके सामने भी रोड़ा अटकाकर रखा है। 

ये खबर भी पढ़ें...

अजाक्स में आईएएस संतोष वर्मा की नियुक्ति पर बवाल, मुख्यमंत्री तक पहुंची शिकायत

नियम के पेंच से छूट रहे अवसर

मध्य प्रदेश में खेल प्रतिभाओं में सरकारी रुख से बेहद निराशा का माहौल है। ओलंपिक, एशियन गेम्स, कॉमनवेल्थ गेम्स सहित राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्पर्धाओं में नाम कमाने वाले खिलाड़ी मध्य प्रदेश में एक अदद नौकरी तक हासिल नहीं कर पा रहे हैं। चार साल पहले तक मध्य प्रदेश में खिलाड़ियों को सरकारी नौकरियों में बोनस अंक का प्रावधान था। जिसे तत्कालीन शिवराज सरकार ने अचानक ही बदल दिया।

अब सरकारी मदद के रूप में केवल उन्हें आयु सीमा में पांच साल की छूट मिल रही है। यानी ऐसे में खिलाड़ी सरकार के सामने सवाल उठा रहे हैं कि आखिर खेलों पर भारी भरकम बजट खर्च करने का लाभ ही क्या रह जाता है जब खेल प्रतिभाओं को उनका हक ही नहीं मिल पा रहा।

खेलो इंडिया पर जिला और तहसील स्तर पर हो रहे आयोजन केवल सरकारी प्रचार का साधन बनकर रह गए हैं। इन आयोजनों में भी मंच पर खेल प्रतिभाओं से ज्यादा नेताओं को सम्मान मिलता है। 

ये खबर भी पढ़ें...

आर्मी जॉब फ्रॉड: कर्नल बनकर आया और ज्वाइनिंग लेटर देकर रिटायर्ड फौजी से ठग लिए 15 लाख

एमपी छोड़ रहे निराशा में डूबे खिलाड़ी

सरकार की बेरुखी खेल प्रतिभाओं को मध्य प्रदेश से पलायन के लिए मजबूर कर रही हैं। प्रदेश के ये खिलाड़ी दूसरे राज्यों की खेल अकादमियों से जुड़कर अब उनका गौरव बढ़ा रही हैं। नेशनल गेम्स में शामिल हुए 331 खिलाड़ियों में से 120 खिलाड़ी मध्य प्रदेश के निवासी होने के बावजूद दूसरे राज्यों की टीम से स्पर्धा में उतरे चुके हैं।

वाटर स्पोर्टस में उतरे 58 में से 25 खिलाड़ी ऐसे थे जो मध्य प्रदेश की अकादमियों में अनदेखी के कारण दूसरे राज्यों से खेलने मजबूर हो चुके हैं। केवल दो साल ही में मध्य प्रदेश के केनाइंग- कयाकिंग के 25 खिलाड़ियों ने दूसरे प्रदेश की टीम में जगह बनाई है। यही स्थिति एथलेटिक्स, कुश्ती और दूसरे खेलों में है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह नौकरियों में घटते अवसर और सरकार की बेरुखी बताई जा रही है। 

दूसरे राज्यों में गारंटी, यहां केवल वादे

अंतर राष्ट्रीय स्तर पर मेडल हासिल कर प्रदेश का गौरव बढ़ा चुके खिलाड़ी कपिल परमार का कहना है  मध्य प्रदेश में स्पोर्टस कोटा केवल रस्मअदायगी बन चुका है। यहां खिलाड़ियों को सरकारी नौकरी देने के नियम कभी भी बदल दिए जाते हैं और कोटे की स्थिति स्पष्ट ही नहीं है।

सरकार ने पुलिस भर्तियों में 50 पद आरक्षक और 10 पद सब इंस्पेक्टर रैंक के लिए सुरक्षित करने का वादा किया था लेकिन एक तो ये भर्तियां ही कई- कई साल में आती हैं। उस पर भी केवल आयुसीमा में ही छूट मिलती है। 

जबकि केरल, कर्नाटक, तमिलनाडू और हरियाणा में खिलाड़ियों को ग्रुप सी और डी की भर्तियों में 3-3 प्रतिशत आरक्षण तय है। मणिपुर में क्लास-2 के पदों पर नियुक्ति के प्रावधान हैं। तमिलनाडू में पुलिस, वन विभाग जैसी वर्दीधारी सेवा में 10 फीसदी पद सुरक्षित हैं।

ओड़िसा में पुलिस विभाग में ग्रुप- बी एवं सी में सीधी भर्ती का नियम है। पंजाब और महाराष्ट्र सरकार राष्ट्रीय स्तर के मेडलिस्ट को नौकरी की गारंटी देती है। वहीं मध्य प्रदेश में सालाना 5 नौकरियां भी खिलाड़ियों के हिस्से में नहीं आ रही हैं। 

विक्रम अवार्ड के नाम का अड़ंगा 

खेल प्रतिभाओं के लिए विक्रम अवार्ड मिलना गौरव की बात है, लेकिन मध्य प्रदेश की अफसरशाही ने इसे ही खिलाड़ियों के सुरक्षित भविष्य की राह का रोड़ा बना दिया है। मध्य प्रदेश में विक्रम अवार्ड प्राप्त खिलाड़ियों को ही नौकरियों में प्राथमिकता का प्रावधान है, लेकिन हर साल केवल 10 खिलाड़ियों को ही यह अवार्ड दिया जाता है।

इन खिलाड़ियों में भी तीन से पांच खिलाड़ी आयु सीमा अधिक होने या शैक्षणिक योग्यता कम होने के कारण सरकारी नौकरियों की पात्रता से बाहर हो जाते हैं। ऐसे में सैंकड़ों खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्पर्धाओं में मेडल जीतने के बावजूद खाली हाथ रहते हैं। ऐसे खिलाड़ियों को तीन से छह लाख रुपए देकर सरकार अपने दायित्व से पल्ला झाड़ रही है।  

खेल विभाग का एमओयू भी रहा बेअसर 

खिलाड़ियों के लिए सरकारी सेवाओं में ज्यादा अवसर दिलाने खेल विभाग ने पुलिस मुख्यालय से अनुबंध किया था। इसके तहत हर साल 50 खिलाड़ियों को आरक्षक से सब इंस्पेक्टर रैंक नियुक्ति दी जानी थी। यह योजना 2021 में भर्ती नियमों में बदलाव के बाद चार साल से बंद है।

नियमों के रोड़े के कारण 2021 में आई आरक्षक भर्ती में पद तो सुरक्षित रहे लेकिन किसी खिलाड़ी की भर्ती ही नहीं हो सकी। ओलंपिक और एशियन गेम्स में मेडल हासिल करने वाले खिलाड़ी भी सरकारी नियमों की उलझन में ही फंसकर नौकरी से दूर रह गए हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव मंत्री कैलाश विजयवर्गीय मध्य प्रदेश सरकारी नौकरी मंत्री विश्वास सारंग खिलाड़ी खेल मंत्री मध्य प्रदेश विधानसभा नियमों में बदलाव भाजपा विधायक दिलीप सिंह परिहार
Advertisment