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Photograph: (thesootr)
BHOPAL. मध्य प्रदेश के सरकारी स्कूलों में नई शिक्षा नीति के प्रावधानों की अनदेखी हो रही। 92 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूलों में नियमित खेल गतिविधियां न होने के बावजूद हर साल 50 करोड़ से 1 अरब की फीस वसूली जारी है। ऐसा दो दशकों से हो रहा है।
खेल गतिविधियों के मामले में मध्य प्रदेश की हालत खराब है इसका खुलासा हाल ही में असर की एक रिपोर्ट ने भी किया है। प्रदेश में हर 100 स्कूलों में से केवल 6 स्कूलों में ही खेल गतिविधियां नियमित रूप से हो पा रही हैं। जबकि शेष 94 स्कूलों में बच्चे फीस जमा करने के बावजूद खेलों से दूर हैं।
मध्य प्रदेश के स्कूलों में खेलों की बदहाली और खेल प्रशिक्षकों की कमी पर जबलपुर हाईकोर्ट ने सरकार से जवाब तलब किया है। मामले को लेकर लगाई गई व्यक्तिगत याचिका ने हाईकोर्ट के निर्देश के बाद जनहित याचिका का रूप ले लिया है। अब खेल गतिविधियों के नाम पर फीस वसूली और खेल शिक्षकों की कमी स्कूल शिक्षा विभाग और सरकार के गले की फांस बनती नजर आ रही है।
खेल बिना ही हर साल करोड़ों की फीस :
मध्य प्रदेश एज्युकेशन पोर्टल पर प्रदेश में कक्षा 1 से 12वी तक 94039 स्कूल हैं। इनमें 1.39 करोड़ विद्यार्थी पढ़ते हैं, जिनमें 72.77 लाख छात्र जबकि 67.06 लाख छात्राएं हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले इन छात्र- छात्राओं से सालाना फीस के साथ 60 रुपए से 120 रुपए तक क्रीड़ा शुल्क यानी स्पोर्ट्स एक्टिविटी फीस भी वसूली जाती है। जबकि इनमें से 92 हजार स्कूलों में खेल गतिविधियों का नियमित संचालन ही नहीं होता। ज्यादातर स्कूलों के पास खेल मैदान, संसाधन और प्रशिक्षक ही नहीं हैं। किसी के पास मैदान है तो वहां खेल शिक्षक और संसाधनों की कमी है। स्कूल शिक्षा विभाग और जनजातीय कार्य विभाग द्वारा संचालित इन स्कूलों में खेल गतिविधियों के नियमित संचालन की कोई व्यवस्था ही नहीं की जा रही है।
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नई शिक्षा नीति की मंशा से दूर एमपी के स्कूल
मध्य प्रदेश सरकार खेलों को बढ़ावा देने का दावा करती रही है। इसके लिए बीते कुछ सालों से खेलों इंडिया जैसे अभियानों पर बेहिसाब बजट खर्च किया जा रहा है। सरकार के इन दावों की हकीकत प्रदेश के स्कूलों में खेल गतिविधियों के हालात देखकर समझी जा सकती है। यही वजह है कि स्कूली खेल स्पर्धाओं में मध्य प्रदेश राष्ट्रीय और अंतर राष्ट्रीय स्तर पर फिसड्डी है।
दो दशक पहले यानी साल 2006 में मध्य प्रदेश में स्कूलों के लिए खेल शिक्षकों की भर्ती हुई थी। उसके बाद के 20 सालों में सरकार ने खेल शिक्षकों की कमी या भर्ती पर ध्यान ही नहीं दिया। 2024 में स्कूल शिक्षा और जनजातीय कार्य विभाग ने केवल 1715 पदों पर खेल शिक्षकों की भर्ती लेकिन इनमें से केवल 507 पदों पर ही नियुक्ति की गई। यानी अब भी मध्य प्रदेश में 90 हजार से ज्यादा स्कूल खेल शिक्षकों के बिना चल रहे हैं जबकि फीस वसूली लगातार जारी है।
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जनहित याचिका में बदली व्यक्तिगत पिटिशन
स्कूलों में खेल शिक्षकों की कमी को लेकर विदिशा में रहने वाले युवा पंकज भार्गव ने व्यक्तिगत रिट पिटीशन पेश की थी। हाईकोर्ट ने मामला व्यक्तिगत की जगह बड़े समुदाय को प्रभावित करने वाला माना। व्यक्तिगत याचिका को खारिज किए जाने के बाद हाईकोर्ट के निर्देश पर पंकज भार्गव ने इसे जनहित याचिका के रूप में पेश किया।
जनहित याचिका पर अब एडवोकेट दिनेश सिंह चौहान पैरवी कर रहे हैं। एडवोकेट चौहान ने जबलपुर हाईकोर्ट में हुई सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश में खेल गतिविधियों की बदहाली पर तथ्यों के साथ पक्ष रखा। उन्होंने सरकारी स्कूलों में फीस वसूली के संबंध में भी तथ्य पेश किए। जिसके बाद हाईकोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किए हैं।
जनहित याचिका को स्वीकार करते हुए हाईकोर्ट ने प्रमुख सचिव जीएडी, लोक शिक्षण संचालनालय आयुक्त और मध्य प्रदेश कर्मचारी चयन मंडल के अध्यक्ष से जवाब तलब किया है।
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नई शिक्षा नीति की हो रही अनदेखी
देश में शिक्षा व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने समग्र शिक्षा अभियान के तहत नई शिक्षा नीति जारी की है। NEP- 2020 के तहत स्कूलों में खेल गतिविधियों को अनिवार्य किया गया है। खेलों में शामिल बच्चों के अध्ययन में पाया गया है कि वे केवल पढ़ाई करने वाले बच्चों के मुकाबले अधिक स्वस्थ और ऊर्जावान होते हैं और ज्ञानार्जन की क्षमता भी उनमें अधिक होती है।
बच्चों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास के लिए खेलों को जरूरी मानते हुए नई शिक्षा नीति में कई सिफारिशें की गई हैं। इसी में हर स्कूल में खेल मैदान, आवश्यक संसाधन और खेल शिक्षक की नियुक्ति को भी अनिवार्य किया गया है। इसके बावजूद मध्य प्रदेश में 90 हजार से ज्यादा स्कलों में पढ़ने वाले सवा करोड़ से ज्यादा छात्र खेल गतिविधियों से वंचित हैं। सरकार इन स्कूलों में न तो खेल मैदान और संसाधन उपलब्ध करा पा रही है और न ही खेल शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है।
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एमपी के स्कूलों का प्रदर्शन खराब
हाईकोर्ट में जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान एडवोकेट दिनेश सिंह चौहान ने ASER (एन्युअल स्टेटस ऑफ एज्युकेशन रिपोर्ट्स) की रिपोर्ट पेश की। इसके माध्यम से देश के अन्य राज्यों के मुकाबले खेल गतिविधियों में मध्य प्रदेश के स्कूलों की स्थिति के बारे में बताया। असर की रिपोर्ट में साल 2018, 2022 और 2024 में प्रदेशों में खेल शिक्षकों की स्थिति उजागर की गई है।
मध्य प्रदेश में साल 2024 में केवल 6.5 फीसदी स्कूलों में भी नियमित खेल प्रशिक्षकों की उपलब्धता दर्शाई गई है। जबकि साल 2022 में एमपी में 6.1 स्कूलों में ही खेल शिक्षक उपलब्ध थे। खेल शिक्षकों की उपलब्धता के मामले में मध्य प्रदेश की स्थिति राष्ट्रीय औसत 16.5 % से भी खराब है। वहीं 2024 में आंध्र प्रदेश के 17 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 11.4 %, बिहार में 29%, गुजरात में 19%, हरियाणा में 33%, जम्मू कश्मीर में 44.5%, कर्नाटक में 21.5%, झारखंड में 10.5%, केरल में 18.4%, महाराष्ट्र में 15.3%, मिजोरम में 27.4%, ओडिशा में 17.2%, राजस्थान में 51.7 %, सिक्किम में 53% और उत्तर प्रदेश में 11 स्कूलों में खेल गतिविधियों के लिए नियमित शिक्षक हैं। खेल मैदानों की उलब्धता के मामले में भी मध्य प्रदेश पीछे है।
यहां 69.7 प्रतिशत सरकारी स्कूलों के पास मैदान और खेल संसाधन हैं। जबकि आंध्र प्रदेश के 88.4 प्रतिशत, असम के 93.5, बिहार के 78, छत्तीसगढ़ के 85, गुजरात के 83, हिमाचल प्रदेश के 92, जम्मू कश्मीर के 90, झारखंड के 88, मिजोरम के 82, पंजाब के 89, ओडिशा के 91, राजस्थान के 86, महाराष्ट्र के 73, सिक्किम के 92, तमिलनाडू के 78, तेलंगाना के 82, उत्तरप्रदेश के 96, उत्तराखंड के 90 फीसदी स्कूलों के पास खेल मैदान और संसाधन उपलब्ध हैं।
दो दशक बाद हुई केवल 507 भर्ती
मध्य प्रदेश में खेल शिक्षकों की कमी को भी जनहित याचिका में प्रमुख बिंदु के रूप में पेश किया गया है। याचिकाकर्ता पंकज भार्गव की ओर से हाईकोर्ट को बताया गया कि मध्य प्रदेश में 92 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल हैं। जिनमें 1.39 करोड़ विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। इन बच्चों से हर साल स्पोर्ट्स फीस वसूली जा रही है जो 60 से 120 रुपए होती है।
यानी सरकार को क्रीड़ा शुल्क से ही हर साल करोड़ों रुपए मिल रहे हैं लेकिन खेल शिक्षक हैं ही नहीं। साल 2006 में मध्य प्रदेश में खेल शिक्षकों की भर्ती हुई थी। इसके बाद 2024 में कर्मचारी चयन मंडल के माध्यम से खेल शिक्षकों के करीब 1100 पदों पर भर्ती का विज्ञापन जारी किया गया था। लेकिन परीक्षा के बाद अब तक केवल 507 पदों पर ही खेल शिक्षकों की नियुक्ति की गई है।
स्कूल शिक्षा और जनजातीय कार्य विभाग पद खाली होने के बावजूद इन पर नियुक्ति नहीं कर पाए हैं। इस वजह से जिन पदों को भरा जाना था वे भी खाली ही रह गए हैं।
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