भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन श्रावण मास की तैयारियों में व्यस्त है। इसी समय धार्मिक संगठनों ने होटल मालिकों के नाम बोर्ड पर हिंदी में लिखने की मांग की है। उनका कहना है कि कई मुस्लिम होटल मालिकों ने अपने होटलों के नाम हिंदू नामों पर रखे हैं। इससे श्रद्धालु भ्रमित हो जाते हैं। यह स्थिति पारदर्शिता की कमी को दिखाती है।
महापौर मुकेश टटवाल का कदम
2023 में नगर निगम उज्जैन महापौर मुकेश टटवाल ने भी इस मुद्दे को उठाया था और नगर निगम अधिकारियों को निर्देशित किया था कि सभी होटलों, रेस्टोरेंट और दुकानों के बाहर मालिक का नाम, संचालक का नाम और मोबाइल नंबर अनिवार्य रूप से लिखा जाए। यह न केवल प्रशासनिक नियंत्रण को मजबूत करता है बल्कि शिकायत समाधान की प्रक्रिया को भी पारदर्शी बनाता है।
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धार्मिक संगठनों का दबाव
हालांकि, प्रशासन ने इस दिशा में निर्देश तो जारी किए थे, लेकिन व्यावसायिक संगठनों के विरोध और दबाव के कारण यह योजना अधूरी रह गई थी। अब फिर से यह मांग उठी है, और पुजारी महासंघ समेत अन्य धार्मिक संगठनों ने इसे लागू करने की मांग की है। इस बार यह मांग श्रावण मास से लागू करने की मांग की गई है।
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उज्जैन में होटलों की संख्या
उज्जैन में 500 से अधिक होटल और रेस्टोरेंट संचालित हैं। इन होटलों में पारदर्शिता की आवश्यकता महसूस की जा रही है ताकि श्रद्धालु और ग्राहक सही जानकारी प्राप्त कर सकें। गुमास्ता लाइसेंस की शर्तों के अनुसार, प्रतिष्ठान का नाम और मालिक का नाम नेमप्लेट पर हिंदी में लिखना अनिवार्य है।
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प्रशासन की कार्रवाई और जुर्माना
अगर कोई व्यवसायी इस आदेश का उल्लंघन करता है, तो नगर निगम उसका व्यापार लाइसेंस रद्द कर सकता है और 5,000 रुपये तक का जुर्माना भी लगा सकता है। इसके अलावा, ग्राहकों को भी आसानी से समस्या की स्थिति में संपर्क करने के लिए मोबाइल नंबर दिए जाने की बात कही गई है।
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पारदर्शिता का महत्व
महाकाल मार्ग केवल एक रास्ता नहीं, बल्कि श्रद्धा की यात्रा है। यहां संचालित होटलों की पारदर्शिता अनिवार्य है। नाम छुपाकर व्यापार करना आस्था के साथ छल है। इस कदम से न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि प्रशासन की निगरानी भी मजबूत होगी।
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