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INDOER. देश के आदर्श पुलिस थाने के तौर पर पहचाने गए मंदसौर के मल्हारगढ़ थाने ने मप्र पुलिस की गजब की भद पिटवाई है। इस मामले में मप्र हाईकोर्ट ने मंदसौर के एसपी विनोद कुमार मीणा को पहले तलब किया था। अब गृह विभाग के प्रमुख सचिव शिवशेखर शुक्ला को भी हाईकोर्ट में उपस्थित होने के लिए कहा गया है, लेकिन वे वीसी (वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग) के जरिए उपस्थित होंगे।
अगली सुनवाई 12 जनवरी को होगी। हाईकोर्ट ने निर्देश दिए हैं कि पूर्व में दिए गए आदेश के तहत पुलिस को बॉडी कैम दिए जाएं और पुलिस बल बढ़ाया जाए।
यह है मामला
हाईकोर्ट जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की कोर्ट में सोहनलाल छात्र की जमानत याचिका का यह पूरा मामला है। इसमें आरोप है कि पुलिस ने उसे राजस्थान की बस से 29 अगस्त की सुबह 11.30 बजे गिरफ्तार किया था। इसके बावजूद केस शाम 5.15 बजे बताया था।
इसके पास कुछ सामान नहीं होने पर भी ढाई किलो अफीम का केस बनाया गया था। परिजन ने बस के सीसीटीवी फुटेज पेश किए और कहा कि बेवजह होनहार छात्र जो 12वीं फसर्ट क्लास में पास हुआ था। साथ ही वह पीएससी की तैयारी करना चाहता था उसे फंसाया गया है।
इस मामले में 9 दिसंबर को एसपी मंदसौर विनोद मीणा पेश हुए थे। उन्होंने माना कि पुलिस ने प्रक्रियागत गलती की है, इसलिए 6 पुलिसकर्मियों को तत्काल 6 दिसंबर को ही सस्पेंड कर दिया है। वहीं हाईकोर्ट ने छात्र को जमानत दी।
हाईकोर्ट ने इस मामले को प्रदेश स्तर से जोड़ा
इस मामले में एडिशनल एडवोकेट जनरल आनंद सोनी ने कहा कि मामला जमानत का था। इसे यहीं समाप्त किया जाना चाहिए। इस पर जस्टिस ने अपने आदेश में अहम टिप्पणी की और शासन पक्ष की बात खारिज की।
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि कोर्ट पाता है कि इस देश के नागरिकों के जीवन और स्वतंत्रता की रक्षा के लिए, जिसका तत्काल संरक्षक केवल उच्च न्यायालय है।
हाईकोर्ट दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482/बीएनएसएसएस की धारा 528 के तहत अपनी अंतर्निहित शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। इसके साथ ही, संविधान में निहित मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपनी पूर्ण शक्तियों का भी प्रयोग कर सकता है।
कई बार, इस न्यायालय का यह दायित्व बन जाता है कि वह सुनिश्चित करे कि ऐसे अधिकारों की रक्षा न केवल वर्तमान में, बल्कि भविष्य में भी हो, और इसके लिए निर्देश जरूरी है।
मंदसौर पुलिस कांड की खबर...
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बीएनएस प्रक्रिया का पालन नहीं हो रहा है
हाईकोर्ट ने आदेश में कहा कि सर्च जैसी प्रक्रिया के समय बीएनएस में आडियो-वीडियो जरूरी है। वहीं, ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य के अधिकारियों ने उपरोक्त प्रावधानों को जानबूझकर भुला दिया है।
ऐसी स्थिति में, प्रधान सचिव, गृह विभाग/प्रतिवादी राज्य को उपरोक्त प्रावधानों को लागू करने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में इस न्यायालय को अवगत कराने का निर्देश दिया जाता है।
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पुलिस के लिए अब बॉडी कैम जरूरी हो
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि पहले के केस एमसीआरसी 34524/24 के तहत थाने में सीसीटीवी फुटेज सुरक्षित रखने का आदेश दिया गया था। कोर्ट ने यह भी कहा कि अब राज्य सरकार को पुलिसकर्मियों की संख्या बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। इसके अलावा, प्रमुख शहरों के कुछ पुलिस स्टेशनों को बॉडी कैमरे देने पर भी विचार किया जाना चाहिए।
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