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INDORE. महापौर पुष्यमित्र भार्गव द्वारा तत्कालीन कलेक्टर मनीष सिंह और निगमायुक्त प्रतिभा पाल के रहते स्मार्ट सिटी में किए गए नेप्रा कांट्रेक्ट आगे बढ़ाने के फैसले को साजिश करार दिया गया था। साथ ही शासन को पत्र लिखकर इसकी जांच की मांग की गई थी। लेकिन इस मामले में साफ हो गया है कि सिंह और पाल के पद पर रहते हुए इस कांट्रेक्ट को आगे बढ़ाने में कोई साजिश नहीं थी और यह नियमानुसार ही हुआ है।
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दिल्ली से फटकार, कांट्रेक्ट की शर्तों से साफ
इस मामले में द सूत्र को सूत्रों से मिली पुख्ता जानकारी के अनुसार दिल्ली की केंद्र सरकार के अधिकारियों ने मप्र के अधिकारियों को इस मुद्दे पर फटकार भी लगा दी है। कहा गया है कि हम पूरे देश में सफाई को लेकर इंदौर का उदाहरण दे रहे हैं, सूखे-गीले कचरे से गैस व अन्य उत्पाद बनाया जा रहा है लेकिन अब इस तरह के फैसले लेकर काम में अडंगे लगाए जा रहे हैं। यह तरीका सही नहीं है। उधऱ भोपाल से इस कांट्रेक्ट की जानकारी व मामले की जानकारी भी ली गई थी। जिसमें कांट्रेक्ट की शर्तों को देखकर लिखित में जवाब दिया गया कि पूर्व के कांट्रेक्ट में लिखा है कि इसे कभी भी किसी भी समय कितने के समय के लिए बढ़ाया जा सकता है। कांट्रेक्ट को बढ़ाने के लिए कोई नियम का उल्लंघन नहीं किया गया है।
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कंपनी के अन्य मुद्दों पर बोर्ड में होगा फैसला
नेप्रा पर नगर निगम के 5 करोड़ से ज्यादा राशि बकाया है जो नहीं देकर कंपनी ने कांट्रेक्ट की एक शर्त का जरूर उल्लंघन किया है। कंपनी का इस मामले में तर्क है कि उसे कचरा बेकार मिल रहा है जिस कारण से उसे आउटपुट हासिल नहीं हो रहा है। इस पर निगम द्वारा कचरे की जांच कराई गई थी जिसमें कंपनी की बात काफी हद तक सही मिली और बताया गया कि कचरा उतना बेहतर नहीं है लेकिन हां कंपनी द्वारा जितना बेकार बताय गया उतना भी बेकार नहीं है। कंपनी राशि को किश्तों में भुगतान करने के लिए सहमत है। इन सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए स्मार्ट सिटी बोर्ड में जल्द प्रस्ताव पर चर्चा होगी।
महापौर ने लिखा था तत्कालीन सीएस को पत्र
एमआईसी सदस्य अश्विनी शुक्ला ने पहले महापौर पुष्यमित्र भार्गव को नेप्रा कंपनी के कांट्रेक्ट को लेकर शिकायत की थी। इसके बाद महापौर ने जून माह में इसकी जांच के लिए मुख्य सचिव वीरा राणा को तीन पन्नों का पत्र भेजा था। इस पत्र में महापौर ने तत्कालीन स्मार्ट सिटी अधिकारियों को जिम्मेदार बताते हुए और उनके द्वारा धोखाधड़ी की बात करते हुए ईओडब्ल्यू, लोकायुक्त जैसी जांच एजेंसी से विस्तृत जांच कराने की मांग की थी।
महापौर के पत्र में यह लिखा गया था
महापौर के पत्र में था कि साल 2018 में देवगुराडिया में सूखे कचरे के निपटान के लिए स्मार्ट सिटी ने टेंडर बुलाए थे, अक्टूबर 2018 में यह टेंडर सिंगल होने के बाद भी कंपनी नेप्रा रिसोर्सेस मैनेजमेंट प्रालि को दे दिया गया। इस टेंडर की शर्त में था कि रायल्टी डिफाल्ट होने और अनुबंध की शर्त का पालन नहीं होने पर अनुबंध निरस्त होगा। लेकिन स्मार्ट सिटी के अधिकारियों ने 30 जुलाई 2021 की तारीख में 4.42 करोड़ की रायल्टी बकाया होने के बाद भी टेंडर निरस्त नहीं किया। उलटे 27 दिसंबर 2021 को नेहरू पार्क में बोर्ड बैठक बुलाई और टेंडर को सात साल के लिए आगे बढ़ाने का फैसला ले लिया। इसके लिए अपने अधिकारों से परे जाकर स्मार्ट सिटी के जिम्मेदार अधिकारियों ने यह फैसला लिया। यह अनुबंध की शर्तों के विपरीत था।
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महापौर ने अधिकारियों को लेकर यह लिखा था
पत्र मे महापौर ने लिखा था कि अधिकारियों द्वारा सिस्टम की घोर उपेक्षा का यह उदाहरण है। इसके कारण राज्य सरकार को नुकसान पहुंचाया गया औऱ् निजी संस्था के साथ मिलकर साजिश रची गई है। इसलिए इसकी स्पेशल जांच एजेंसी से जांच कराना जरूरी है। यह मप्र शासन के साथ धोखाधड़ी की श्रेणी में आता है।
अहमदाबाद की है यह कंपनी
नेप्रा कंपनी अहमदाबाद की है। इसमें संदीप पटेल, अनुराग अग्रवाल, डी, महेश कुमार पटेल, गुरजीत सिंह औऱ् राबर्ट कपलन शामिल है। इस कंपनी को सूखे कचरा निपटान के लिए टेंडर हुआ था। कंपनी ने निगम से मिली जमीन पर 100 करोड़ से अधिक की लागत से प्लांट लगाया जहां पर हर दिन औसतन 350 टन सूखे कचरे का निपटान होता है। इसके चलते अब इंदौर में कचरे का ढेर नहीं लगता क्योंकि यह प्लांट हर दिन कचरे का निपटान करता है।
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