एमजीएम कॉलेज में मानसिक उत्पीड़न का मामला: छात्रा का 22 किलो वजन घटा, एंटी रैगिंग सेल कर रही जांच

इंदौर के एमजीएम कॉलेज की पीजी छात्रा ने मानसिक उत्पीड़न का आरोप लगाया है। पीड़िता ने बताया कि इससे उसका 22 किलो वजन कम हो गया है। वहीं, एंटी रैगिंग कमेटी इसकी जांच में जुटी है।

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Amresh Kushwaha
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राहुल दवे @ INDORE

इंदौर के एमजीएम कॉलेज से एक बेहद चौंकाने वाली घटना सामने आई है। प्रसूति और स्त्री रोग विभाग की पीजी छात्रा ने गंभीर आरोप लगाए हैं। उसका कहना है कि चार महीनों से उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। छात्रा के अनुसार इस तनाव से उसका वजन 22 किलो कम हो गया है। वह अब मानसिक तनाव के कारण इलाज करवा रही है।

डराया, धमकाया और बेइज्जत किया…

पीड़िता ने अपनी शिकायत में लिखा है कि मुझे बार-बार डराया और धमकाया गया। कहा गया कि मुझे ऑपरेशन थिएटर (OT) से हटा दिया जाएगा। साथ ही, मेरी मेडिकल लीव (Medical leave) को फर्जी बताया गया। मेरी छवि खराब करने के लिए अफवाहें फैलाई गईं।

छात्रा के मुताबिक, व्हाट्सएप ग्रुप पर भी उसके खिलाफ आपत्तिजनक मैसेज डाले गए। इसमें कहा गया कि कहा कि वापसी के बाद उसे छह महीने तक OT ड्यूटी नहीं दी जाएगी, बल्कि सजा के तौर पर नाइट शिफ्ट करनी होगी।

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पीड़िता बोली: काम का बोझ नहीं, मानसिक प्रताड़ना थी

जूनियर डॉक्टर ने अपनी शिकायत में यह भी स्पष्ट किया कि मामला काम के बोझ का नहीं, बल्कि मानसिक प्रताड़ना का है।
उसने कहा- मुझे जानबूझकर अपमानित किया गया। झूठी अफवाहें फैलाई गईं और मुझे असहज माहौल में काम करने पर मजबूर किया गया।

छात्रा पिछले कुछ महीनों से डिप्रेशन और एंग्जायटी से जूझ रही है और फिलहाल उसका इलाज चल रहा है।

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एंटी रैगिंग कमेटी ने शुरू की जांच

छात्रा की शिकायत मिलने के बाद राष्ट्रीय एंटी रैगिंग सेल ने मामले की जानकारी कॉलेज को भेजी। मेडिकल कॉलेज की एंटी रैगिंग कमेटी की अध्यक्ष डॉ. पूनम देयसरकार ने बताया कि शिकायत पर जांच शुरू कर दी गई है। दोनों पक्षों (छात्रा और सीनियर डॉक्टरों) के बयान लिए जा रहे हैं। कमेटी जल्द ही अपनी रिपोर्ट राष्ट्रीय एंटी रैगिंग सेल और कॉलेज प्रशासन को सौंपेगी।

वहीं, विभागाध्यक्ष डॉ. निलेश दलाल ने कहा कि मामला एंटी रैगिंग कमेटी के पास है। जांच पूरी होने के बाद आगे की कार्रवाई की जाएगी।

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कॉलेज में फिर गूंजा मेंटल यू हेल्थ बनाम मेडिकल प्रेशर का सवाल

यह मामला एक बार फिर मेडिकल कॉलेजों में मानसिक स्वास्थ्य और प्रशिक्षण के दबाव पर बहस छेड़ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि सख्त ड्यूटी शेड्यूल और हायरार्की के दबाव में जूनियर डॉक्टर अकसर मानसिक रूप से टूट जाते हैं। वहीं ऐसे मामलों में संवेदनशील तंत्र की कमी उन्हें और कमजोर बना देती है।

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