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INDORE. प्रदेश के प्रतिष्ठित एमजीएम मेडिकल कॉलेज में हाल ही में रैगिंग का एक और एक मामला सामने आया है। इसके बाद इसे रोकने के दावों का सच भी सामने आ रहा है। कॉलेज प्रबंधन रैगिंग रोकने के लिए नियमों और सख्त निगरानी की बात तो करता है।
जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल उलट नजर आती है। फैकल्टी न तो होस्टलों का नियमित निरीक्षण कर रही है। न ही कक्षाओं या अन्य माध्यमों से छात्रों से संवाद स्थापित कर रही है। इससे समय रहते समस्याओं का पता चल सके।
व्यवस्था केवल कागजों पर
वर्ष 2024 में रैगिंग (Ragging in educational institutions) की एक बड़ी घटना हुई थी। इसके बाद कॉलेज प्रबंधन ने होस्टल और कॉलेज परिसर में पैनिक बटन लगाने का एलान किया था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि किसी भी आपात स्थिति में छात्र तुरंत मदद मांग सकें।
हालांकि, एक साल बीत जाने के बावजूद यह व्यवस्था कागजों से आगे नहीं बढ़ सकी। इसी तरह फैकल्टी को यह निर्देश भी दिए गए थे कि वे होस्टलों का नियमित राउंड लें। छात्रों से अलग-अलग बैठकों में बातचीत करें।
अभी भी इन निर्देशों का पालन होता नहीं दिख रहा। छात्रों न तो संवाद किया जाता है न ही उनकी समस्या जानी जाती है। इसी का परिणाम है यहां रैगिंग मामले आए दिन सामने आ रहे हैं।
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ऐसे होती है रैगिंग की मानसिक शुरूआत
कॉलेज में प्रवेश लेने वाले नए विद्यार्थियों के लिए कथित रूप से एक इनफॉर्मल अनुशासन थोप दिया जाता है। 2024 बैच के छात्रों का कहना है कि उन्हें लाइन में चलना पड़ता है। सिर झुकाकर रखना पड़ता है।
सामने आने वाले हर सीनियर का ग्रीटिंग्स करना जरूरी होता है। ये माहौल भय और दबाव पैदा करता है, जो रैगिंग की मानसिक शुरुआत (एमजीएम मेडिकल कॉलेज रैगिंग केस) मानी जा सकती है।
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होस्टल परिसर में शराब की खाली बोतलें
इंदौर एमजीएम मेडिकल कॉलेज (मेडिकल कॉलेज हॉस्टल में रैगिंग) में होस्टलों में शराबखोरी की समस्या भी गंभीर बनी हुई है। परिसर में जगह-जगह शराब की खाली बोतलें मिलने से स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। यह जानकारी वार्डन से लेकर डीन स्तर तक होने के बावजूद ठोस कार्रवाई नहीं की जाती।
अब तक सामने आई अधिकतर रैगिंग शिकायतों में यह बात सामने आई है कि आरोपी सीनियर नशे की हालत में थे। लगभग सभी शिकायतों में नशे में धुत होकर ही विद्यार्थियों को परेशान किया गया है।
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देशभर के मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग
देशभर के मेडिकल कॉलेजों में रैगिंग के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले तीन साल में रैगिंग से हुई कुल मौतों में 45.1% मेडिकल कॉलेजों के छात्रों की हैं।
वर्ष 2022 से 2024 के बीच रैगिंग के कारण 51 विद्यार्थियों की जान गई। इनमें से 23 मेडिकल कॉलेजों से जुड़े थे। आंकड़ों के मुताबिक रैगिंग की कुल शिकायतों में 38.6 प्रतिशत मेडिकल कॉलेजों से संबंधित हैं।
पीड़ित छात्रों के लिए बयान
इस पूरे मामले पर एमजीएम मेडिकल कॉलेज के डीन डॉ. अरविंद घनघोरिया का कहना है कि एंटी रैगिंग कमेटी के जरिए प्रकरण की जांच की जा रही है। पीड़ित छात्रों के बयान दर्ज कर लिए गए हैं। जो भी सीनियर दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ नियमानुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी।
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