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जनता के सवालों पर सदन की चुप्पी
मध्य प्रदेश की 16वीं विधानसभा को बने अब दो साल हो गए हैं।
इन दो सालों में सात सत्र हुए, पर आंकड़े उत्साह नहीं जगाते।
कई विधायक अपने क्षेत्र की आवाज उठाने से भी बचते दिखते हैं।
सरकार भी अक्सर छोटे सत्र रखकर सवालों से दूरी बना लेती है।
सात सत्र और फीका प्रदर्शन
विधानसभा के 198 विधायक चुने गए, मंत्रियों और अध्यक्ष को छोड़कर।
इनमें से सिर्फ 90 ने ही सभी बड़े सत्रों में सवाल पूछे।
यानी करीब सौ विधायक हर सत्र में सक्रिय नहीं दिखे।
भारत आदिवासी पार्टी के एकमात्र विधायक हर सत्र में सक्रिय रहे।
देखें हर सत्र में कैसा रहा विधायकों का प्रदर्शन
हर विधानसभा का पहला सत्र शपथ और अन्य औपचारिकताओं में ही पूरा हो जाता है। ऐसे में दूसरे सत्र से ही असल कार्यवाही शुरू हो पाती है।
दूसरा सत्र
फरवरी 2024: सवाल कम, हंगामा ज्यादा
फरवरी 2024 का सत्र 7 से 19 तारीख तक होना था।
13 दिन तय थे, लेकिन बैठकें सिर्फ छह दिन चलीं।
हरदा पटाखा कांड, ओलावृष्टि जैसे मुद्दों पर हंगामा हुआ।
14 फरवरी को सत्र समय से पहले ही खत्म कर दिया गया।
इस सत्र में 2303 सवाल विधानसभा की टेबल पर पहुंचे।
198 में से सिर्फ 129 विधायकों ने सवाल पूछे।
69 विधायक पूरे सत्र में चुप रहे, कोई सवाल दर्ज नहीं किया।
इन चुप विधायकों में बीजेपी के 57 और कांग्रेस के 12 थे।
तीसरा सत्र
जुलाई 2024: फुल बजट, लेकिन ‘गिलोटिन’ से एक साथ मंजूरी
जुलाई 2024 में पहला पूर्ण बजट सत्र शुरू हुआ।
1 से 19 जुलाई तक 19 दिन और 14 बैठकें तय थीं।
3 जुलाई को वित्त मंत्री ने बजट पेश किया।
विभागों पर लंबी बहस की जगह ‘गिलोटिन’ का उपयोग किया गया।
विपक्ष ने 37 स्थगन प्रस्ताव दिए, पर चर्चा सात पर ही हुई।
503 ध्यानाकर्षण में से केवल कुछ पर बात हो पाई।
11 विधेयक लगभग बिना गंभीर बहस के पारित कर दिए गए।
5 जुलाई को ही सत्र अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
प्रदर्शन की बात करें तो कुल 4287 सवाल पूछे गए।
इस बार 159 विधायक सक्रिय रहे, जो 80% के करीब है।
39 विधायक चुप रहे, इनमें 30 बीजेपी, 9 कांग्रेस के थे।
चौथा सत्र
दिसंबर 2024: नए विधायक, पर सवालों पर फिर ब्रेक
दिसंबर 2024 में पांच दिन का शीतकालीन सत्र हुआ।
16 से 20 दिसंबर तक सत्र चला और नए विधायकों ने शपथ ली।
विजयपुर, बुधनी और अमरवाड़ा से तीन विधायकों ने शपथ ली।
इस सत्र में कुल 1766 सवाल विधानसभा तक पहुंचे।
सात स्थगन प्रस्ताव थे, पर एक पर भी चर्चा नहीं हुई।
471 ध्यानाकर्षण में से सिर्फ 38 पर बात हो सकी।
10 विधेयक इस सत्र में पास हुए।
इस बार 141 विधायक यानी 71% ने सवाल पूछे।
सवाल न पूछने वालों की संख्या बढ़कर 57 हो गई।
इनमें 46 बीजेपी और 11 कांग्रेस के विधायक थे।
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पांचवां सत्र
मार्च 2025: दूसरा फुल बजट और ‘विकसित मप्र 2047’ का सपना
मार्च 2025 का सत्र 10 से 24 तारीख तक चला।
इस दौरान सरकार ने अपना दूसरा पूर्ण बजट पेश किया।
उद्देश्य ‘विकसित मध्य प्रदेश 2047’ का रोडमैप दिखाया गया।
वित्तीय वर्ष 2025-26 को उद्योग और रोजगार वर्ष घोषित किया गया।
कुल 9 दिन की बैठकें हुईं, 56 घंटे 45 मिनट चर्चा चली।
सदन को 9 स्थगन प्रस्ताव और 645 ध्यानाकर्षण मिले।
इनमें से 33 पर ही चर्चा हो पाई।
चार विधेयकों को इस सत्र में मंजूरी मिली।
इस सत्र में 2939 सवाल पूछे गए।
सवाल पूछने वाले विधायकों की संख्या 164 तक पहुंची।
यानी 82% विधायक इस बार सक्रिय रहे।
फिर भी 34 विधायक चुप रहे, 28 बीजेपी, 6 कांग्रेस के थे।
छठवां सत्र
जुलाई 2025: अनुपूरक बजट और दो दिन का पूरा हंगामा
जुलाई 2025 में 10 दिन का मानसून सत्र तय हुआ।
लेकिन सत्र केवल आठ दिन ही चल पाया।
दो दिन सत्ता और विपक्ष के हंगामे में निकल गए।
सरकार ने इसी सत्र में साल का पहला अनुपूरक बजट पेश किया।
कुल 9 स्थगन प्रस्ताव आए, पर किसी पर चर्चा नहीं हुई।
26 ध्यानाकर्षण प्रस्तावों पर जरूर बात हुई।
14 विधेयक इस सत्र में पास किए गए।
विपक्ष मंत्री विजय शाह की टिप्पणी भी भुना नहीं सका।
आम लोगों से जुड़े मुद्दे भी जोर से नहीं उठ पाए।
प्रदर्शन देखें तो 82% विधायक सक्रिय दिखे।
3377 सवाल 162 विधायकों ने मिलकर पूछे।
सवाल न पूछने वालों में 31 बीजेपी, 5 कांग्रेस के थे।
सातवां सत्र
दिसंबर 2025: साल का आखिरी सत्र, फिर सुस्ती और अधूरी बहस
दिसंबर 2025 में पांच दिन का छोटा सत्र रखा गया।
इसमें केवल चार बैठकें हो पाईं।
सरकार ने दूसरा अनुपूरक बजट इसी सत्र में पेश किया।
विपक्ष ने कफ सिरप कांड और किसानों की समस्या उठाने की कोशिश की।
कानून व्यवस्था और खेती पर बहस की मांग भी हुई।
सदन के बाहर विरोध हुआ, पर भीतर चर्चा कमजोर रही।
उज्जैन लैंड पुलिंग विवाद पर कोई प्रस्ताव तक नहीं आया।
12 स्थगन प्रस्ताव आए, पर एक पर भी चर्चा नहीं हुई।
455 ध्यानाकर्षण में से सिर्फ 27 पर बात हुई।
इस सत्र में 1497 सवाल पूछे गए।
सवाल पूछने वाले 143 विधायक यानी 72% ही रहे।
55 विधायक चुप रहे, इनमें 48 बीजेपी, 7 कांग्रेस के थे।
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पहली बार के विधायक: कुछ चमके, कई अभी सीख रहे
विधानसभा में पहली बार के 70 विधायक चुने गए।
इनमें से सात मंत्री बने, इसलिए सवालों से दूर रहे।
बाकी 63 विधायक सवाल पूछने के लिए उपलब्ध थे।
इनमें बीजेपी के 38, कांग्रेस के 24 और एक भारत आदिवासी पार्टी से हैं।
औसतन देखें तो 68% नए विधायक सवाल पूछते दिखे।
दोनों बजट सत्र में कई नए विधायक ज्यादा सक्रिय रहे।
बीजेपी के करीब 24 नए विधायक लगातार सवाल पूछते रहे।
कांग्रेस के लगभग 19 नए विधायक भी सक्रिय गिने गए।
विशेषज्ञ की राय: कम बैठकें, ज्यादा चिंता
पूर्व मुख्य सचिव भगवानदेव इसराणी इस ट्रेंड को चिंताजनक मानते हैं।
वे कहते हैं, विधानसभा जनता के मुद्दों का सबसे बड़ा मंच है।
अगर यहां आवाज नहीं उठेगी, तो जनता का भरोसा और घटेगा।
बैठकों की कम संख्या का मुद्दा कई बार मंचों पर उठ चुका है।
वे याद दिलाते हैं कि 2003 में बड़ा सम्मेलन हुआ था।
सुझाव था कि संसद की साल में 100 बैठकें हों।
एमपी, यूपी, राजस्थान जैसी बड़ी विधानसभाओं के लिए 75 बैठकें तय करने की बात भी हुई।
लेकिन ये सुझाव कागज से बाहर नहीं आ पाए।
आंकड़ों से क्या संदेश जाता है?
लगातार घटती बैठकों से जवाबदेही का संदेश कमजोर पड़ता है।
जब सवाल कम होंगे, तो सरकार पर दबाव भी कम रहेगा।
विधायक अगर चुप रहेंगे, तो जनता के मुद्दे फाइलों में ही दब जाएंगे।
लोगों को लगेगा कि वोट के बाद उनकी आवाज कोई नहीं सुनता।
जनता के लिए क्यों जरूरी है ये रिपोर्ट?
यह रिपोर्ट सिर्फ नंबर नहीं, लोकतंत्र का रिपोर्ट कार्ड है।
मतदाता देख सकते हैं कि उनका चुना प्रतिनिधि कितना सक्रिय है।
किसने सवाल पूछे, किसने चुप रहकर समय काटा।
अगले चुनाव में ये जानकारी वोटर के काम आ सकती है।
लोकतंत्र में सवाल पूछना सबसे बड़ा हथियार है।
जब विधायक सवाल पूछते हैं, तो विभागों पर दबाव बनता है।
इससे सड़क, स्कूल, अस्पताल जैसे काम आगे बढ़ते हैं।
चुप्पी से सिर्फ फाइलें और बहाने बढ़ते हैं, काम नहीं।
सोर्स और रेफरेंस: मध्य प्रदेश विधानसभा
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