इंदौर में विधायक ने मारी गेंद और फूट गई सितौलिया, बच्चों ने खेली लंगड़ी तो बुजुर्गों ने घुमाए लट्टू
विधानसभा क्षेत्र क्र. 4 के लोधीपुरा में ओटला संस्कृति लौटाने वाली विधायक गौड़ का कहना है कि शहर में कभी मोहल्लों में ओटला संस्कृति हुआ करती थी, लेकिन समय ने सब कुछ बदल दिया l
इंदौर के लोधीपुरा में क्षेत्रीय विधायक मालिनी गौड़ की पहल पर ओटला संस्कृति को जीवित करने का प्रयास किया गया। इसमें शनिवार को विधायक ने मोहल्ले के लोगोंं के साथ बैठक की और फिर सर्वसहमति से तय किया गया कि पुराने समय की ओटला संस्कृति को जीवित किया जाए। उनकी इस पहल के बाद मोहल्ले में ना केवल बच्चे बल्कि बुजुर्गों तक ने गली में देसी खेल लंगड़ी, सितौलिया, फुगड़ी, डब्बा गोल, शतरंज, केरम, आंख मिचौली भी खेला, तो स्वयं विधायक ने भी क्षेत्र की महिलाओं संग सितौलिया खेला। उन्होंने एक ही गेंद ऐसी मारी कि सितौलिया गिर गई और फिर सभी ने मिलकर गेंद पकड़ने से पहले ही सितौलिया को जमा लिया।
मोहल्ल संस्कृति से था आपसी सामंजस
विधानसभा क्षेत्र क्र. 4 के लोधीपुरा में ओटला संस्कृति लौटाने वाली विधायक गौड़ का कहना है कि शहर में कभी मोहल्लों में ओटला संस्कृति हुआ करती थी, लेकिन समय ने सब कुछ बदल दिया l पुरुष अपने कामकाज से लौटकर और महिलाएं अपने घरेलू कामकाज से निपटकर घर के बाहर ओटलों पर बैठकर बात करने के साथ, बच्चे देसी खेलों का आनंद लेते थे। जिसके कारण आपसी सामंजस भी रहता था और सुख–दुख में सभी पड़ोसी साथ खड़े होते थे। लेकिन टीवी और मोबाईल ने सब–कुछ बदल दिया, लेकिन इंदौर के प्रसिद्ध क्षेत्र लोधीपुरा में फिर ये संस्कृति शनिवार से लौट आई l
विधायक मालिनी गौड़ के गृह क्षेत्र लोधीपुरा में संस्था हिंद रक्षक संगठन के एकलव्य सिंह गौड़ की पहल पर सभी रहवासियों की बैठक हुई और हर शनिवार को इस पुरानी परंपरा को फिर लौटा दिया गय। इसमें रहवासियों से पुराने समय की ओटला संस्कृति को दोबारा शुरू करने को लेकर बात हुई। रहवासियों ने माना कि मोबाइल और टीवी ने ना केवल बच्चों को मोबाइल कर आदि बना दिया है, बल्कि इसकी लत युवाओं व बुजुर्गों को भी लगने लगी है। इससे वे ना केवल अपने आस–पड़ोस, बल्कि परिवार से भी दूर होते जा रहे हैं, जिसके भयंकर परिणाम सामने आ रहे हैं।
ओटला संस्कृति में रहवासियों ने सितौलिया, केरम, पकड़म–पकड़ाई, कबड्डी, लंगड़ी, साकलबंदी, छुपा–छुपी, भंवरा, खो -खो, आंख–मिचोली, डब्बा गोल, शतरंज, अंग–बंग–चौक–चंग, लूडो जैसे देसी खेलों का आनंद लिया। वे सड़क पर कुर्सी डालकर बैठे और कराओके के संगीत पर नाचे भी।
ओटला संस्कृति की शुरूआत रात 8 बजे से हुई, जिसमें कि रात 11 बजे तक बच्चों ने अपने मोबाईल बंद करके रख दिए l इस दौरान ओटलों को सजाया भी गया और खाने–पीने की चीजें भी रखी गईं। किसी ने केरी का पना, किसी ने झोलिया, किसी ने शरबत बनाया। मोहल्ले के रहवासियों ने कुछ न कुछ खाने–पीने की वस्तुएं भी एक–दूसरे के साथ वितरित कीं। इस दौरान सभी ने टीवी व मोबाईल बंद रखे गए और सभी ने देसी खेलों का आनंद लिया।
हिंद रक्षक संगठन के एकलव्य सिंह गौड़ ने बताया कि मोहल्ले के बच्चों ने ओटले पर कॉमिक्स भी सजाईं। जिसमें लौटपोट, चाचा चौधरी, नंदन, चम्पक, मोटू पतलू व अन्य शामिल थीं। इस संस्कृति को पुन: जागृत करने में गिरधार नागर, आशय नीमा, भवेश सोनी, टिक्कू सोनी, सचिन हेमंत सहित सभी रहवासियों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।