फसलों को बर्बाद कर रही नीलगाय और जंगली सुअरों के शिकार को लेकर अब मोहन यादव सरकार निर्णय लेगी। वन विभाग इसका प्रस्ताव बनाकर मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत करेगा। इस प्रस्ताव को पिछले साल ही मंजूरी मिलनी थी, लेकिन पहले विधानसभा चुनाव और फिर लोकसभा चुनाव के चलते राज्य सरकार ने इस प्रस्ताव को टाल दिया था। नीलगाय और जंगली सुअरों के शिकार के नियम अभी भी हैं, पर समस्या को देखते हुए उन्हें आसान किया जा रहा है।
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आदिवासी परंपरा का रखें ध्यान
एमपी में नीलगाय और जंगली सुअर के शिकार के प्रस्तावित नए नियम को लेकर विधायकों ने सुझाव दिए हैं। मनावर से आदिवासी विधायक डॉ. हीरालाल अलावा ने वन विभाग को आदिवासी समुदाय की परंपरा का प्रस्तावित नियमों में ध्यान रखने का सुझाव दिया है।
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अब एसडीओ देंगे स्वीकृति
दोनों वन्यप्राणियों के शिकार की अनुमति एसडीओ फारेस्ट को सौंपे जाने का प्रस्ताव है, जो अभी तक एसडीएम दिया करते थे। नियमों में इसलिए बदलाव किया जा रहा है ताकि शिकार की अनुमति चाहने वालों को जल्दी मिल जाए। बता दें कि मप्र में नीलगाय और जंगली सुअर के शिकार के नियम 22 साल पहले बनाए गए थे।
नए नियम के मुताबिक लाइसेंसी हथियार रखने वालों को ही शिकार की अनुमति दी जाएगी। इसके लिए वन विभाग शिकार का लाइसेंस भी देगा। जिसके पास लाइसेंस नहीं है तो वो उस जिले के किसी भी दूसरी लाइसेंसी व्यक्ति से शिकार करा सकेगा। आवेदन मिलने के बाद रेंजर 5 दिन के भीतर मौके पर जाकर देखेगा और उसकी रिपोर्ट के बाद तीन दिन में एसडीओ मंजूरी देगा।
नए नियम में वाट्सएप या ई-मेल पर रेंजर को भेजी गई जानकारी को ही आवेदन माना जाएगा। निजी जमीन पर जानवर को मारने के बाद अगर वह जंगल में जाकर मरता है तो इसमें कोई दिक्कत नहीं होगी। एक बार में5-5 जंगली सुअर या नीलगाय को मारने की इजाजत रहेगी। दूध पिलाने वाली मादाओं और नवजात जंगली सुअर और निलगाय का शिकार नहीं किया जा सकेगा। इसके साथ ही शिकार के बाद जानवर के शव के अंगों का व्यापार नहीं किया जा सकता है।
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अभी एसडीएम देते हैं मंजूरी
मौजूदा एक्ट के मुताबिक जंगली सुअर और नीलगाय को मारने की मंजूरी एसडीएम देते हैं। शिकारी के पास गन का लाइसेंस होने के साथ ही उस व्यक्ति का रजिस्टर्ड शिकारी होना जरूरी है। सुअर और नीलगाय को मारते समय उसका निजी जमीन पर होना जरूरी है। शिकारी को लिखकर देना होता है कि जिस जानवर को उसने मारा है, वही फसल को नुकसान पहुंचाता था। शिकार के बाद जानवर का शव निजी जमीन पर ही मिलना चाहिए। पहले सुअर के शिकार की संख्या 10 तय थी, जबकि नीलगाय की कोई संख्या तय नहीं थी। आवेदन और उसकी मंजूरी की भी कोई समय सीमा नहीं थी।
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इन इलाकों में जंगली सुअर, नीलगाय का प्रभाव
इंदौर, पन्ना, उज्जैन, छतरपुर, रीवा सर्किल से जुड़े अंचल में नीलगाय का प्रभाव और होशंगाबाद, खंडवा, इटारसी, मंडला, उमरिया, डिंडोरी और टाइगर रिजर्व के आसपास के इलाके में जंगली सुअर का प्रभाव है। इनसे फसलों को नुकसान पहुंचाने की शिकायतें अक्सर आती रहती हैं।
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