मदर डेयरी चलाने वाला NDDB अब चलाएगा ' सांची '

मध्य प्रदेश की सियासत, सहकारिता पर हावी होने से राज्य में यह कमजोर होते चली गई। जबकि समाज के विकास में सहकारिता की अहम भूमिका है। बीजेपी मप्र में सहकारिता को मजबूत करेगी।

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Ravi Awasthi
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Photograph: (The sootr)

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भोपाल। दिल्ली में मदर डेयरी चलाने वाला राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड यानी एनडीडीबी अब मप्र में'सांची'को सहारा देगा। बोर्ड की मदद से मप्र दुग्ध महासंघ ही नहीं,दूध उत्पादन करने वाले किसानों के दिन फिरने की भी उम्मीद है। 

इसके लिए केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में रविवार को एनडीडीबी व मप्र डेयरी फेडरेशन के बीच अनुबंध होगा। शाह के इस दौरे को मप्र में सहकारिता की दिशा में भविष्य के एक बड़े बदलाव से भी जोड़कर देखा जा रहा है। 

दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम 

एनडीडीबी को भारत में दुनिया का सबसे बड़ा डेयरी विकास कार्यक्रम चलाने के लिए जाना जाता है। जिसने मदर डेयरी व अमूल जैसे उपक्रम खड़े किए। यह दोनों ही ब्रांड आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। मदर डेयरी राजधानी दिल्ली में 68 फीसदी दूध की सप्लाई करती है।

वहीं अमूल भी गुजरात,मप्र,राजस्थान के अलावा अन्य कई राज्यों में दूध की कमी को पूरा कर रहा है। इसी क्रम में बोर्ड अब मप्र दुग्ध महासंघ के ब्रांड सांची को राष्ट्रीयस्तर पर नई पहचान दिलाने का काम हाथ में लेने की तैयारी में है। इसके लिए वह करीब 15 सौ करोड़ ​का निवेश भी करेगा।

एनडीडीबी और सांची अगले 5 साल तक मप्र में दूध उत्पादन बढ़ाने की दिशा में एक कार्पोरेट सेक्टर की तरह काम करेंगे। 

 

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एनडीडीबी की आमद से किसानों की चांदी

मप्र डेयरी फेडरेशन व एनडीडीबी के गठबंधन का सीधा फायदा मप्र के लाखों दूध उत्पादक किसानों को होगा। जो अपने दूध को बेचने गांव या स्थानीय ग्राहकों पर निर्भर हैं।

एनडीडीबी पहले चरण में ग्रामीण स्तर पर दूध खरीदी केंद्रों की संख्या 6 हजार से बढ़ाकर नौ हजार तक करेगा। इनसें करीब 18 हजार गांव जोड़े जाएंगे। 

एनडीडीबी दूध खरीदी की मात्रा डेढ़ गुना तक बढ़ाने के साथ ही सांची संयंत्रों की उत्पादन क्षमता भी 30 लाख लीटर प्रतिदिन करेगा। जो वर्तमान में करीब 18 हजार लीटर है।  

किसानों को दूध के बेहतर दाम मिलें,इसके लिए राज्य सरकार भी इन्हें पांच रुपए प्रति लीटर की दर से अतिरिक्त भुगतान देने की तैयारी में है।

इसके लिए राज्य में पशुपालन विभाग के बजट को डेढ़ गुना तक बढ़ाया गया है। बीते साल पशुपालन विभाग का बजट जहां 590 करोड़ रुपए था वहीं नए बजट में यह रकम साढ़े आठ सौ करोड़ से अधिक रखी गई।

एक तीर से दो निशाने साधने की तैयारी

भाजपा लगभर अपने हर चुनावी संकल्प पत्र में किसानों की आय दूनी करने की बात कहती रही है। ऐसे में मप्र में दूध का उत्पादन बढ़ाकर व ​किसानों को इससे जोड़कर वह अपने वादे को पूरा करने का जतन करेगी।

वहीं,दूसरी ओर गांव-गांव में सहकारी समितियों के जरिए पैठ बढ़ाने का जतन भी वह करेगी। 
इस नाते केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की मौजूदगी में एनडीडीबी व सांची के बीच अनुबंध तथा सहकारिता सम्मेलन को इस दिशा में अहम माना जा रहा है।  

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कोऑपरेटिव मूवमेंट में बीजेपी का  इंट्रेस्ट क्यों ?

दरअसल,सहकारिता राजनी​तिक दलों की सत्ता में भागीदारी का एक मजबूत जरिया है। महाराष्ट्र इसका उदाहरण है। जहां सहकारिता ने शरद पंवार जैसे दिग्गज नेता पैदा किए। पंवार की पूरी राजनीति ही सहकारिता के इर्द-गिर्द घूमती है और इसी के बलबूते वह सत्ता में काबिज होते रहे।

90 के दशक में मप्र में भी सहकारिता काफी मजबूत ​स्थिति में पहुंची और इसका बड़ा श्रेय तत्कालीन उपमुख्यमंत्री सुभाष यादव को जाता है।

बाद में कांग्रेस के डॉ गोविंद सिंह,भगवान सिंह यादव,बीजेपी के भंवरसिंह शेखावत (अब कांग्रेस में), गोपाल भार्गव ने सहकारिता की विरासत को संभाला,लेकिन बीते दो दशक में सूबे की सियासत सहकारिता पर हावी होकर इसे कमजोर करती गई।

हालात यहां तक आ पहुंचे कि बीते नौ सालों से राज्य की सहकारी संस्थाओं के चुनाव तक नहीं हो सके। 

 

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बीजेपी नहीं लगा सकी कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध

साल 2018 के चुनाव को छोड़ कांग्रेस पिछले चार चुनाव में कांग्रेस भले ही सत्ता में वापसी नहीं कर सकी लेकिन उसका वोट बैंक 40फीसद के आसपास हमेशा रहा। बीजेपी तमाम कोशिशों के बावजूद इसमें सेंध नहीं लगा सकी।

पिछले यानी साल 2023 के चुनाव में 'लाड़ली बहना' की बदौलत ही वह वापसी कर पाई,लेकिन हर बार यह दांव चले, यह संभव नहीं है। 

यही वजह है कि बीजेपी अब सहकारिता के क्षेत्र में खुद को मजबूत करना चाहेगी। मप्र में केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह का कल का दौरा व दो बड़े को-आपरेटिव सेक्टर के बीच अनुबंध सूबे की सियासत में एक बड़ा टर्निंग प्वाइंट बन सकता है। 

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