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Photograph: (the sootr)
JABALPUR.मध्यप्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना में हुए बड़े घोटाले में स्वास्थ्य विभाग ने सख्त निर्णय लिया है। जबलपुर में पदस्थ संविदा डीईआईएम (जिला शीघ्र हस्तक्षेप प्रबंधक) सुभाष शुक्ला की अपील खारिज कर दी गई। अब यह साफ हो गया है कि घोटाले की 8.96 लाख रुपए की राशि सुभाष शुक्ला को अपनी जेब से सरकारी खजाने में जमा करनी होगी।
यह मामला महालेखाकार की 2019 की ऑडिट रिपोर्ट से सामने आया था, लेकिन विभाग ने इसे लंबे समय तक दबाए रखा। बाद में, जब मामला हाई कोर्ट में पहुंचा और द सूत्र ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया, तब विभाग हरकत में आया।
अपील खारिज होते ही विभाग की सख्ती बढ़ी
स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट कर दिया कि इस तरह की जनहित योजनाओं में किसी भी तरह की लापरवाही और वित्तीय गड़बड़ी को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। योजना के तहत कॉक्लियर इम्प्लांट ऑपरेशन और स्पीच थेरेपी के भुगतान में गड़बड़ी को लेकर विभाग ने सख्त कदम उठाया। विभाग ने सुभाष शुक्ला की दलीलें भी खारिज कर दी।
उनका कहना था कि जिन भुगतानों को लेकर सवाल उठाए जा रहे थे, वे उनके कार्यकाल से पहले के हैं। लेकिन विभाग ने इन दलीलों को दस्तावेजों के आधार पर नकार दिया। विभाग का कहना था कि बिना इलाज, फॉलो-अप और सत्यापन के बच्चों के नाम पर भुगतान करना सीधे वित्तीय फर्जीवाड़ा है।
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नहीं काम आई सुभाष शुक्ला की दलीलें
अपील के दौरान सुभाष शुक्ला ने कई तर्क रखे। उन्होंने कहा कि जिन भुगतानों को लेकर सवाल उठ रहे हैं, वे उनके कार्यकाल से पहले के हैं। यह भी तर्क दिया गया कि बजट देरी से आया था। ऑडिट व भुगतान की जिम्मेदारी अन्य अधिकारियों की थी।
हालांकि, विभाग ने इन सभी दलीलों को दस्तावेजों के आधार पर खारिज कर दिया। विभाग ने कहा बिना इलाज, बिना फॉलो-अप और बिना सत्यापन बच्चों के नाम पर भुगतान पास कराना लापरवाही व वित्तीय फर्जीवाड़ा है।
क्यों अहम है यह फैसला
स्वास्थ्य विभाग का यह आदेश इसलिए भी महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि योजनाओं के नाम पर हुए पुराने मामलों में भी जिम्मेदारी तय की जानी तय हो गई है। अब यह साफ हो गया है कि पद, समय या प्रक्रिया का बहाना बनाकर कोई भी अधिकारी खुद को दोष से नहीं बचा सकता।
कैसे हुआ था पूरा फर्जीवाड़ा
द सूत्र ने यह खबर प्रमुखता से प्रकाशित की थी। यह पूरा फर्जीवाड़ा मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना के तहत हुआ था। इस योजना का मकसद सुनने में असमर्थ और दिव्यांग बच्चों का इलाज कर उन्हें सामान्य जीवन देना है।
इसके तहत बच्चों का कॉक्लियर इम्प्लांट ऑपरेशन और उसके बाद लंबी अवधि तक स्पीच थेरेपी (AVT) कराई जाती है। महालेखाकार की 2019 की ऑडिट रिपोर्ट में यह घोटाला सामने आया। उसके बाद भी विभाग ने सालों तक इस पर कोई कार्यवाही नहीं की।
कागजों में कर दिया बच्चों का इलाज
जब यह मामला हाई कोर्ट पहुंचा और द सूत्र ने इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया तब जिम्मेदार अधिकारी हरकत में आए। जांच में सामने आया कि कई बच्चों के नाम पर इलाज कागजों में दिखा दिया गया। जमीनी हकीकत में न तो उनका पूरा इलाज हुआ और न ही जरूरी फॉलो-अप कराया गया। इसके बावजूद कागजों में सब कुछ सही दिखाकर भुगतान की फाइलें आगे बढ़ा दी गईं।
कुछ मामलों में तो बच्चों के अभिभावकों के हस्ताक्षर तक संदिग्ध पाए गए। ऑडिट रिपोर्ट में यह भी सामने आया कि बिना परीक्षण और बिना वास्तविक सत्यापन के लाखों रुपए के बिल पास कर दिए गए। इसी तरह धीरे-धीरे यह गड़बड़ी बढ़ती चली गई और करोड़ों रुपए के फर्जी भुगतान सामने आए।
अभी यह सिर्फ शुरुआत
साल 2019 की महालेखाकार रिपोर्ट के अनुसार इस घोटाले में शासन को दो करोड़ 27 लाख रुपए का नुकसान हुआ था। सालों तक मामले को दबाने की कोशिश तब विफल हुई जब यह मामला हाईकोर्ट पहुंचा। अब सुभाष शुक्ला की अपील खारिज होना इस पूरे घोटाले की एक अहम कड़ी मानी जा रही है। माना जा रहा है कि आने वाले समय में मुख्यमंत्री बाल श्रवण योजना से जुड़े अन्य मामलों, पुराने भुगतानों और जिम्मेदार अधिकारियों की भूमिका पर भी कार्रवाई हो सकती है।
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हाईकोर्ट जा सकते हैं सुभाष शुक्ला
स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिव के द्वारा अपील खारिज होने के बाद अब सुभाष शुक्ला हाई कोर्ट की शरण ले सकते हैं। हालांकि विभागीय जांच में सामने आए तथ्यों को देखते हुए हाईकोर्ट से भी उन्हें राहत मिलने की कोई उम्मीद नहीं है। अन्य आर्थिक फर्जीवाड़ों की तरह यहां पर भी यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर अब तक सुभाष शुक्ला के खिलाफ कोई आपराधिक प्रकरण दर्ज कर कार्यवाही क्यों नहीं की गई।
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