संजय शर्मा@ BHOPAL. मध्य प्रदेश में नया शिक्षा सत्र शुरू होने जा रहा है और प्रदेश के सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। कहीं एक तो कहीं दो शिक्षक... पांच से लेकर दस- दस क्लासेस को संभालने मजबूर हैं। प्रदेश में 8 हजार पदों पर भर्ती का इश्तेहार तो जारी किया है लेकिन सत्र में भर्ती हो पाना मुश्किल दिख रहा है। उधर पदवृद्धि की मांग पर अड़े माध्यमिक शिक्षक भर्ती पात्रता और चयन परीक्षा देने वाले हजारों अभ्यर्थी भी अब आंदोलन की राह पर हैं।
गुरुवार से ये वेटिंग टीचर राजधानी सहित प्रदेशभर में 3 दिन आंदोलन पर रहेंगे। रिजल्ट बिगड़ने की वजह से स्कूलों से बाहर किए गए अतिथि शिक्षक भी दो दिन पहले ही सीएम के नाम प्रशासन को चिट्ठी सौंप चुके हैं। शिक्षकों की कमी और ऐसी उठापटक के बीच ऐसे में इस सत्र में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य क्या होगा ये अंदाजा लगाया जा सकता है।
अभी तक नई भर्ती नहीं
पिछले सत्र में प्रदेश के सरकारी स्कूलों के आंकड़े की बात करें तो 21 हजार से ज्यादा स्कूलों में केवल एक-एक शिक्षक ही पदस्थ था। नए सत्र में शिक्षकों की इस संख्या बढ़ गई हो ऐसा संभव नहीं क्योंकि अभी तक नई भर्ती नहीं हुई है। शिक्षा विभाग का डेटा कहता है कि प्रदेश के स्कूलों में पिछले सत्र में 87 हजार शिक्षकों की कमी थी। वहीं एक साल में कुछ शिक्षक सेवानिवृत्त जरूर हो गए हैं जिस वजह से स्कूलों में पोस्टिंग का आंकड़ा कम जरूर हो गया है।
पढ़ाने वाले आंदोलन करने हैं मजबूर
पिछले सालों में सरकार ने पांच-छह हजार पदों पर प्राथमिक, माध्यमिक और हाईस्कूल शिक्षकों की भर्ती के लिए पात्रता और चयन परीक्षा ली थी। पहले रिजल्ट देरी से जारी किया गया और फिर बैकलॉग के पद इसमें शामिल कर दिए गए। नतीजा यह भर्ती भी खटाई में पड़ गई और अब हजारों अभ्यर्थी प्रतीक्षा सूची में ही अटक गए। अब यही वेटिंग टीचर कक्षाओं में पढ़ाने की जगह अपने हक के लिए सड़क पर आंदोलन कर रहे हैं। यदि यह मसला जल्द नहीं सुलझा तो नए सत्र की शुरूआत से ही स्कूलों में कक्षाएं खाली नजर आएंगी।
भर्ती के बिना कमी पूरी करना मुश्किल
राजधानी भोपाल सहित प्रदेश के इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर जैसे बड़े जिलों में टीचर्स के बिना सूने स्कूलों को देखकर दूरस्थ अंचलों के स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था का अंदाजा लगाया जा सकता है। प्रदेश में बीते एक दशक में केवल दो बार ही शिक्षकों की भर्ती की गई है। दोनों ही बार कुछ हजार पद भरे गए लेकिन उनसे ज्यादा पद सेवानिवृत्ति के चलते खाली होते गए। जिला स्तर पर कभी युक्तियुक्तकरण जैसे फार्मूले तो कभी सरप्लस शिक्षकों की छंटनी की प्रक्रिया शिक्षकों की कमी पूरी करने की कोशिशें भी हो चुकी हैं। लेकिन शिक्षकों की कमी का आंकड़ा इतना बड़ा है कि उसे नई भर्ती के बिना पाटना मुश्किल है।
कक्षाओं में सब्जेक्ट टीचरों का भी टोटा
प्रदेश में हाईस्कूल और हायर सेकेंडरी स्कूलों की संख्या 9 हजार से ज्यादा है। पिछले सत्र में इन कक्षाओं में 10 लाख से अधिक छात्र अध्ययनरत थे। नए सत्र में यह संख्या कुछ और बढ़ सकती है। वहीं शिक्षकों की बात करें तो हास्यास्पद होगी। 9 हजार में से 60 फीसदी भी ऐसे नहीं है जहां स्थाई प्राचार्य पदस्थ हों। यहां भी काम शिक्षकों को प्रभार देकर चलाया जा रहा है। कक्षाओं में विषयवार शिक्षक भी नहीं हैं। कहीं गणित के शिक्षक विज्ञान पढ़ा रहे हैं तो कहीं कला संकाय के शिक्षकों के हवाले कॉमर्स और विज्ञान के छात्र हैं। प्रदेश में 30 फीसदी भी स्कूल ऐसे नहीं है जहां छात्रों को पढ़ाने वाले विषयवार शिक्षकों की कमी न हो।
विभाग और संचालनालय ने मूंद ली आंखें
शिक्षकों की कमी के कारण प्रदेश में स्कूलों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में स्कूलों में रिजल्ट खराब रहने पर लोक शिक्षण संचालनालय ने जिला शिक्षा अधिकारियों को आदेश जारी किए थे। इसमें भी पढ़ाई में सुधार नहीं अतिथि शिक्षकों को बाहर का रास्ता दिखाने के निर्देशित थे। प्रदेश स्तर पर शिक्षक भर्ती की मांग भी लगातार उठ रही है लेकिन लोक शिक्षण संचालनालय ने इस पर आंखें बंद कर ली हैं। काम के अतिरिक्त दबाव के कारण स्कूलों में जो शिक्षक हैं वे अपने हिस्से का मूल काम भी नहीं कर पा रहे हैं और खामियाजा नौनिहालों को भुगतना पड़ रहा है।
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