स्वदेशी के दौर में अफसरशाही का विदेशी मोह, लंदन में ना महुआ बिका, ना आयुर्वेद दवाएं

मध्य प्रदेश सरकार का जोर स्वदेशी पर है। वहीं,कंसल्टेंट,प्रोमोटर जैसे काम विदेशी संस्थाओं को सौंपे जा रहे हैंं। ऐसे में मप्र से जुड़ा संवेदनशील डेटा कितनी सुरक्षा में है?

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Ravi Awasthi
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Photograph: (The Sootr)

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भोपाल। केंद्र व राज्य सरकार का जोर स्वदेशी पर है। दूसरी ओर मध्यप्रदेश में आला अधिकारी विदेशी संस्थाओं को उपकृत करने का मोह नहीं त्याग पा रहे हैं। मप्र लघु वनोपज संघ इसकी बानगी है। जहां लंदन की एक फर्म को आधे-अधूरे काम के बदले करीब चार करोड़ रुपए का भुगतान करने की तैयारी है। 

ब्रांडिंग, प्रमोशन का सपना रहा अधूरा

लंदन मूल की इस संस्था का नाम ई-वाय (अर्नेस्ट एंड यंग एलएलपी)है। राज्य लघु वनोपज ने 16 अगस्त 2022 को ई-वाय के सा​थ व्यवसाय प्रबंधन इकाई यानी बीएमयू स्थापित करने अनुबंध किया था। राज्य लघु वनोपज संघ के तत्कालीन प्रशासक की पहल पर हुए इस अनुबंध में फर्म को राज्य के लघु वनोपज  की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ब्रांडिंग व प्रमोशन करना था, लेकिन वह शुरुआती दौर से ही अपने लक्ष्य को लेकर भ्रमित रही। 

फर्म ने काम के लिए सिर्फ आधा दर्जन स्थानीय कर्मचारी रखे। जिन्होंने शुरुआत में कुछ प्रोजेक्ट बनाए,लेकिन लक्ष्य स्पष्ट नहीं होने से वे संघ दफ्तर के बाबू बनकर रह गए। भटकाव के हालात में इनमें से भी कुछ कर्मचारी काम छोड़ गए। ई-वाय  की सलाह पर लघु वनोपज संघ ने जो काम हाथ में लिए वह भी सफेद हाथी साबित हुए। महुआ को फूड ग्रेन की श्रेणी में शामिल कर इसे विदेश निर्यात किए जाने का प्रोजेक्ट इसका प्रमुख उदाहरण है। 

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निर्यात महुआ के कंटेनर वापस लौटे

आमतौर पर महुआ बीनने का काम वनों पर आश्रित आदिवासी करते हैं। जो अल सुबह जंगल में पहुंचकर जमीन पर गिरे महुए को बीनते हैं,लेकिन बीएमयू में पेड़ों तले जाल लगाकर महुआ जमा कराया गया,ताकि यह जमीन पर गिरकर धूल व कचरे से मुक्त रहे।  इसके लिए लघु वनोपज संघ ने बड़ी संख्या में जाल खरीदे। दावा किया गया कि MP का महुआ विदेशों में बिकेगा।

 बताया जाता है कि योजना अंतर्गत करीब 66 लाख क्विंटल महुआ जमा कर इसे लंदन भेजा गया,लेकिन​ यह ब्रिटेन की फूड ग्रेन शर्तों से मेल नहीं खाया। इसके चलते महुआ के शिप कंटेनर बंदरगाह से ही लौटा दिए गए। बाद में इसे छत्तीसगढ़ में बस्तर की एक फर्म को सौंपा गया। पहले साल में ही असफल रहे इस प्रोजेक्ट् से बाद में संघ ने भी तौबा कर ली।

ब्रांडिंग पर लाखों खर्च,नतीजा सिफर रहा

राज्य लघु वनोपज संघ महुआ के आर्गेनिक व फूड ग्रेन होने संबंधी दस्तावेज भी उपलब्ध नहीं करा सका। महुआ का निर्यात भी केंद्रीय वाणिज्यि एवं उद्योग मंत्रालय को भरोसे में लिए बिना किया गया। 

महुआ की ब्रांडिंग के नाम पर फर्म की सलाह पर एक बड़ी वर्कशॉप भी आयोजित की गई। इसमें गोवा व गुजरात के प्रतिनिधि भी शामिल हुए। दावा यही था, कि मप्र के महुआ को विदेशों में अच्छी कीमत मिलने से जनजातीय वर्ग के महुआ संग्राहकों को लाभ होगा। इस काम पर भी राज्य लघु वनोपज संघ को एक बड़ी राशि खर्च करनी पड़ी, लेकिन नतीजा सिफर रहा।

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वन औ​षधि रिसर्च सेंटर भी लगातार घाटे में

बीएमयू अंतर्गत ई-वाय को भोपाल के बरखेड़ा पठानी स्थित आयुर्वेद औषधि प्रसंस्करण केंद्र में तैयार दवाओं का कारोबार बढ़ाने की दिशा में काम करना था,लेकिन यह केंद्र फायदे की जगह लगातार घाटा उठाने वाला केंद्र बनकर रह गया। आलम यह कि विदेश तो दूर इस केंद्र में बनने वाली दवाएं पड़ोसी राज्य उत्तराखंड व राजस्थान भी लेने का राजी नहीं।

ज्यादातर दवाएं गुणवत्ता की कसौटी पर खरी नहीं उतर सकीं। इनके नमूने ग्वालियर लेब से कई बार फेल हुए। ऐसी दवाओं के मानकों में बदलाव कर इन्हें राज्य की आयुर्वेद अस्पतालों में खपाने के मामले पहले ही सामने आ चुके हैं। 

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वन धन जैसे  प्रोजेक्ट भी आगे नहीं बढ़े

ई-वाय की सलाह पर शुरू वनीकरण व अन्य मामलों को लेकर शुरू किए गए प्रोजेक्ट भी आगे नहीं बढ़ सके। अनुबंध के मुताबिक,काम नहीं होने पर इसी साल जनवरी में राज्य लघु वनोपज संघ के तत्कालीन प्रबंध संचालक विभाष ठाकुर ने इसके भुगतान पर रोक लगा दी। ठाकुर ने फर्म को नोटिस थमाकर दो माह की मोहलत भी दी।

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फर्म ने 20 लाख की कटौती कर बकाया रकम मांगी

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अफसरशाहीः भुगतान अटकने पर ई-वाय ने भी हाथ खींच लिए। गत 20 जून को फर्म के प्रमुख अमित कुमार ने संघ के तत्कालीन एमडी को पत्र लिखा। इसमें उन्होंने अनुबंध के मुताबिक पूरे काम नहीं हो पाने की बात स्वीकार करते हुए अनुबंधित राशि से 20 लाख रुपए की कटौती कर शेष का भुगतान करने का आग्रह भी किया है। 

अधिकार क्षेत्र के बाहर जाकर किया भुगतान

राज्य लघु वनोपज संघ फर्म पर इस कदर मेहरबान रहा कि शुरुआती दौर में ही उसे करीब एक करोड़ 44 लाख रुपए तीन किस्तों में अदा कर दिए गए। यह भुगतान संघ के तत्कालीन एम डी पुष्कर सिंह ने किया। सिंह ने अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर ई-वाय को करीब एक करोड़ 44 लाख का भुगतान तीन किस्तों में किया, जबकि राज्य लघु वनोपज संघ एम डी को एक बार में अधिकतम बीस लाख रुपए तक का भुगतान करने के ही अधिकार हैं। 

गत दिसंबर में पुष्कर सिंह की सेवानिवृति के बाद संघ के नए प्रबंध संचालक विभाष ठाकुर ने फर्म ओ-वाय के कामकाज में कई खामियां पाई। फर्म ने अनेक ऐसे कामों को भी अंजाम दिया, जिनकी प्रशासनिक व अन्य अनुमति संघ से नहीं ली गई। इस आधार पर, ठाकुर ने गत फरवरी में ओ-वाय को नोटिस जारी कर दो माह में अधूरे काम पूरे करने के निर्देश दिए। 

बकाया भुगतान करने की तैयारी !

चंद माह पहले ही विभाष ठाकुर को हटाकर अन्यत्र पदस्थ कर दिया गया। उनके हटते ही फर्म के बकाया रकम की भुगतान संबंधी नस्ती को फिर पंख लगे।  बताया जाता है कि ठाकुर के संघ से हटते ही अब एक बार फिर फर्म को उसके बकाया भुगतान की तैयारी है। 

बताया जाता है कि भुगतान संबंधी अभिमत के लिए संघ से एक नस्ती शासन को भेजी गई, लेकिन वहां से नस्ती को इस टीप के साथ वापस कर दिया गया कि अनुबंध में सभी तथ्य पहले से दर्ज हैं। इस गोलमोल जवाब से संघ अधिकारी असमंजस में हैं।

राज्य लघु वनोपज संघ की प्रबंध संचालक समि​ता राजौरा कहती हैं- फर्म की बकाया रकम के भुगतान का मुद्दा अभी विचाराधीन है। इस संबंध में  बैठक कर निर्णय लिया जाएगा। 

मध्यप्रदेश अफसरशाही स्वदेशी लघु वनोपज संघ MP का महुआ विदेशों में बिकेगा
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