भोपाल।
मध्य प्रदेश में सरकारी सिस्टम की महिमा न्यारी है। एक ओर जहां कई जरूरतमंद युवा अनुकंपा नियुक्ति तक पाने के लिए तरस रहे हैं,वहीं दूसरी ओर ऊपर तक पकड़ रखने वाले दागी रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी सेवाओं में जगह पा रहे हैं। ऐसा ही एक मामला मप्र वन विकास निगम में आया है। जहां प्रधान मुख्य वन संरक्षक पद से रिटायर हुए डॉ यू के सुबुद्धि को निगम में सालभर के लिए सलाहकार नियुक्ति किया गया है। इस दौरान डॉ सुबुद्धि को उनके अंतिम वेतनमान के समकक्ष वेतन व अन्य सरकारी सुविधाएं भी सुलभ होंगी।
लोकायुक्त में आपराधिक मामला,पेंशन भी रुकी
डॉ सुबुद्धि वर्ष 1992 बैच के भारतीय वन सेवा में मप्र कैडर के अधिकारी रहे। वह बीते साल नवंबर में प्रधान मुख्य वन संरक्षक पद से सेवानिवृत हुए। खास बात यह कि उनका अधिकांश कार्यकाल विवादित व दागदार रहा। इसके चलते साल 2019 में लोकायुक्त ने उनके खिलाफ एक शिकायत के आधार पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की अलग-अलग धाराओं व भारतीय दंड संहिता की धारा 420,468,471 व 120बी के तहत आपराधिक प्रकरण दर्ज किया। प्रकरण में लोकायुक्त की जांच जारी है। इसके चलते वन विभाग को भी उनकी सेवानिवृति उपरांत दी जाने वाली पेंशन पर रोक लगानी पड़ी।
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जिम्मेदार अफसरों ने इस मुहावरे को किया चरितार्थ
जानबूझकर की गई गलती के लिए एक मुहावरा प्रचलन में है,'आंखों देखी मख्खी निगलना'। डॉ सुबुद्धि को वन विकास निगम में सलाहकार नियुक्त किए जाने के मामले में भी संबंधित अधिकारियों ने इस मुहावरे को चरितार्थ किया।
डॉ सुबुद्धि के पुनर्वास की योजना उनके रिटायरमेंट के साथ ही बना ली गई थी। इसे अमलीजामा पहनाने उनके रिटायरमेंट के एक माह बाद ही समाचार पत्र में विज्ञापन प्रकाशित कर वन विकास निगम में सलाहकार पद के लिए आवेदन बुलाए गए। इसमें आयु व अनुभव को लेकर शर्तें कुछ इस प्रकार रखी गई जो सिर्फ डॉ सुबुद्धि ही पूरी करते हैं।
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सिर्फ एक आवेदन और हो गई नियुक्ति
हुआ भी यही,इस इकलौते पद के लिए डॉ सुबुद्धि इकलौते आवेदनकर्ता रहे। उनके आवेदन के परीक्षण के लिए निगम प्रबंधन ने तीन सदस्यीय समिति गठित करने की औपचारिकता भी पूरी की।
समिति के तीनों सदस्य निगम के क्षेत्रीय महाप्रबंधक आलोक पाठक,महाप्रंबधक प्रशासन अनिल कुमार शुक्ला व अपर प्रबंध संचालक डॉ अर्चना शुक्ला ने अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर कहा कि डॉ सुबुद्धि के खिलाफ लोकायुक्त संगठन में आपराधिक मामला विवेचनााधीन होने के साथ ही विभाग की ओर से उनकी पेंशन भी रोकी गई है।
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जवाब देने से बच्चे जिम्मेदार अफसर
विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को डॉ सुबुद्धि के पुनर्वास की इतनी जल्दबाजी रही कि समिति की रिपोर्ट मिलने के करीब दस दिन बाद ही निगम के तत्कालीन प्रबंध संचालक व्ही एन अंबाडे ने डॉ सुबुद्धि का निगम का सलाहकार नियुक्त कर उनके सेवा शर्तें भी तय कर दी। जबकि दूसरी ओर निगम तंगहाली के दौर से गुजर रहा है। इसके चलते यहां नई भर्ती पर तो अघोषित रोक है ही,प्रतिनियुक्ति पर आए अधिकारी,कर्मचारियों को वापस उनके मूल विभाग में भेजा गया है। व्ही एन अंबाडे अब वन बल प्रमुख हैं। डॉ सुबुद्धि के पुनर्वास से जुड़े सवाल का जवाब देने से वह बचते रहे। उन्होंने कहा कि इस बारे में बाद में बात करेंगे।