BHOPAL. जलवायु परिवर्तन ( climate change ) मौसम ( Weather ) ही नहीं जनजीवन पर भी असर डाल रहा है। महिलाएं और बच्चे क्लामेट चेंज से जुड़ी आपदाओं से बुरी तरह प्रभावित हो रहे हैं। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की ओर से प्रायोजित एक स्टडी से चौंका देने वाली जानकारी सामने आई है। मध्य प्रदेश में क्लामेट चेंज के असर से बच्चे नाटे ( बौने ) पैदा हो रहे हैं। कुपोषण की समस्या भी घेर रही है। महिलाएं समय से पहले बच्चों को जन्म दे रही हैं। बाढ़, तूफान और सूखे जैसी आपदाओं का बुरा असर पड़ रहा है। दरअसल, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए एम एस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन ( M S Swaminathan Research Foundation ) की तरफ से स्टडी की गई है। इसमें बिहार, गुजरात, उत्तरप्रदेश, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल और तेलंगाना में रिसर्च की गई। इसमें पता चला कि इन राज्यों में क्लामेट चेंज का असर ज्यादा है।
हाइट और वजन दोनों कम
आपदाग्रस्त इलाकों के बच्चों में नाटा रह जाने यानी हाइट कम रहना, कम वजन होने के साथ प्रीटर्म बच्चे होने की आशंका ज्यादा रहती है। स्टडी में दावा किया गया है कि भारत के 70 प्रतिशत जिले बाढ़, तूफान और सूखे जैसी आपदाओं की चपेट में हैं। इन जिलों में कुपोषण, किशोरवय में गर्भधारण और घरेलू हिंसा जैसे मामले बेहद चिंताजनक है।
183 जिले बाढ़-चक्रवात से घिरे
रिपोर्ट के अनुसार, देश के 183 जिले चक्रवात-बाढ़ जैसी मौसमी आपदाओं के प्रति संवेदनशील थे, जबकि 349 जिलों में सूखा पड़ा। अध्ययन में बिहार और गुजरात के उत्तरी क्षेत्रों में ऐसे हॉटस्पॉट को मार्क किया गया है, जहां सूखे, बाढ़ और चक्रवात के साथ कम वजन और बौने बच्चों का सह-अस्तित्व है।
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वार्षिक तापमान में हुई बढ़ोतरी
भारत में 1901 से 2018 तक औसत वार्षिक तापमान में 0.7 डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। इसके कारण पूरे देश में लू (हीटवेव) के दिन बढ़ गए हैं, जिसे साइलेंट किलर कहा जाता है। भारत में 67 प्रतिशत आबादी ऐसे इलाकों में रहती है, जहां वायु गुणवत्ता राष्ट्रीय मानक 40 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से ज्यादा है ( जिससे भारतीयों की औसत आयु 5.3 वर्ष कम हो रही )।
51 फीसदी बच्चे कर रहे सामना
भारत के 51 फीसदी बच्चे गरीबी और जलवायु संकट की दोहरी मार झेल रहे हैं। करीब 35.2 करोड़ बच्चे साल में कम से कम एक प्राकृतिक आपदा का सामना करते हैं। स्टडी के मुताबिक, किसी भी प्रकार के जलवायु संकट का असर पोषण, तापमान, सफाई आदि के पैमानों पर बच्चों पर ही सबसे ज्यादा होता है।