हाईकोर्ट ने सिविल जज भर्ती पर लगी रोक हटाई, 3 महीने में भर्ती पूरी करने के निर्देश

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज भर्ती पर लगी रोक हटा दी है और भर्ती प्रक्रिया को तीन महीने के भीतर पूरा करने के निर्देश दिए हैं। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि...

author-image
Neel Tiwari
एडिट
New Update
mp-civil-judge-recruitment-stay-lifted-three-month-deadline
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने सिविल जज भर्ती से जुड़ी एक अहम सुनवाई में आदेश जारी किया है। इस आदेश के मुताबिक, सिविल जज भर्ती प्रक्रिया को अब तीन महीने के भीतर पूरा करने के निर्देश दिए गए हैं। हालांकि, हाईकोर्ट ने साफ कर दिया है कि इस भर्ती से संबंधित सभी नियुक्तियां तब तक पक्की नहीं मानी जाएंगी जब तक इस मामले में कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता। इसका मतलब यह है कि, भर्ती प्रक्रिया तो तीन महीने में पूरी की जाएगी, लेकिन अंतिम नियुक्तियां अभी भी कोर्ट के फैसले पर निर्भर रहेंगी।

सिविल जज भर्ती की प्रक्रिया पर उठा था सवाल

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 17 नवंबर 2023 को सिविल जज (प्रवेश स्तर) के 138 पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। इस विज्ञापन में विभिन्न वर्गों जैसे अनारक्षित, अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) और दिव्यांग के लिए पद निर्धारित किए गए थे। हालांकि, भर्ती के इस विज्ञापन के नियमों और प्रावधानों को लेकर कई अभ्यर्थियों ने आपत्ति जताई। उनका कहना था कि इन नियमों में कुछ खामियां थीं, जो उनके अधिकारों का उल्लंघन करती थीं।

मुख्य रूप से यह सवाल उठाया गया कि OBC वर्ग को आरक्षण का लाभ नहीं दिया गया और उन्हें कोई विशेष छूट (Relaxation) नहीं दी गई, जबकि संविधान में इस वर्ग के लिए आरक्षण की स्पष्ट व्यवस्था है। इसके अलावा, भर्ती प्रक्रिया में साक्षात्कार में 20 अंकों की अनिवार्यता भी अनावश्यक और अव्यावहारिक बताई गई। इन कारणों से कई अभ्यर्थियों ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की और भर्ती प्रक्रिया को चुनौती दी।

खबर यह भी...NEET-UG 2025 के रिजल्ट पर इंदौर हाईकोर्ट ने हटाई रोक, प्रभावित परीक्षा केंद्र के जारी नहीं होंगे

15 मई को दिए गए आदेश के बाद, 16 मई को दोबारा आर्डर मॉडिफाई हुआ है, जिसमें अंतरिम राहत दी गई है

आरक्षण का लाभ ना देना था विवाद का मुख्य कारण

विवाद का प्रमुख कारण यह था कि आवेदन प्रक्रिया में आरक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को अनारक्षित वर्ग की तरह ही योग्य ठहराया गया, जबकि यह संविधान के तहत उन वर्गों के विशेष अधिकारों का उल्लंघन करता है। साथ ही, साक्षात्कार में 50 अंकों में से 20 अंक पाना अनिवार्य किया गया, जो कि कई उम्मीदवारों के मुताबिक असमान और अवैज्ञानिक था। ये सभी बिंदु एक संवैधानिक चुनौती का कारण बने और उच्च न्यायालय में इसे लेकर याचिका दायर की गई।

इसके अलावा, अनारक्षित वर्ग के उम्मीदवारों को चयनित करने में आरक्षित वर्ग के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को बाहर कर दिया गया, जबकि संविधान के अनुच्छेद 335 के तहत SC/ST को उनके सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर शिथिल मापदंडों पर चयनित किया जाना चाहिए था।

हाईकोर्ट का स्थगन आदेश और उसकी वजहें

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान, हाईकोर्ट ने 24 जनवरी 2025 को सिविल जज भर्ती की पूरी प्रक्रिया पर रोक (स्टे) लगा दी थी। कोर्ट ने यह निर्णय लिया था कि जब तक भर्ती के नियमों की संवैधानिक वैधता पर पूरी तरह से विचार नहीं कर लिया जाता, तब तक भर्ती की प्रक्रिया को रोक दिया जाए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि किसी भी उम्मीदवार के अधिकारों का उल्लंघन न हो और भर्ती प्रक्रिया पारदर्शी और न्यायसंगत तरीके से हो।

हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि राज्य सरकार को कुछ समय दिया गया था ताकि वह भर्ती नियमों में आवश्यक संशोधन कर सके, लेकिन राज्य सरकार ने अब तक इन संशोधनों को राजपत्र में प्रकाशित नहीं किया। इससे भर्ती प्रक्रिया में और देरी हुई और कोर्ट को मजबूरी में इस मुद्दे पर हस्तक्षेप करना पड़ा।

खबर यह भी...जबलपुर हाईकोर्ट ने छेड़छाड़ को नहीं माना यौन उत्पीड़न, आरोपी की सजा 20 से घटाकर 5 साल की

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हाईकोर्ट का नया दिशा निर्देश

इस मामले में नया मोड़ तब आया जब सुप्रीम कोर्ट ने 3 मार्च 2025 को राज्य सरकार को आदेश दिया कि सिविल जज के रिक्त पदों की तत्काल पूर्ति की जाए, ताकि न्यायिक व्यवस्था पर इसका नकारात्मक प्रभाव न पड़े। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद, हाईकोर्ट को अपनी 24 जनवरी 2025 के स्थगन आदेश में बदलाव करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस मामले की एक सुनवाई 15 मई को भी हुई थी, जिसके बाद कोर्ट ने इस मामले को समर वेकेशन के बाद तय कर दिया था। इसके बाद अधिवक्ता रामेश्वर ठाकुर के द्वारा इस मामले की संवेदनशीलता के चलते अर्जेंट हियरिंग की रिक्वेस्ट की गई थी, जिसके बाद कोर्ट का आदेश मॉडिफाई हुआ है। हाईकोर्ट ने अब तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया पूरी करने के निर्देश दिए हैं, ताकि न्यायिक पदों की रिक्तियां भरी जा सकें और न्यायालय का कार्य सुचारू रूप से चलता रहे। हालांकि, हाईकोर्ट ने साफ किया कि इस भर्ती प्रक्रिया के परिणाम या नियुक्तियां तब तक पक्की नहीं मानी जाएंगी जब तक कोर्ट का अंतिम फैसला नहीं आता।

कानून विशेषज्ञों ने दी दलीलें

आज की सुनवाई में याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर और विनायक प्रसाद शाह ने पक्ष रखा। उन्होंने भर्ती प्रक्रिया में जो विसंगतियां थीं, उनके बारे में विस्तार से कोर्ट को बताया। वहीं, हाईकोर्ट प्रशासन की ओर से अधिवक्ता दीपक अवस्थी ने राज्य सरकार की स्थिति स्पष्ट की। सभी पक्षों को सुनने के बाद, कोर्ट ने यह संतुलित निर्णय लिया, जो न केवल कानूनी दृष्टिकोण से उचित था, बल्कि यह सुनिश्चित भी करता है कि न्यायिक सेवा में भर्ती प्रक्रिया पारदर्शिता और न्यायसंगत तरीके से हो।

खबर यह भी...विजय शाह केस में MP हाईकोर्ट में तीसरी सुनवाई टली, डिवीजन बेंच नहीं बैठी

अब क्या होगा आगे

अब, हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद भर्ती प्रक्रिया फिर से शुरू होगी। हालांकि, भर्ती की प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी, अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र नहीं मिलेंगे, जब तक की हाईकोर्ट याचिका पर अंतिम निर्णय नहीं सुनाता। इसका मतलब यह है कि भर्ती की प्रक्रिया को शुरू किया जाएगा, लेकिन नियुक्तियों को अंतिम रूप तब तक नहीं मिलेगा जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता। इसके अलावा, राज्य सरकार पर दबाव बढ़ गया है कि वह जल्द से जल्द संशोधित भर्ती नियमों को राजपत्र में प्रकाशित करे, ताकि भविष्य में ऐसी समस्याएं न आएं और भर्ती प्रक्रिया में किसी तरह की अड़चन न हो।

thesootr links

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला | मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला | मध्य प्रदेश हाईकोर्ट भर्ती | MP News | Madhya Pradesh | Important decision of MP High Court | madhya pradesh mp high court stays 

madhya pradesh mp high court stays Important decision of MP High Court Madhya Pradesh MP News सुप्रीम कोर्ट सिविल जज भर्ती मध्य प्रदेश हाईकोर्ट भर्ती मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का फैसला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट