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प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मोहन सरकार के एक साल पूरे होने पर मोहन सरकार पर निशाना साधा है। जीतू पटवारी का कहना है कि प्रदेश में बीजेपी सरकार के एक साल पूरे होने पर मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने भोपाल के कुशाभाऊ ठाकरे ऑडिटोरियम में प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इस दौरान उन्होंने सरकार की उपलब्धियां गिनाते हुए दावा किया कि अब तक 1 करोड़ 29 लाख लाडली बहनों को 19,212 करोड़ रुपए ट्रांसफर किए जा चुके हैं, लेकिन ये अधूरा सच है। सरकार जो दिया वो तो बता रही है, लेकिन जो नहीं दे पाई उसे बताने से बच रही है।
नहीं दी 38,424 करोड़ से अधिक की राशि
पटवारी ने लिखा है कि मुख्यमंत्री का दावा है कि लाड़ली बहना योजना महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, लेकिन सरकार यह बताने में विफल रही है कि योजना के तहत 3 हजार रुपए हर महीने देने के वादे के बावजूद 38,424 करोड़ रुपए से अधिक की शेष राशि क्यों नहीं दी गई है? अगर यह राशि लाभार्थियों तक पहुंच जाती तो उनकी आर्थिक स्थिति में काफी सुधार हो सकता था। योजना की कई महिला लाभार्थियों ने शिकायत की है कि उन्हें नियमित अंतराल पर भुगतान नहीं मिलता है। इसके अलावा कुछ क्षेत्रों में राशि के वितरण में भेदभाव के आरोप भी लगे हैं। बेहतर होता कि मुख्यमंत्री ऐसे सभी सवालों का भी जवाब देते हैं।
केन-बेतवा लिंक परियोजना में देरी क्यों
केन-बेतवा लिंक परियोजना मध्य प्रदेश के लोगों के लिए लंबे समय से प्रतीक्षित परियोजना रही है। यह परियोजना न केवल राज्य में सिंचाई क्षमता बढ़ाने का दावा करती है, बल्कि जल संकट को कम करने का भी वादा करती है। सरकार यह क्यों नहीं बता पा रही है कि पिछली शिवराज सिंह चौहान सरकार और उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के बीच समन्वय की कमी के कारण इस परियोजना में देरी हुई। अगर इसे समय पर शुरू किया गया होता, तो आज इसकी लागत इतनी नहीं बढ़ती। अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 दिसंबर को इस परियोजना का भूमिपूजन करते हैं, तो उन्हें इस बजट वृद्धि और देरी के लिए जिम्मेदार कारकों पर भी चर्चा करनी चाहिए।
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एंबुलेंस की भारी कमी
पटवारी ने आगे लिखा कि मुख्यमंत्री ने स्वास्थ्य मंत्रालय और चिकित्सा शिक्षा मंत्रालय के विलय को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। लेकिन जमीनी हकीकत इससे काफी अलग है। राज्य के ग्रामीण इलाकों में अभी भी एंबुलेंस की भारी कमी है। आज भी कई परिवार शवों को कंधे, ठेले और साइकिल पर ढोने को मजबूर हैं। डॉक्टरों और अन्य मेडिकल स्टाफ की कमी के कारण अक्सर मरीजों को बड़े शहरों के अस्पतालों में रेफर किया जाता है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य में प्रति 10 हजार की आबादी पर डॉक्टरों की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत से भी कम है। ग्रामीण अस्पतालों में दवाओं और उपकरणों की कमी की शिकायतें आम हैं। सरकार द्वारा स्थापित नए मेडिकल कॉलेजों में बुनियादी सुविधाओं का अभाव और शिक्षकों की कमी भी एक बड़ी समस्या है।
कर्ज लेकर कछुए की चाल चल रही सरकार
पटवारी ने सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा कि इंदौर-मनमाड़ रेल लाइन एक ऐसा झुनझुना है कि सत्ता में आने वाला हर मुख्यमंत्री इसे अपनी उपलब्धि के रूप में बजाता है। कर्ज लेकर कछुए की चाल से चल रही केंद्र और मध्य प्रदेश सरकार को अब सिर्फ इस रेल परियोजना को बिना बजट बढ़ाए तुरंत पूरा करने की चिंता करनी चाहिए, ताकि कागजों पर की गई घोषणाएं पटरी पर आती दिखें। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संसाधनों के बेहतर उपयोग के लिए नदी जोड़ो परियोजना की कल्पना की थी। लेकिन भाजपा सरकारों ने इसे भ्रष्टाचार में नहाने का जरिया बना लिया है। इंदौर से निकलने वाली गंदगी से भरी कान्ह नदी उज्जैन की शिप्रा नदी में मिलकर श्रद्धालुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचा रही है। इसे सुधारने के नाम पर करोड़ों रुपए मंजूर किए गए, लेकिन जमीनी स्तर पर इसका कोई असर नहीं दिख रहा। कई भाजपा नेताओं की कई पीढ़ियों और नौकरशाही की लंबी कतार की आर्थिक स्थिति सुधर गई, लेकिन कान्ह नदी की पवित्रता एक सपना ही बनी हुई है! एक बार फिर सिंहस्थ के नाम पर नई योजनाएं प्रस्तावित की जा रही हैं। सरकार को पुरानी परियोजनाओं के परिणामों का मूल्यांकन कर उसी आधार पर नई योजनाएं बनानी चाहिए।
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किसानों से किए झूठे वादे
प्रदेश में किसानों की हालत सुधारने के सरकारी दावे भी सवालों के घेरे में हैं। सरकार समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद पर 125 रुपए बोनस देने का ढिंढोरा तो खूब पीट रही है, लेकिन 2023 के विधानसभा चुनाव में किए गए 2700 रुपए प्रति क्विंटल के वादे पर चुप है! खुद प्रधानमंत्री ने महाराष्ट्र में 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल सोयाबीन खरीदने का वादा किया था, जबकि मध्य प्रदेश में सोयाबीन सिर्फ 4892 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदा गया। धान किसानों को भी सरकार के झूठे वादों का सामना करना पड़ा। 3100 रुपए प्रति क्विंटल के ऐलान के बावजूद किसानों को अपनी फसल बेहद कम कीमत पर बेचनी पड़ी।
बढ़ रही बेरोजगारों की संख्या
मध्य प्रदेश सरकार को इस बात का भी जवाब देना चाहिए कि क्षेत्रीय औद्योगिक सम्मेलन के नाम पर कागजी निवेश अब पूरे मध्य प्रदेश में "भ्रमण" कर रहा है! क्षेत्रीय औद्योगिक सम्मेलन के नाम पर राज्य में निवेश को लेकर बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। सरकार का कहना है कि इन सम्मेलनों के माध्यम से राज्य में रोजगार के नए अवसर पैदा किए जाएंगे। लेकिन, सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज बेरोजगारों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। राज्य की अस्पष्ट नीतियों और लालफीताशाही के कारण उद्योगपति निवेश करने से बच रहे हैं।
शिक्षा के स्तर में बदलाव आया या नहीं
डॉ मोहन यादव ने अपने कार्यकाल को उच्च शिक्षा में उपलब्धि बताते हुए कहा कि उन्होंने कुलपति को कुलगुरु में बदल दिया। लेकिन यह बदलाव सिर्फ शब्दों का खेल है। चिंता का एक बौद्धिक क्षेत्र यह भी है कि पिछली सरकार में उच्च शिक्षा मंत्री के रूप में काम कर चुके डॉ मोहन यादव विश्वविद्यालयों की राजनीति से बाहर नहीं आ पा रहे हैं। कांग्रेस जानना चाहती है कि क्या इससे शिक्षा में सुधार हुआ है? मुख्यमंत्री को यह भी बताना चाहिए कि 55 जिलों में पीएम एक्सीलेंस कॉलेज खोलने की घोषणा से उच्च शिक्षा के स्तर और गुणवत्ता में बदलाव आया या नहीं? जमीनी हकीकत यह है कि पीएम एक्सीलेंस कॉलेज सिर्फ कागजों पर ही चल रहे हैं, क्योंकि आज भी कोई भी व्यक्ति पुरानी समस्याओं के ऊपर नई योजना का नाम देकर कागजों को आसानी से पढ़ और समझ सकता है! छात्रों और शिक्षकों की संख्या में असंतुलन, अव्यवस्थित पाठ्यक्रम और बुनियादी ढांचे की कमी शिक्षा व्यवस्था की बड़ी समस्याएं हैं।
सरकार ने खोला भ्रष्टाचार उद्योग
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा ने दावा किया कि मोहन यादव सरकार तत्काल कार्रवाई करके काम कर रही है! एक सकारात्मक और सार्थक विपक्ष के तौर पर हम जनता की तरफ से जानना चाहते हैं कि यह तत्काल कार्रवाई मध्य प्रदेश से अपराध, भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी की संस्कृति को कम क्यों नहीं कर पा रही है? मध्य प्रदेश में सबसे ज्यादा अपराध क्यों हो रहे हैं, जबकि मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री ही राज्य के गृह मंत्री भी हैं? सरकार ने तबादला उद्योग के नाम पर देर रात तक चलने वाला भ्रष्टाचार उद्योग क्यों खोल रखा है। कमीशन तय किए बिना कोई भी योजना कागज पर क्यों दर्ज नहीं हो सकती।