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5 पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी
👉मध्यप्रदेश कांग्रेस ने संगठन को मजबूत करने के लिए संगठन सृजन अभियान शुरू किया था।
👉कांग्रेस संगठन में नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया स्पष्ट नहीं है। प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी ने हाल ही में बूथ लेवल एजेंटों (BLA) की सूची पर संदेह जताया।
👉प्रदेश प्रवक्ताओं के चयन के लिए बनी समिति में डॉ. विक्रांत भूरिया को सदस्य बनाने पर विवाद हुआ।
👉संगठन सृजन अभियान के दौरान वरिष्ठ नेताओं के बीच समन्वय की कमी सामने आई है।
👉संगठन महामंत्री संजय कामले का कहना है कि कांग्रेस पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है।
मध्यप्रदेश कांग्रेस ने संगठन को पुनर्जीवित करने के लिए संगठन सृजन अभियान शुरू किया है। मकसद पार्टी को बूथ स्तर तक मजबूत बनाना है। लेकिन नियुक्तियों को लेकर उठे विवाद ने संगठन की एकजुटता पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
मनमर्जी के आरोप और तय प्रक्रिया से भटकाव
कांग्रेस संगठन में अधिकार और प्रक्रिया को लेकर भ्रम है। कभी संगठन मंत्री नियुक्त होते हैं, कभी नई समिति बनती है। पार्टी में हर नियुक्ति के लिए स्पष्ट अधिकार क्षेत्र तय है। प्रदेश प्रभारी हरीश चौधरी ने हाल ही में बूथ लेवल एजेंटों (BLA) की सूची पर संदेह जताया। यह संकेत है कि संगठनात्मक फैसलों में आपसी भरोसा घट रहा है।
जिला और ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति विवादों में
जिला और ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्तियों पर आपत्तियां सामने आई हैं। कई जगह स्थानीय नेताओं ने इन फैसलों का विरोध किया। इससे संगठन सृजन अभियान की रफ्तार पर असर पड़ा।
ताजा विवाद प्रदेश प्रवक्ताओं के चयन के लिए टैलेंट हंट कार्यक्रम को लेकर खड़ा हुआ। प्रदेश संगठन ने इसके लिए 11 सदस्यीय समिति बनाई। 23 दिसंबर को मीडिया विभाग के अध्यक्ष मुकेश नायक ने इसका आदेश जारी कर दिया।
इस समिति में राष्ट्रीय आदिवासी कांग्रेस के अध्यक्ष डॉ. विक्रांत भूरिया को सदस्य बनाया गया है। नियम के अनुसार, राष्ट्रीय पदाधिकारी को प्रदेश समिति में शामिल करने से पहले केंद्रीय संगठन की अनुमति जरूरी होती है।
आदेश निरस्त, फिर त्यागपत्र
प्रभारी महासचिव अभय तिवारी ने इस आदेश को निरस्त कर दिया। मामला बढ़ा तो मुकेश नायक ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। हालांकि प्रदेश अध्यक्ष ने इसे स्वीकार नहीं किया। लेकिन इससे पार्टी के भीतर की असहज स्थिति उजागर हो गई।
कांग्रेस ने लगातार चुनावी हार के बाद 2025 को संगठन वर्ष के रूप में मनाने का फैसला किया है। लक्ष्य यही है कि भाजपा से मुकाबले के लिए पहले संगठन को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए।
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चहेतों की जगह प्रक्रिया से नियुक्ति का दावा
इस बार पार्टी ने दावा किया कि पदों पर चहेतों की नियुक्ति नहीं होगी। इसी सोच के तहत संगठन सृजन अभियान के माध्यम से जिला अध्यक्षों की नियुक्तियां की गईं। लेकिन व्यवहार में यह प्रक्रिया विवादों से घिर गई।
अगस्त में घोषित 71 जिला व शहर कांग्रेस अध्यक्षों की सूची के बाद इंदौर, भोपाल, सतना, गुना जैसे जिलों में विरोध प्रदर्शन हुए। इंदौर ग्रामीण में नेता दिल्ली तक पहुंच गए। भोपाल में प्रदेश कार्यालय के बाहर प्रदर्शन हुआ। सतना में स्थानीय नेताओं ने धरना दिया। जिला संगठन मंत्रियों की नियुक्ति रद्द कर दी गई। प्रदेश प्रभारी ने कहा कि पहले केंद्रीय संगठन से अनुमोदन लिया जाना चाहिए था। हरीश चौधरी ने कहा कि कांग्रेस में जिला संगठन मंत्री का पद परंपरागत नहीं है। इसी कारण नियुक्तियों पर आपत्ति जताई गई।
वरिष्ठ नेताओं के बीच समन्वय की कमी
संगठन सृजन अभियान के दौरान सामने आए विवादों ने यह साफ कर दिया कि वरिष्ठ नेतृत्व के बीच समन्वय की कमी है। जब शीर्ष स्तर पर तालमेल नहीं होगा, तो जमीनी संगठन कैसे मजबूत होगा यह सवाल लगातार उठ रहा है।
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ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति में भी बवाल
पहली बार एक साथ 780 ब्लॉक अध्यक्षों की नियुक्ति की गई। लेकिन रतलाम, आलीराजपुर सहित कई जिलों में इसका विरोध हुआ। कुछ जिला अध्यक्षों ने व्यक्तिगत कारण बताते हुए पद से इस्तीफा तक दे दिया।
सहमति का वादा, अमल कमजोर
संगठन सृजन अभियान के दौरान कहा गया था कि जिले में कोई भी फैसला जिला अध्यक्ष की सहमति से लिया जाएगा। लेकिन हकीकत में कई नियुक्तियां बिना पूछताछ के कर दी गईं, जिससे असंतोष बढ़ा।
संगठन महामंत्री का पक्ष
संगठन महामंत्री संजय कामले का कहना है कि पार्टी में पीढ़ी परिवर्तन की प्रक्रिया चल रही है। उनके अनुसार, 71 जिले, 1,047 ब्लॉक, 230 विधानसभा समितियां और 71 हजार मतदान केंद्रों तक संगठन खड़ा करना आसान काम नहीं है।
असहमति को बताया स्वाभाविक
संजय कामले का कहना है कि बड़े स्तर पर काम होने पर कुछ असहमति स्वाभाविक होती है। समन्वय एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि सामूहिक जिम्मेदारी है। संवाद से ही समाधान निकलेगा।
संगठन सृजन की राह अभी कठिन
एमपी कांग्रेस में संगठन को मजबूत करने की कोशिशें जारी हैं। लेकिन नियुक्तियों का विवाद इन प्रयासों पर भारी पड़ता दिख रहा है। अगर नेतृत्व स्तर पर समन्वय और स्पष्ट प्रक्रिया नहीं बनी, तो संगठन सृजन अभियान भटक सकता है।
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